मुंबई, सात दिसंबर बंबई उच्च न्यायालय ने बुधवार को कहा कि वह महाराष्ट्र प्रशासनिक न्यायाधिकरण (एमएटी) द्वारा पारित उस आदेश से प्रथम दृष्टया सहमत है, जिसमें राज्य सरकार को गृह विभाग के तहत पदों के लिए आवेदन पत्र में ट्रांसजेंडर के वास्ते प्रावधान करने का निर्देश दिया गया है।
मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति अभय आहूजा की एक खंडपीठ महाराष्ट्र सरकार द्वारा न्यायाधिकरण के 14 नवंबर के आदेश के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी। याचिका में न्यायाधिकरण के आदेश पर तत्काल रोक लगाने की मांग की गई थी।
सरकार ने उच्च न्यायालय से न्यायाधिकरण के आदेश को रद्द करने का अनुरोध किया था क्योंकि यह अवैध और कानून के लिहाज से गलत था।
सरकार ने दावा किया कि न्यायाधिकरण के निर्देश को लागू करना ‘बेहद मुश्किल’ है क्योंकि ट्रांसजेंडर की भर्ती के लिए विशेष प्रावधानों के संबंध में नीति बनाना अभी बाकी है।
पीठ ने हालांकि कहा कि वह न्यायाधिकरण द्वारा पारित आदेश से प्रथम दृष्टया सहमत है।
मुख्य न्यायाधीश दत्ता ने कहा, ‘‘उच्चतम न्यायालय ने पहले ही सभी राज्यों को ‘थर्ड जेंडर’ के लिये प्रावधान बनाने को कहा है। सिर्फ इसलिए कि आपके (सरकार के) पास अब तक कोई नीति नहीं है, आप इनकार नहीं कर सकते (ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिये नौकरी की संभावना से)।’’
उन्होंने कहा, ‘‘आपको बदलाव लागू करने होंगे। प्रावधान करें..प्रक्रिया जारी रखें।’’
पुलिस कांस्टेबल बनने की इच्छा रखने वाले एक ट्रांसजेंडर व्यक्ति आर्य पुजारी ने एमएटी का रुख किया था, क्योंकि वह पुलिस कांस्टेबल के पद के लिए ऑनलाइन फॉर्म नहीं भर सका था। फॉर्म में केवल पुरुष और महिला का उल्लेख किया गया था।
एमएटी ने 14 नवंबर को राज्य सरकार को राज्य के गृह विभाग के तहत सभी रिक्तियों के लिए आवेदन पत्र में ट्रांसजेंडर के लिए तीसरा विकल्प रखने और इसके विज्ञापन में आवश्यक बदलाव करने तथा इसे 23 नवंबर तक अपनी वेबसाइट पर डालने का निर्देश दिया था।
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