क्या कार्बन क्रेडिट्स कोयला संयंत्रों को बंद करवाने में मदद कर सकते हैं?

रॉकफेलर फाउंडेशन 10 कोयला संयंत्रों को प्रदूषण से मुक्ति दिलाने की मुहिम में लगा है.

प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

रॉकफेलर फाउंडेशन 10 कोयला संयंत्रों को प्रदूषण से मुक्ति दिलाने की मुहिम में लगा है. इससे लाखों टन उत्सर्जन में कमी आएगी और कार्बन क्रेडिट्स को आगे बढ़ाया जा सकेगा.फिलीपींस की राजधानी मनीला से कुछ किलोमीटर की दूरी पर स्थित एक कोयला संयंत्र ऐसा एक उदाहरण बन सकता है जो विकासशील देशों को यह राह दिखाने में सफल हो सके कि विकासशील देश कैसे प्रदूषणकारी जीवाश्म ईंधनों से पीछा छुड़ा सकते हैं. इस मामले में रॉकफेलर फाउंडेशन नाम के एक परोपकारी समूह की अगुआई में गठित एक समूह बड़े मददगार के रूप में सामने आया है, जो 10 संयंत्रों को प्रदूषण से मुक्ति दिलाने की मुहिम में लगा है. इससे लाखों टन उत्सर्जन में कमी आने के साथ ही वे अपने कार्बन क्रेडिट को भुनाने में भी सफल हो पाएंगे.

रॉकफेलर की बिजली एवं जलवायु टीम के प्रबंध निदेशक जोसेफ कर्टिन ने समाचार एजेंसी एएफपी को बताया, "यह बहुत ही सामान्य सा विचार है. मान लीजिए कि कोयला संयंत्रों का स्वामित्व रखने वाले ग्रिड को बिजली बेचने के बजाय उस कार्बन क्रेडिट को बेच सकें, जिसकी उन्होंने उत्सर्जन में कटौती से बचत की हो."

कार्बन क्रेडिट असल में एक ऐसी अ‍वधारणा है, जिसमें कोई इकाई किसी किसी स्थान पर संभावित प्रदूषण की भरपाई किसी अन्य जगह पर उत्सर्जन में कटौती से करती है. इसमें वनों के संरक्षण से लेकर इलेक्ट्रिक बसों जैसे तमाम उपायों को आजमाया जा रहा है. हालांकि, गहन जांच-पड़ताल में यह सामने आया है कि कार्बन क्रेडिट के मामले में या तो दावों को बढ़ा-चढ़ाकर बताया जा रहा है या फिर उनकी सही गणना नहीं की जा रही.

ऑस्ट्रेलिया में कोयले से बिजली का उत्पादन सबसे निचले स्तर पर

अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी के मुताबिक, कोयला मानवजनित कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन का सबसे बड़ा स्रोत है. कई विकसित देशों ने चरणबद्ध तरीके से कोयले से मुक्ति पा ली है, लेकिन कई विकासशील देशों की ऊर्जा के लिए अपनी जरूरतों को देखते हुए उनकी इस पर निर्भरता बनी हुई है. इंडोनेशिया और दक्षिण अफ्रीका जैसे देशों को अपने कोयला संयंत्रों पर ताला लगाने के लिए अरबों डॉलर के पेशकश प्रस्ताव दिए गए हैं, लेकिन इस मामले में अभी कम ही सफलता मिल पाई है.

कर्टिन ने कहा, "उभरते हुए बाजारों और विकासशील देशों के सभी 4,500 संयंत्रों में से एक भी कोयला संयंत्र को बंद नहीं किया गया या फिर उसे स्वच्छ ऊर्जा वाले संयंत्र में तब्दील नहीं किया जा सका है."

समस्या बहुत जटिल है

कोयला प्रत्यक्ष एवं परोक्ष रूप से करोड़ों लोगों की रोजी-रोटी से जुड़ा है. इसके साथ ही यह ऊर्जा के लिए किफायती एवं भरोसेमंद स्रोत भी बना हुआ है. दुनिया भर की सरकारों और उद्योग जगत के दिग्गजों ने कोयले में भारी-भरकम निवेश किया है. खासतौर से एशिया में इससे जुड़े संयंत्र अपेक्षाकृत नए हैं, जिनकी स्थापना को बहुत समय नहीं हुआ है. ऐसे में, उन्हें जल्द बंद करना नुकसान का सबब बन सकता है.

फिलहाल, अक्षय ऊर्जा का विकल्प अक्सर कोयले की तुलना में सस्ता पड़ रहा है, लेकिन उसकी राह में तमाम पेचीदगियां हैं, क्योंकि तमाम संयंत्र दीर्घकालिक अनुबंधों की शर्तों से जुड़े हैं. कर्टिन कहते हैं, "इन संयंत्रों के मालिकों के सामने उन्हें बंद करने के लिए आर्थिक रूप से कोई लुभावना विकल्प नहीं है और यही कारण है कि हमें कोई भी संयंत्र बंद होता हुआ नहीं दिख रहा."

कोयले से क्लीन क्रेडिट पहल की दस्तक

यह कोयला संयंत्रों को बंद करने और उन्हें सौर या पवन ऊर्जा जैसे अक्षय ऊर्जा से प्रतिस्थापित करने की लागत की भरपाई कार्बन क्रेडिट के जरिये करने पर केंद्रित है. इसके पास एक टेस्ट केस भी हैः दक्षिण लूजोन थर्मल एनर्जी कॉरपोरेशन (एसएलटीईसी). रॉकफेलर के अनुसार, इसे 2040 तक चलने की योजना बनाई गई थी लेकिन सीसीसीआई के तहत यह एक दशक पहले बंद हो जाएगा, इससे 1.9 करोड़ टन कार्बन डाईऑक्साइड उत्सर्जन की बचत होगी. कोयले से चलने वाले संयंत्रो को अक्षय उत्पादन और बैटरी स्टोरेज से बदल दिया जाएगा, साथ ही कर्मचारियों और स्थानीय समुदाय को मुआवजा भी दिया जाएगा.

सिंगापुर का मौद्रिक प्राधिकरण इस पहल का समर्थन करता है. कर्टिन कहते हैं, "ये क्रेडिट्स के लिए काफी उत्सुक हैं और निजी सेक्टर भी इसमें रुचि दिखा रहा है." हालांकि, अन्य कार्बन क्रेडिट्स परियोजनाओं के साथ आ रही परेशानियों के सामने आने पर इस नजरिए को आलोचना भी झेलनी पड़ी. कार्बन क्रेडिट परियोजना के बिना भी कई परेशानियां इससे जुड़ी हुई हैं. यह भी कि इससे उत्सर्जन को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता.

इसके कारण कई वन संरक्षण योजनाएं भी खतरे में आ गई हैं, क्योंकि डेवेलपर्स इस बात को साबित नहीं कर पाए हैं कि वहां पेड़ों को काटे जाने का अधिक खतरा है. और, जिन जगहों पर पेड़ों के गिरने के बाद उन्हें संरक्षित किया जाना चाहिए था वहां उनके संरक्षण के नाम पर क्रेडिट्स बेच दिए गए.

जैसे-जैसे अक्षय ऊर्जा सस्ती हो रही है, वैसे ही आलोचक इस बात पर बहस कर रहे हैं कि बाजार में कार्बन क्रेडिट्स के साथ भी कोयला संयंत्र बंद किए जा सकते हैं.

कैसे बंद होंगे कोयला संयंत्र

कार्बन मार्केट वॉच थिंक टैंक के गिल्स डुफ्रासने ने एएफपी को बताया, "कोयला संयंत्रों को चरणबद्ध तरीके से बंद करने को लेकर कौन उसके पक्ष में हैं और कौन खिलाफ, यह जानना काफी मुश्किल है." वह आगे कहते हैं, "ये आर्थिक और राजनीतिक ताकतें समय के साथ बदल सकती हैं." डुफ्रासने चेतावनी देते हुए कहते हैं, "अधिक प्रदूषण करने वाले और खत्म हो चुकी या पुरानी तकनीक में पैसा लाने वाले निवेशकों को 'क्रेडिट्स का लाभ पुरस्कार के रूप में मिलने' का जोखिम बढ़ गया है."

कुछ अन्य विश्लेषक यह चेतावनी देते हैं कि कोयला बंद होने से देश घटे उत्सर्जन की 'दोगुनी गणना' कर सकते हैं. देश इसे राष्ट्रीय गणना में भी शामिल कर सकते हैं, चाहे वह उत्सर्जन भले ही कहीं और बेच दिया गया हो. कर्टिन आलोचकों की इस बात को मानते हैं, और कहते हैं कि सीसीसीआई की कार्यप्रणाली उनके निदान के लिहाज से तैयार की गई है.

ऐसी कोयला परियोजनाएं जिनका विलय किया जा सकता हो और जिनके दीर्घकालिक अनुबंध जुड़े हों और वे ग्रिड से जुड़े हों, उन्हें ही मौके दिए जाएंगे. भाग लेने वाली कंपनियों के पास आवश्यक रूप से 'नो न्यू कोल' (नया कोयला नहीं) नियम होना चाहिए, और समापन में अक्षय ऊर्जा के उत्पादन के साथ प्रतिस्थापन के प्रावधान हों और कामगारों और समुदाय के समर्थन का प्रावधान शामिल हो.

वह कहते हैं, "हमने इसे काफी समय लेकर तैयार किया है और हमें लगता है कि यह काफी साफ और सटीक व अचूक पद्धति है."

वेरा ने भी इसकी समीक्षा की है, जो क्रेडिट के एक प्रमुख सत्यापनकर्ता हैं जिन्हें अतीत में भी निरीक्षण में खामी के लिए आलोचना का सामना करना पड़ा है. कर्टिन आशावादी हैं और कहते हैं, "2025 के मध्य तक क्रेडिट की डील के लाखों डॉलरों में बड़े अनुबंध किए जा सकते है."

एए/आरएम (एएफपी)

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