ऑस्ट्रेलियाई संविधान में मूल निवासियों को मान्यता देने पर बड़ा कदम
ऑस्ट्रेलिया में 60 हजार साल से रह रहे मूल निवासियों को अब तक संविधान में जगह नहीं मिली है.
ऑस्ट्रेलिया में 60 हजार साल से रह रहे मूल निवासियों को अब तक संविधान में जगह नहीं मिली है. अब इस स्थिति को बदलने के लिए बड़ा कदम उठाया जा रहा है.ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री घोषणा करते वक्त बड़ी मुश्किल से अपने आंसू रोक पा रहे थे. उनकी आवाज भर्रा गई थी. उन्होंने कहा, "अब नहीं तो कब?” एंथनी अल्बानीजी ने गुरुवार को ऑस्ट्रेलिया के मूल निवासियों को संसद में स्थायी स्थान देने के लिए जनमत संग्रह के सवाल की घोषणा की. मूल निवासियों को संवैधानिक मान्यता देने के मकसद से यह जनमत संग्रह कराया जा रहा है.
कई मूल निवासी नेताओं के साथ खड़े अल्बानीजी ने मीडिया से बातचीत में कहा, "बहुत से लोगों को इस पल का लंबे समय से इंतजार था. फिर भी उन्होंने पूरी प्रक्रिया के दौरान धैर्य और आशावाद से काम लिया. मिल जुलकर इस जगह पर पहुंचने में सहयोग, विचार और सम्मानजनक बातचीत की बहुत अहमियत रही है."
ऑस्ट्रेलिया में इस बात की कोशिश हो रही है कि 60 हजार साल से इस जमीन पर रह रहे मूल निवासियों को संवैधानिक रूप से ज्यादा मान्यता और अधिकार मिलें. 122 साल पुराने संविधान में उनका जिक्र तक नहीं है. इसलिए यह जनमत संग्रह आयोजित किया जा रहा है. ऑस्ट्रेलिया के संविधान में किसी भी बदलाव के लिए जनमत संग्रह अनिवार्य है.
कैसा होगा जनमत संग्रह
मूल निवासी ऑस्ट्रेलिया की कुल 2.6 करोड़ आबादी का मात्र 3.2 प्रतिशत हैं. अधिकतर सामाजिक-आर्थिक मानकों पर उनका स्तर अन्य तबकों से कहीं नीचे है. अंग्रेजों के ऑस्ट्रेलिया की धरती पर आने के बाद से वे लगातार पीड़ित और दमित वर्ग बने रहे हैं. 1960 के दशक तक तो उन्हें मतदान का भी अधिकार नहीं था.
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अब सरकार संविधान संशोधन प्रस्ताव पेश कर रही है जिसके तहत अक्तूबर और दिसंबर के बीच कभी जनमत संग्रह करवाया जाएगा. उसमें ऑस्ट्रेलिया के लोगों से सवाल पूछा जाएगा कि यह संशोधन होना चाहिए या नहीं. इसके तहत संसद में एक स्थायी समिति बनाए जाने का प्रावधान है.
इस समिति को ‘एबॉरिजिनल एंड टॉरेस स्ट्रेट आइलैंड वॉइस' नाम दिया गया है. इस समिति का काम होगा मूल निवासियों से संबंधित मामलों पर सरकार को मश्विरा देना. हालांकि इस मश्विरे को मानना या ना मानना सरकार के हाथ में होगा. उम्मीद की जा रही है कि यह प्रस्ताव जून के आखिर तक संसद से पारित हो जाएगा, जिससे जनमत संग्रह का रास्ता खुल जाएगा.
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देश के दो विपक्षी दल इस जनमत संग्रह को लेकर अभी पसोपेश में है. विपक्षी गठबंधन में जूनियर पार्टनर नेशनल पार्टी ने तो इस जनमत संग्रह में इनकार में वोट करने का ऐलान भी कर दिया है. वामपंथी ग्रीन्स पार्टी और कुछ निर्दलीय सांसदों ने जनमत संग्रह का समर्थन किया है.
हाल ही में गार्डियन अखबार ने इस बारे में एक सर्वे करवाया था जिसके नतीजे मंगलवार को जारी हुए. इस सर्वे के मुताबिक देश के 59 फीसदी लोगों ने जनमत संग्रह का समर्थन किया है जबकि 5 फीसदी ने विरोध किया.
क्या होगा जनमत संग्रह का सवाल?
1901 में ऑस्ट्रेलिया का संविधान अस्तित्व में आया था. तब से 44 बार इसमें संशोधन का प्रस्ताव लाया गया, जिनमें से 19 ही जनमत संग्रह तक पहुंच पाए और सिर्फ आठ पास हुए.
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पिछली बार 1999 में जनमत संग्रह हुआ था जब ऑस्ट्रेलिया के लोगों से देश को ब्रिटिश साम्राज्य से अलग करके गणतंत्र बनाकर राष्ट्रपति को राष्ट्राध्यक्ष बनाने के बारे में पूछा गया था. लोगों ने इसके खिलाफ मतदान किया था.
सरकार ने जो सवाल प्रस्तावित किया है, वह होगाः ऑस्ट्रेलिया के प्रथम नागरिकों को मान्यता देने के लिए ‘एबॉरिजनल एंड स्ट्रेट आइलैंडर्स वॉइस' समिति गठित करने के मकसद से देश के संविधान में संशोधन के लिए एक कानून का प्रस्ताव है. क्या आप इस प्रस्ताव का समर्थन करते हैं?
वैसे, विपक्ष ने इस सवाल की भाषा की आलोचना की है. प्रधानमंत्री अल्बानीजी ने कहा कि वह मतदान में सवाल को जितना हो सकेगा सरल बनाने की कोशिश करेंगे.
क्या है मूल निवासियों की स्थिति?
देश के मानवाधिकार आयोग के मुताबिक 2030 तक देश के मूल निवासियों की संख्या दस लाख को पार करने की संभावना है. 2020 में ‘ओवरकमिंग इंडीजनस डिसअडवांटेज' रिपोर्ट जारी हुई थी जिसके मुताबिक ऐसे बहुत से क्षेत्र हैं जिनमें मूल निवासियों की स्थिति बाकी समुदायों की तुलना में काफी कमजोर है और कई क्षेत्रों में यह खराब होती जा रही है. मिसाल के तौर पर अपने परिवारों से अलग किसी देखभाल केंद्र में रह रहे मूल निवासी बच्चों की संख्या 15 साल में तीन गुना हो गई.
2004-05 में ऐसे मूल निवासियों की संख्या 31 फीसदी थी जो मानसिक तनाव से गुजर रहे थे. 2018-19 में इनकी संख्या बढ़कर 40 प्रतिशत हो गई. साल 2000 और 2019 के बीच जेल में बंद मूल निवासियों की संख्या में 72 प्रतिशत का इजाफा हुआ है. आदिवासी मूल के युवा और किशोरों के जेल जाने की दर अन्य युवा और किशोरों से 22 गुना ज्यादा है.
52 मानकों पर मूल निवासियों की सामाजिक और आर्थिक स्थिति के आकलन के बाद इस रिपोर्ट में कहा गया कि एबॉरिजिनल और टॉरेस स्ट्रेट आइलैंडर लोग ढांचागत बाधाओं के कारण भेदभाव का शिकार होते हैं. बहुत से मूल निवासी नेता मानते हैं कि संसद में वॉइस की स्थापना एक प्रतीकात्मक कदम होगा जिसके जरिए उनके मुद्दों को राष्ट्रीय स्तर पर उठाने में मदद मिल सकेगी.
रिपोर्टः विवेक कुमार (रॉयटर्स)