विदेश की खबरें | अल्जाइमर संभवत: दिमाग की बीमारी न हो, नए सिद्धांत में स्वत: प्रतिरोधक स्थिति होने के संकेत
Get Latest हिन्दी समाचार, Breaking News on world at LatestLY हिन्दी. टोरंटो, 20 सितंबर (द कन्वर्सेशन) अल्जाइमर की बीमारी का इलाज लगातार प्रतिस्पर्धी और जटिल रहा है और इसको लेकर गत सालों में कई अहम विवाद भी हुए हैं।
टोरंटो, 20 सितंबर (द कन्वर्सेशन) अल्जाइमर की बीमारी का इलाज लगातार प्रतिस्पर्धी और जटिल रहा है और इसको लेकर गत सालों में कई अहम विवाद भी हुए हैं।
जुलाई 2022 में ‘साइंस’ मैगजीन ने वर्ष 2006 के एक अहम अनुसंधान पत्र की खबर प्रकाशित की, जो प्रतिष्ठित जर्नल ‘नेचर’ में आई थी। इसमें मस्तिष्क प्रोटीन के उप प्रकार की पहचान की गई थी जिसे बीटा-एमेलॉइड नाम दिया गया और इसे अल्जाइमर का कारण बताया गया। संभव है कि आंकड़ों में छेड़छाड़ की गई हो।
एक साल पहले जून 2021 में अमेरिकी खाद्य एवं औषधि प्रशासन ने एडुकानुमाब को अल्जाइमर के इलाज के लिए मंजूरी दी। यह एंटीबॉटी है जो बीटा-एमेलॉइड को लक्षित करता है। हालांकि, इस इलाज के समर्थन में जिस डाटा का इस्तेमाल किया गया है, वह अधूरा और विरोधाभासी था। कुछ डॉक्टरों का मानना है कि एडुकानुमाब को कभी मंजूरी नहीं दी जानी चाहिए जबकि कुछ इस रुख पर कायम हैं कि इसे मौका दिया जाना चाहिए।
लाखों लोगों को प्रभावी इलाज की जरूरत है, लेकिन क्यों अनुसंधानकर्ता अब भी इसका इलाज तलाश करने में मुश्किल का सामना कर रहे हैं जबकि यह सबसे अहम बीमारी है जिससे मानवता जूझ रही है?
बीटा एमेलॉइड से बचने की कोशिश
वर्षों से वैज्ञानिक मस्तिष्क को नुकसान पहुंचाने वाले इस रहस्यमय प्रोटीन बीटा एमेलॉइड को बनने से रोककर अल्जाइमर का नया इलाज तलाश करने की कोशिश कर रहे हैं। यहां तक कि हम वैज्ञानिक विशेषतौर पर इस पद्धति से इलाज की तलाश करने पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं जबकि अन्य संभावित व्याख्या को नजरअंदाज कर रहे हैं।
यह खेदजनक है कि असामान्य प्रोटीन का अध्ययन करने के प्रति दिखाई गई तल्लीनता का नतीजा उपयोगी दवा या इलाज पद्धति के रूप में सामने नहीं आया है। अल्जाइमर का इलाज तलाशने के लिए लीक से हटकर काम करने की जरूरत है क्योंकि मस्तिष्क विज्ञान में यह शीर्ष प्राथमिकता के तौर पर उभर रहा है।
क्रेमबिल ब्रेन इंस्टीट्यूट स्थित मेरी प्रयोगशाला, जो टोरंटो विश्वविद्यालय के स्वास्थ्य नेटवर्क का हिस्सा है, अल्जाइमर बीमारी के नए सिद्धांत पर काम कर रही है।
पिछले 30 साल के अनुंसधान के आधार पर हम अब अल्जाइमर को प्राथमिक तौर पर मस्तिष्क की बीमारी नहीं मान सकते हैं। इससे अलग, हम मानते हैं कि अल्जाइमर सैद्धांतिक तौर पर मस्तिष्क के भीतर प्रतिरोधक प्रणाली में आई विकृति है।
प्रतिरोधक प्रणाली शरीर के प्रत्येक अंग में होती है और कोशिकाओं और मॉलिक्यूल का संग्रहण है जो जख्म को ठीक करने और बाहरी आक्रांताओं से बचाने के लिए काम करता है। जब व्यक्ति को चोट लगती है तो प्रतिरोधक प्रणाली क्षतिग्रस्त ऊत्तकों की मरम्मत करने का काम करती है। इसी प्रकार किसी व्यक्ति को वायरस या बैक्टीरिया का संक्रमण होने पर प्रतिरोधक प्रणाली इन आक्रामक जीवाणुओं के खिलाफ लड़ने का कार्य करती है।
ठीक इसी तरह की प्रक्रिया मस्तिष्क में भी होती है। जब कोई चोट लगती है तो मस्तिष्क की प्रतिरोधक प्रणाली क्षतिग्रस्त हुए ऊत्तकों की मरम्मत के लिए सक्रिय हो जाती है। जब मस्तिष्क में बैक्टीरिया का संक्रमण होता है तो प्रतिरोधक प्रणाली उनसे लड़ती है।
अल्जाइमर, स्वत: प्रतिरोध की बीमारी
हमारा मानना है कि बीटा एमेलॉइड असामान्य तौर पर पैदा होने वाला प्रोटीन नहीं है बल्कि सामान्य तौर पर मौजूद रहने वाला मॉलिक्यूल है जो मस्तिष्क की प्रतिरोधक प्रणाली में होता है। इसे वहां होना भी चाहिए। जब मस्तिष्क में चोट लगती है या बैक्टीरिया मौजूद होता है तो बीटा-एमेलॉइड मस्तिष्क के बृहद प्रतिरोध में अहम योगदान देता है। यह वह मौका होता है जब समस्या की शुरुआत होती है।
वसा मॉलिक्यूल बैक्टीरिया और मस्तिष्क कोशिकाओं की झिल्ली बनाते हैं और इनमें समानता होती है, लेकिन बीटा एमेलॉइड इसकी वजह से आक्रांता बैक्टीरिया और मेजबान मस्तिष्क कोशिका में अंतर नहीं कर पाता, जिसकी उसके द्वारा रक्षा की जानी होती है।
इससे मस्तिष्क कोशिकाओं के कार्य करने की क्षमता घटती जाती है और अंतत: डिमेंशिया की स्थिति उत्पन्न होती है क्योंकि हमारे शरीर की प्रतिरोधक प्रणाली बैक्टीरिया और मस्तिष्क कोशिका में अंतर नहीं कर पाती।
जब मस्तिष्क की प्रतिरोधक प्रणाली के भ्रमित हमले इस अंग पर होते हैं तो इसे अपनी रक्षा करनी होती है और तब अल्जाइमर की बीमारी स्वत: प्रतिरोधक बीमारी के तौर पर उभरती है। कई तरह की स्वत: प्रतिरोधक बीमारी हैं जैसे रुमेटॉइड अर्थराइटिस, जिसमें स्वत: एंटीबॉडीज बीमारी के उभरने में अहम भूमिका निभाते हैं और जिसमें स्टीरॉयड आधारित इलाज प्रभावी होता है। परंतु यह पद्धति अल्जाइमर की बीमारी में काम नहीं करती।
मस्तिष्क बहुत ही विशेष अंग है जिसे ब्रह्मांड का सबसे जटिल ढांचा माना गया है। हमारे अल्जाइमर मॉडल के मुताबिक बीटा-एमेलॉइड हमारी प्रतिरोधक प्रणाली की रक्षा करने व इसे बढ़ाने में मदद करता है। लेकिन, दुर्भाग्य से यह स्वत: प्रतिरोधक प्रणाली में भी अहम भूमिका निभाता है। हमारा मानना है कि इसकी वजह से संभवत: अल्जाइमर की बीमारी होती है।
हालांकि, अन्य स्वत: प्रतिरोधक बीमारी का पांरपरिक इलाज, संभव है कि अल्जाइमर के खिलाफ काम नहीं करे। हमारा मजबूती से मानना है कि मस्तिष्क के अन्य प्रतिरोध नियमन तरीकों को लक्षित कर हम इस बीमारी का नया और प्रभावी इलाज तलाश कर सकते हैं।
बीमारी के अन्य सिद्धांत
अल्जाइमर के इस स्वत: प्रतिरोध सिद्धांत के अलावा भी कई नए और अलग-अलग प्रकार के सिद्धांत सामने आने लगे हैं। उदाहरण के लिए कुछ वैज्ञानिकों का मनना है कि अल्जाइमर की बीमारी छोटी कोशिका ढांचा माइटोकॉन्ड्रिया की वजह से है जिसे कोशिका का ऊर्जा केंद्र माना जाता है। माइटोकॉन्ड्रिया श्वांस के द्वारा ली जाने वाली ऑक्सीजन और भोजन से ग्लूकोज को लेकर ऊर्जा बनाती है जो स्मृति और सोचने के लिए जरूरी है।
कुछ का मानना है कि यह मस्तिष्क में संक्रमण का नतीजा है और मुंह के रास्ते मस्तिष्क में प्रवेश करने वाले बैक्टीरिया इसके दोषी हैं। वहीं, कुछ अन्य वैज्ञानिकों का मानना है कि यह बीमारी मस्तिष्क द्वारा जिंक, तांबा और लोहा जैसी धातुओं से असामान्य तरीके से निपटने की वजह से है।
यह सुखद है कि इस पुरानी बीमारी के बारे में नए सिरे से सोचा जा रहा है। डिमेंशिया से इस समय पूरी दुनिया में पांच करोड़ से अधिक लोग प्रभावित हैं और हर तीन सेकेंड में इसका एक मरीज सामने आ रहा है। अल्जाइमर बीमारी से जूझ रहे लोग अपने ही बच्चों को पहचान नहीं पा रहे हैं।
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