Chitragupta Puja 2018: आज देशभर में भाई दूज का पावन पर्व मनाया जा रहा है. मान्यता है कि कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को सबसे पहले मृत्यु के देवता यमराज और उनकी बहन यमुना ने भाई दूज का त्योहार मनाया था. इस दिन यमुना नदी में स्नान का विशेष महत्व बताया जाता है. इस पर्व को यम द्वितीया के नाम से भी जाना जाता है और भाई दूज के दिन ही यमराज के सहायक देव चित्रगुप्त के पूजन का भी विधान होता है. चित्रगुप्त कायस्थों के आराध्य देव माने जाते है. वे हर व्यक्ति के कार्यों का लेखा-जोखा अपने पास रखते हैं, इसलिए उन्हें कलम का देवता भी कहा जाता है.
हर साल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को चित्रगुप्त के साथ-साथ कलम और दवात की भी पूजा का विशेष महत्व बताया जाता है. चलिए जानते हैं चित्रगुप्त और कलम-दवात के पूजन की आसान विधि और शुभ मुहूर्त.
पूजन की आसान विधि
- सुबह स्नान करने के बाद घर के मंदिर की सफाई कर एक चौकी पर कपड़ा बिछाकर चित्रगुप्त की प्रतिमा स्थापित करें. अगर प्रतिमा उपलब्ध न हो तो कलश को प्रतीक मानकर चित्रगुप्त की पूजा कर सकते हैं. इसके साथ ही कलम और दवात की पूजा भी करनी चाहिए.
- इसके बाद पूजा की थाल सजाएं. थाल में रोली, अक्षत, फूल, हल्दी, चंदन, गुड़, दही, इत्र, वस्त्र, कलावा, गाय के गोबर का कंडा, हवन सामग्री, कपूर, मिष्ठान और पांच प्रकार के मौसमी फल इत्यादि पूजन सामग्री रखें.
- इसके साथ ही कलम और दवात की पूजा के लिए कलम, दवात, पुस्तक और पढ़ाई-लिखाई से जुड़ी सामग्री इकट्ठा कर लें.
- अब दीपक और धूप जलाएं, फिर चित्रगुप्त जी को रोली और अक्षत से टीका करें और भोग लगाएं. फिर सबसे पहले गणेश वंदना करें और इन सभी सामग्रियों से चित्रगुप्त व कलम-दवात की पंचोपचार विधि से पूजन करें.
- अब भगवान चित्रगुप्त का ध्यान करते हुए ओम चित्रगुप्ताय नम: मंत्र की एक माला का जप करें और परिवार के साथ मिलकर उनकी आरती करें. यह भी पढ़ें: Bhai Dooj 2018: बहनें इस विधि से करें अपने भाई का तिलक, जानें सबसे पहले किसने मनाया था भाई दूज का यह पर्व
पूजन का शुभ मुहूर्त
सुबह- 06.51 से 09.10 बजे तक.
दोपहर- 01.00 से 02.32 बजे तक.
यमराज के सहायक हैं चित्रगुप्त
भगवान चित्रगुप्त ब्रह्मदेव की संतान व ज्ञान के देवता हैं. चित्रगुप्त हर व्यक्ति के कर्मों का लेखा-जोखा लिखकर अपने पास रखते हैं, जिसके बाद यमलोक के राजा यमराज व्यक्ति को उनके कर्मों के आधार पर दंड देते हैं. पौराणिक मान्यता के मुताबिक, चित्रगुप्त जी का जन्म ब्रह्मदेव के अंश से न होकर संपूर्ण काया से हुआ था, इसलिए उन्हें कायस्थ कहा गया. इसी उपनाम के आधार पर इनका गोत्र चला और समाज में कायस्थ वर्ग की भागीदारी शुरू हुई.
कायस्थ आज के दिन भगवान चित्रगुप्त के साथ ही कलम-दवात और बही-खाते की भी पूजा करते हैं. कहा जाता है कि ये दोनों ही चीजें चित्रगुप्त जी को अत्यंत प्रिय हैं. इस दिन पूजन के दौरान व्यक्ति अपनी आय-व्यय का ब्यौरा व घर-परिवार के बच्चों के बारे में पूरी जानकारी लिखकर भगवान चित्रगुप्त को अर्पित करते हैं. इसके अलावा इस दिन एक कोरे कागज पर अपनी इच्छा लिखकर पूजन के दौरान चित्रगुप्त के चरणों में अर्पित करने का भी विधान है.