बिहार में नई सरकार बनने के बाद से तेज औद्योगिकीकरण के कई प्रयास होते दिख रहे हैं. पिछली सरकार में भी इस दिशा में कदम उठाए गए थे. देखिए जमीनी स्तर पर बदलाव के लिए किन बातों पर खास ध्यान दिया जाना चाहिए.बिहार में कई कंपनियों ने उत्पादन भी शुरू कर दिया है तथा कई के प्रस्ताव पाइपलाइन में हैं. ब्रिटेनिया, जेके सीमेंट्स, अशोक लीलैंड, रिलायंस या अदाणी जैसे चुनिंदा औद्योगिक घरानों के आने का शोर काफी है, लेकिन केवल इनके आने से बात नहीं बनने वाली. अभी भी सच यही है कि नई औद्योगिक नीति में भी निवेशकों (इन्वेस्टर्स) के लिए और कई तरह की रियायतों की घोषणा के बावजूद बड़ी संख्या में निवेशक बिहार आने से कतरा रहे. बिहार को न्यू एज इकोनॉमी में ले जाने के लिए राज्य सरकार को अन्य राज्यों में बिहार के ‘परसेप्शन' को तोड़ना होगा, उनके निवेश की गारंटी सुनिश्चित करनी होगी तथा अन्य कई मोर्चों पर दृढ़ राजनीतिक इच्छा शक्ति के साथ काम करना होगा.
आखिर कैसे लेबर सप्लाई करने वाला बन गया बिहार
हालांकि, इसमें कोई दो राय नहीं कि बिहार में इन दिनों निवेश और विकास जैसे शब्दों की ही गूंज सर्वाधिक सुनाई दे रही. एनडीए की नई सरकार ‘अभी नहीं तो कभी नहीं' के मूल मंत्र पर निवेशकों को आकर्षित करने की पूरी कोशिश कर रही है. दरअसल, नीतीश सरकार की मंशा युवाओं को नौकरी-रोजगार तथा उद्यमियों-निवेशकों को यथासंभव भरोसा दिलाने की है. अच्छी बात है कि विकास की इस नई राजनीति में जलवायु परिवर्तन तथा बाढ़ जैसे संकट से जूझ रहे आमजन का भी ख्याल रखा जा रहा है.
"बदलना होगा बिहार का ‘परसेप्शन'"
इकोनॉमिक्स की लेक्चरर दिव्या सिंह कहती हैं, "अन्य राज्यों में कई बिंदुओं पर बिहार का ‘परसेप्शन' आज भी काफी खराब है. कारोबार के मामले में देखें तो उनके बीच यह धारणा आज भी कायम है कि बिहार में धंधा करना आसान नहीं है. वहां पैसा फंस जाता है."
अपराध और अराजकता से सुर्खियां बटोरता बिहार
डीडब्ल्यू से बातचीत में वो कहती हैं कि बड़ी कंपनियों को तो सरकार की मदद कमोबेश मिल जाती है, किंतु छोटे या मझोले को वह मदद नहीं मिल पाती. सीआईएसएफ की तर्ज पर यहां बीआईएसएफ जैसी एजेंसी का गठन किया जा रहा, किंतु निवेशकों के बीच आज भी अपराध तो एक मुद्दा है ही.
वहीं, राजनीतिक समीक्षक एस. के. सिंह कहते हैं, "निवेश की प्रमुख शर्तों में राजनीतिक स्थिरता भी एक है. बिहार का इतिहास गवाह है कि राजनीतिक अस्थिरता के दौर ने यहां उद्योग-धंधा चौपट कर दिया. नई सरकार के पास पूर्ण बहुमत है, किंतु है तो यह गठबंधन की सरकार ही. राजनीतिक स्थिरता और विपक्षी दलों की नीयत के प्रति निवेशकों का सशंकित रहना लाजिमी ही है."
बिहार: आसान नहीं नीतीश सरकार की राह
वो तुलना करते हुए कहते हैं कि दूसरे राज्यों में भी सरकारें आती-जाती रहती हैं, किंतु वहां परिवर्तन से उद्योग-धंधे प्रभावित नहीं होते. सिंह कहते हैं, ‘‘पिछले दिनों एक राजनीतिक दल के नेता के भाई की हत्या व्यक्तिगत कारणों से हुई, किंतु इसे लेकर बाहर मैसेज गया कि बिहार में नेता का परिवार भी सुरक्षित नहीं है. असली कारण क्या था, इसकी चर्चा तुलनात्मक रूप से उतनी नहीं हुई.'' सोशल मीडिया के इस युग में हरेक ऐसी बात जो कानून-व्यवस्था से जुड़ी हुई हो, उसका वास्तविक पक्ष लोगों के सामने लाना ही होगा. ताकि, इसका हौआ नहीं खड़ा हो सके.
बिहार की खूबियों पर भी हो बात!
दिव्या सिंह का कहना है कि पिछले 20 सालों में बिहार में कुछ क्षेत्रों में बहुत कुछ बेहतर हुआ लेकिन इन पॉजिटिव चीजों का उतना प्रचार-प्रसार नहीं हुआ. उनका मानना है कि एक रोडमैप के जरिए हरेक जिले के विशिष्ट उत्पाद को 'यूएसपी' (यूनीक सेलिंग प्वॉन्ट) बनाकर क्षेत्र विशेष के निवेशकों तक बात पहुंचाने की जरूरत है.
वो कहती हैं कि राज्य में न्यू एज इकोनॉमी की संभावनाओं से बिहार के बाहर के लोगों को अवगत कराना होगा. इसके लिए हर सेगमेंट की अलग-अलग ब्रांडिग टीम काफी कारगर होगी. जो वन-टू-वन उस प्रोडक्ट विशेष के उद्योगपतियों को कनेक्ट करे. सुनियोजित तरीके से यह प्रचार-प्रसार काफी जोर-शोर से करना होगा कि हमारे पास क्या-क्या है, जो एक बेहतर इकोनॉमिक इकोसिस्टम के लिए जरूरी है.
इकोनॉमिक्स की लेक्चरर दिव्या सिंह कहती हैं, ‘‘हमारे लैंड लॉक्ड स्टेट होने की चर्चा तो होती है, किंतु इसकी चर्चा नहीं होती कि हम हाइब्रिड मक्के के उत्पादन में सबसे बेहतर हैं और यहां प्रोसेसिंग प्लांट लगाने वालों को हमसे क्या-क्या फायदा होगा. हमारे मक्के से दूसरे राज्यों की फैक्ट्रियां चलती हैं.'' मखाना, लीची, टमाटर, आलू ऐसे कई उत्पाद ऐसे हैं, जो फूड प्रोसेसिंग सेक्टर में बड़े निवेशकों को आकर्षित कर सकते हैं. हमें अपने प्रदेश के स्किल्ड लेबर फोर्स की भी पहचान कर उनसे कनेक्ट करने की जरूरत है, जिससे यहां आने वाले निवेशकों को उनकी मांग के अनुरूप बेहतर मानव संसाधन उपलब्ध कराया जा सके.
बिहार में अदाणी पावर प्लांट वाली जमीन पर असल में कितने पेड़ लगे हैं?
बनाना होगा प्रोडक्ट विशेष का एक्सपोर्ट जोन
राजनीतिक समीक्षक समीर सौरभ कहते हैं, "तमिलनाडु के पश्चिमी भाग के कोंगू बेल्ट की तर्ज पर बिहार में भी कुछ जिलों को मिलाकर एक्सपोर्ट जोन विकसित करना होगा, जहां से खास प्रोडक्ट एक्सपोर्ट किया जा सके. जैसे कोंगू बेल्ट का त्रिपुर 90 प्रतिशत सूती कपड़े तो नमक्कल जिला 90 से 95 प्रतिशत अंडे का निर्यात करता है."
तमिलनाडु की जीडीपी में 60 प्रतिशत योगदान कोंगू बेल्ट का है. इस बेल्ट में आने वाले जिलों को चाइना ऑफ इंडिया के नाम से भी जाना जाता है. हमें बिहार के इंडस्ट्रियल इकोसिस्टम को इसी तर्ज पर विकसित करना होगा, जिसके तहत क्षेत्र विशेष एक्सपोर्ट के मानचित्र पर आ सके. इसके लिए क्षेत्र विशेष में उपजने वाले फूड प्रोडक्ट्स या वहां विकसित किए जाने वाले मैन्युफैक्चरिंग हब के लिए सस्ते कच्चे माल, सप्लाई चेन और स्किल्ड लेबर की उपलब्धता सुनिश्चित करनी होगी.
सुपर फूड मखाना ग्लोबल तो बन गया पर खाली हाथ हैं किसान
समीर कहते हैं कि यदि हम ऐसे एक्सपोर्ट जोन बनाने में कामयाब हो गए तो वे धीरे-धीरे प्रोडक्ट विशेष के दिग्गजों को निवेश के लिए आकर्षित करने में अहम भूमिका निभाएंगे. विभिन्न क्षेत्रों के प्रतिभाशाली बिहारी दिग्गज भी इस दिशा में काफी मददगार हो सकते हैं. चाहे ये दिग्गज बड़े अफसर हों या फिर फिनटेक या एआई के विशेषज्ञ.
मैन्युफैक्चरिंग असिस्टेंस सेल की जरूरत
कोरोना काल में पश्चिम चंपारण जिले के चनपटिया में बनाए गए स्टार्टअप हब की काफी चर्चा हुई थी. उस समय देश-विदेश से हजारों की संख्या में कामगार वापस लौटे थे. 30 से ज्यादा प्रोडक्ट्स के लिए तब यहां 57 फैक्ट्रियां चलती थीं और करीब सात हजार मजदूर काम करते थे. धीरे-धीरे करीब 50 फैक्ट्री बंद हो गई.
इसके पीछे की वजह देखी जाए तो साफ है कि इनके पास फंड की कमी हो गई. सरकार से गुहार लगाई, किंतु मदद नहीं मिली. कई वजहों से इनका बनाया माल महंगा हो गया और बाहर इनसे सस्ता माल मिल रहा था. नतीजा यह हुआ कि इनके प्रोडक्ट्स की बिक्री बंद हो गई. बाजार में माल फंस गया और इनके पास पैसे नहीं होने से इनका प्रोडक्शन अंतत: बंद हो गया.
बिहार में छह नए एयरपोर्ट क्या वाकई विकास की उड़ान साबित होंगे
हालांकि, अब इन पर लोन का सही इस्तेमाल नहीं करने का आरोप लग रहा है. दिव्या कहती हैं, ‘‘यदि इन्हें दीर्घकालिक मैन्युफैक्चरिंग असिस्टेंस और मजबूत सप्लाई चेन का हिस्सा बनने में मदद दी गई होती तो बंदी की नौबत नहीं आती. ऐसे लघु व मध्यम श्रेणी के उद्योगपतियों की मदद के लिए जरूरी है मैन्युफैक्चरिंग और सप्लाई चेन असिस्टेंस सेल बनाने की, जो समय पर इनकी मदद कर सके. इससे निवेश का माहौल भी बनेगा.''
चनपटिया मॉडल बिहार के लिए केस स्टडी है, जिससे बाधाओं और उनके निराकरण का रास्ता तो खोजा ही जा सकता है.
आला अधिकारी बनें ब्रांड एंबेसडर
समीर कहते हैं, "सरकार के दावे भले ही जो भी हों, लेकिन यह कहने में गुरेज नहीं है कि कमोबेश यहां लालफीताशाही कायम है. जो बाहर से यहां निवेश करने आ रहा, वह बहुत कुछ झेलना या प्रक्रियागत विलंब को स्वीकार नहीं करना चाहता है. इन्वेस्टर्स हब बनाने की घोषणा भर से काम नहीं चलेगा, वन स्टॉप सॉल्यूशन की दिशा में गंभीरता से प्रयास करना होगा. इस बात की समीक्षा तो की ही जानी चाहिए कि बीते दिनों एसआईपीबी (स्टेट इन्वेस्टमेंट प्रमोशन बोर्ड) और सिंगल विंडो का फायदा कितने निवेशकों को मिला और कितने लौट गए."
वो कहते हैं, "वर्तमान में उद्योग वार्ता के दौरान जिन औद्योगिक घरानों या उद्योगपतियों द्वारा इस संबंध में निवेश की इच्छा जताई गई हो या प्रजेंटेशन दिए गए हों, उनके लिए सरकार को अभियान के तौर पर काम करना होगा.'' इसके लिए जरूरी हैं कि अधिकारियों को असाइनमेंट दिए जाएं तथा निवेशक विशेष के संबंध में समय-समय पर फीडबैक लिए जाएं, जिससे निवेश की दिशा में प्रगति या रुकावट के कारणों का पता चल सके. इसके साथ ही इज ऑफ लिविंग के लिए राज्य के सर्विस सेक्टर को भी समयबद्ध तरीके से विकसित करना होगा, ताकि बाहर से यहां आने वाले लोगों को किसी तरह की असुविधा नहीं हो.
सहायक कंपनियों को भी मिले उतना ही इंसेंटिव
फिलहाल, यह जरूरी है कि औद्योगिक प्रोत्साहन पैकेज के तहत काफी आकर्षक पैकेज दिए जाएं, जो अन्य राज्यों की तुलना में बेहतर हों. एस. के. सिंह कहते हैं, ‘‘आज सभी राज्यों के बीच निवेशकों को आकर्षित करने के मुद्दे पर काफी प्रतिस्पर्धा है. अगर कोई एक बड़ी कंपनी को प्रपोजल दिया जाए तो उनकी सहायक कंपनियों को भी उतना इंसेंटिव दिया जाए, तभी वह कंपनी बिहार में आने की सोचेगी.''
जैसे, अगर आदित्य बिड़ला फैशन आएगी तो उसके साथ बटन बनाने वाली, कॉलर बनाने वाली या फिर काज बनाने वाली छोटी-छोटी कंपनियां भी आएंगी. आदित्य बिड़ला के साथ ही इन छोटी कंपनियों को भी उतनी ही सुविधाएं और इंसेंटिव देने की जरूरत है. उन सभी को मिलाकर ही उनका बिजनेस इकोसिस्टम तैयार हो सकेगा. वे कहते हैं, ‘‘बिहार में जमीन का मिलना सबसे बड़ी समस्या है. सरकार को लैंड बैंक बनाकर औद्योगिक घरानों को टोकन मनी पर जमीन देनी होगी. दूसरे राज्य ऐसा कर रहे. इसके लिए दृढ़ राजनीतिक इच्छाशक्ति के साथ-साथ काम करना होगा, ताकि जमीन देने के निर्णय पर कोई विवाद न हो सके.''













QuickLY