कोविड-19 के दौरान अमेरिकी सेना ने चलाया चीन विरोधी वैक्सीन प्रोपेगैंडा: रॉयटर्स
प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

कोविड-19 के दौरान अमेरिकी सेना ने एक वैक्सीन विरोधी गुप्त अभियान चलाया. इसका मकसद फिलीपींस और अन्य देशों में चीन की बनाई वैक्सीन की साख गिराकर बीजिंग के बढ़ते असर को कम करना था. रॉयटर्स ने अपनी जांच में यह दावा किया है.रॉयटर्स के मुताबिक, यह वैक्सीन-विरोधी दुष्प्रचार तब शुरू किया गया, जब कोविड-19 अपने चरम पर था. अमेरिकी सेना के मुख्यालय पेंटागन के इस गुप्त अभियान का मकसद चीन की बनाई वैक्सीन की सुरक्षा और क्षमता के बारे में संदेह पैदा करना था. इसके लिए इंटरनेट पर फर्जी अकाउंट बनाए गए, जिनमें खुद को फिलीपींस निवासियों के तौर पर पेश किया गया. रॉयटर्स का दावा है कि अमेरिकी सेना के इस दुष्प्रचार अभियान ने वैक्सीन-विरोधी कैंपेन की शक्ल ले ली.

इनके माध्यम से उन मेडिकल उत्पादों की गुणवत्ता पर भी सवाल उठाया गया, जो चीन दूसरे देशों को भेज रहा था. सोशल मीडिया पोस्ट के मार्फत चीन द्वारा सप्लाई किए जा रहे फेस मास्क, कोरोना टेस्ट किट और शुरुआती टीके की गुणवत्ता की निंदा की गई. उस समय चीन अपनी बनाई सिनोवैक वैक्सीन फिलीपींस को मुहैया करा रहा था. करीब एक साल तक फिलीपींस में चीन की बनाई सिनोवैक वैक्सीन ही मुख्य तौर पर उपलब्ध थी. 2022 की शुरुआत में आकर ही अमेरिका में बने टीके बड़े स्तर पर मिलने शुरू हुए.

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सोशल मीडिया पर चीनी टीके के खिलाफ दुष्प्रचार!

अपनी रिपोर्ट में रॉयटर्स ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स (पहले ट्विटर) पर कम-से-कम 300 ऐसे खातों की पहचान की, जिनका ब्योरा फिलीपींस से जुड़े इस कथित खुफिया अभियान की जानकारी रखने वाले अमेरिकी सेना के कुछ पूर्व अधिकारियों द्वारा साझा किए गए विवरण से मेल खाता था. इनमें से कमोबेश सभी हैंडल 2020 की गर्मियों में बनाए गए. इनकी गतिविधि मुख्य रूप से #Chinaangvirus पर केंद्रित थी. इस टैगलॉग का आशय था कि "चीन ही वायरस है."

जुलाई 2020 में इससे जुड़े एक ट्वीट में लिखा गया, "कोविड चीन से आया है और वैक्सीन भी चीन से आई है. चीन पर भरोसा मत करो!" इस ट्वीट के साथ पोस्ट की गई तस्वीर में चीन के झंडे के साथ एक सीरींज रखी थी और संक्रमण के बढ़ते मामले दिखाए गए थे. ऐसे ही एक अन्य पोस्ट में लिखा गया, "चीन की ओर से- पीपीई, फेस मास्क, वैक्सीन: फर्जी. लेकिन कोरोना वायरस असली है."

वैक्सीन से जुड़ी हिचक को हवा देने का आरोप

रॉयटर्स ने बताया है कि जब उसने एक्स से इन खातों के बारे में मालूमात की, तो कंपनी ने इन प्रोफाइलों को प्लेटफॉर्म से हटा दिया. इन खातों की गतिविधि के तरीके और आंतरिक डेटा के आधार पर पाया गया कि ये एक सुसंगठित बॉट कैंपेन का हिस्सा थे. रॉयटर्स ने आगे बताया है कि अमेरिकी सेना का यह वैक्सीन-विरोधी अभियान 2020 के बसंत में शुरू हुआ. इसका विस्तार दक्षिणपूर्व एशिया तक था और 2021 का आधा साल बीतते-बीतते इसे खत्म कर दिया गया.

आरोप है कि पेंटागन के इस अभियान के तहत मुसलमानों के बीच चीनी टीकों के खिलाफ डर फैलाने के लिए कई सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों पर फर्जी खाते बनवाए. यह ऐसे वक्त में हो रहा था, जब कोरोना के कारण हर दिन सैकड़ों लोगों की जानें जा रही थीं. इस रणनीति का एक मुख्य हिस्सा उन अपुष्ट दावों को हवा देना था, जिसमें कहा जा रहा था कि वैक्सीन में कई बार सूअर के जेलेटिन का इस्तेमाल होता है. इसकी वजह से कई मुसलमान वैक्सीन लगवाने से हिचक रहे थे.

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रॉयटर्स का दावा है कि अमेरिकी सेना का यह अभियान पूर्व राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के कार्यकाल में शुरू हुआ और जो बाइडेन के कार्यकाल में भी कुछ महीनों तक चला. यह भी इल्जाम है कि सोशल मीडिया एक्जिक्यूटिव्स ने बाइडेन प्रशासन को आगाह किया कि पेंटागन कोविड से जुड़ी गलत जानकारियां फैला रहा है.

टीकाकरण अभियानों को नुकसान पहुंचने की आशंका

इस बारे में रॉयटर्स के पूछे सवालों का बाइडेन और ट्रंप के प्रवक्ताओं ने कोई जवाब नहीं दिया है. हालांकि, रॉयटर्स के मुताबिक रक्षा विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने माना कि विकासशील देशों में चीन की बनाई वैक्सीन की साख गिराने के लिए अमेरिका की सेना ने एक गुप्त दुष्प्रचार अभियान चलाया.

रॉयटर्स की इस जांच के संदर्भ में कई सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने इस कथित अभियान की निंदा की है. उनका कहना है कि भूराजनीतिक हितों के लिए लोगों को खतरे में डालना गलत था. संक्रामक रोगों के एक विशेषज्ञ डैनिएल लूसी ने रॉयटर्स के साथ बातचीत में टिप्पणी की, "मुझे नहीं लगता कि इसका बचाव किया जा सकता है. मैं यह सुनकर बहुत निराश हूं कि अमेरिकी सरकार ऐसा कर सकती है."

लूसी समेत कई विशेषज्ञों ने कहा कि चीन के वैक्सीन कार्यक्रम के बारे में डर और आशंका फैलाने की कोशिश के कारण सरकारी स्वास्थ्य अभियानों से जनता का भरोसा खत्म होने का जोखिम था. हालांकि, चीन की बनाई वैक्सीन फाइजर और मॉर्डना की तुलना में कम प्रभावी पाई गईं, लेकिन विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इन सभी टीकों को मंजूरी दी थी.

कुछ हालिया अध्ययन बताते हैं कि अगर लोगों में एक वैक्सीन के लिए भी शंका पैदा होती है, तो वे बाकी टीकों के प्रति भी सशंकित हो सकते हैं. ऐसे में सार्वजनिक टीकाकरण कार्यक्रमों को बड़ा नुकसान पहुंच सकता है. यह इसलिए भी ज्यादा गंभीर चिंता है,क्योंकि पहले ही वैक्सीनों को लेकर कई भ्रांतियां और अफवाहें हैं.

एसएम/वीएस (रॉयटर्स)