यूरोप में 2023 में खसरे के मामले में अभूतपूर्व 45 गुना की वृद्धि हुई है. संयुक्त राष्ट्र की एजेंसी विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इस बदलाव पर चिंता जताई है.2023 में खसरे के 42 हजार मामले सामने आए जो 2022 से 45 गुना ज्यादा है. विश्व स्वास्थ्य संगठन ने मंगलवार को ये आंकड़े जारी किए और इस प्रसार को थामने के लिए आपातकालीन टीकाकरण की अपील की.
डब्ल्यूएचओ के यूरोपीय क्षेत्र में 53 देश हैं. इनमें से 41 देशों में खसरे के मामले सामने आए. डब्ल्यूएचओ ने बताया कि 2022 में मात्र 941 मामले दर्ज किए गए थे. संगठन ने कहा कि कोविड-19 महामारी के दौरान टीकाकरण की दर नीचे चली गई थी और इस बीमारी को थामने व फैलने से रोकने के लिए "आपातकालीन टीकाकरण अभियान की जरूरत है."
जिन देशों में सबसे ज्यादा मामले बढ़े हैं, उनमें रूस और कजाखस्तान सबसे ऊपर हैं. पिछले साल जनवरी से अक्तूबर के बीच इन दोनों देशों में 10 हजार से ज्यादा लोग खसरे से बीमार हुए. पश्चिमी यूरोप में सबसे ज्यादा मामले ब्रिटेन में पाए गए, जहां 183 लोगों को खसरा हुआ.
डब्ल्यूएचओ ने कहा कि जनवरी से अक्तूबर के बीच 21 हजार मरीजों को खसरे के कारण अस्पताल में भर्ती होना पड़ा और पांच लोगों की मौत हुई जो "चिंता की बात है.” संगठन के मुताबिक 2020 से 2022 के बीच डब्ल्यूएचओ के यूरोपीय क्षेत्र में करीब 18 लाख शिशुओं को खसरे का टीका नहीं लग पाया था.
क्यों होता है खसरा
दुनियाभर में स्वास्थ्य के हालात की निगरानी करने वाले संगठन ने कहा, "यह बहुत जरूरी हो गया है कि सभी देश समय से खसरे के प्रकोप की पहचान और रोकथाम के लिए तैयार रहें, नहीं तो खसरे को पूरी तरह खत्म करने में हुई प्रगति खतरे में पड़ जाएगी.”
खसरा रूबेला वायरस के कारण होता है और सांस, खांसी या छींक से भी एक व्यक्ति से दूसरे में फैल सकता है. बच्चों में खसरा ज्यादा होता है लेकिन ऐसा नहीं है कि वयस्क इससे बीमार नहीं हो सकते.
रूबेला वायरस के संपर्क में आने के बाद, बीमारी के लक्षण दिखने में आठ से बारह दिन का समय लगता है. इसके लक्षणों की शुरुआत तेज बुखार, बहती नाक, मांसपेशियों में दर्द और गले में खराश से होती है. शुरुआती लक्षणों के दो से तीन दिन बाद मुंह चेहरे पर सफेद धब्बे दिखाई देने लगते हैं और लाल दाने हो जाते हैं जो जो सिर से नीचे की तरफ़ फैलते हैं. गंभीर स्थिति में पेट दर्द, दस्त और उल्टी हो सकती है.
खसरे के टीकाकरण में दो खुराक दी जाती हैं. पहला टीका 9 महीने पर लगता है और दूसरा 15 से 18 महीने पर. इस बीमारी के आउटब्रेक को रोकने के लिए कम से कम 95 फीसदी बच्चों को दोनों खुराक लगनी जरूरी हैं. लेकिन दुनियाभर में टीकाकरण की दर कम हो रही है.
2022 में 83 फीसदी बच्चों को ही खसरे की दोनों खुराक मिल पाई थीं. हालांकि 2021 के 81 फीसदी से यह कुछ ऊपर था लेकिन कोविड महामारी से पहले यह दर 86 फीसदी थी जो 2008 के बाद सबसे कम थी. 2022 में यूरोप में सिर्फ 92 फीसदी बच्चों को खसरे का दूसरा टीका लगा था.
भारत दूसरे नंबर पर
2021 में दुनियाभर में खसरे की वजह से एक लाख 28 हजार मौतें हुई थीं जिनमें से अधिकतर बच्चे पांच साल से कम उम्र के थे जिन्हें एक या दोनों टीके नहीं लगे थे. डब्ल्यूएचओ का अनुमान है कि साल 2000 से 2021 के बीच टीकाकरण के कारण साढ़े पांच करोड़ लोगों की जान बची.
दुनियाभर में खसरे के कारण सबसे ज्यादा मौतों वाले देश में भारत दूसरे नंबर पर है. 2023 में सबसे ज्यादा 23,066 मौतें यमन में हुईं. उसके बाद भारत का नंबर है, जहां 13,997 मौतें हुईं. कजाखस्तान में 12,801 जानें खसरे के कारण गईं. उसके बाद इथियोपिया (11,042), रूस (7,137), पाकिस्तान (6,199), किरगिस्तान (4,701), डीआर कांगो (3,917), इराक (3,541) और अजरबैजान (3,291) का नंबर है.
भारत में 2017 से मार्च 2023 के बीच 34 करोड़ से ज्यादा बच्चों को खसरे के टीके लगाए गए. 2017 से 2021 के बीच भारत में इस बीमारी के मामले 62 फीसदी घटे थे.
रिपोर्टः विवेक कुमार (रॉयटर्स)