“गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजंगतुंगमालिकाम्…” रावण की रचना ‘शिव तांडव’ में भोलेनाथ के अद्वितीय रूप का वर्णन है. बाबा अपने गले में सर्पों का हार पहने हैं... जहां-जहां भोलेनाथ, वहां-वहां उनके परम भक्त नाग देव. ऐसे में भला शिव की निराली नगरी काशी की बात कैसे न की जाए.
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