Vijaya Ekadashi 2024: शत्रुओं पर विजय प्राप्ति हेतु करें विजया एकादशी पर श्रीहरि-लक्ष्मी की पूजा! जानें इसका महात्म्य, मंत्र, पूजा-विधि एवं व्रत-कथा!

हिंदी पंचांग के अनुसार हर माह का ग्यारहवां दिन श्रीहरि को समर्पित होता है, जिसे एकादशी कहते हैं. माह में दो और साल में कुल 24 एकादशियां पड़ती हैं, सभी 24 एकादशियों के विभिन्न महत्व होते हैं.

Vijaya Ekadashi (img- File Image)

हिंदी पंचांग के अनुसार हर माह का ग्यारहवां दिन श्रीहरि को समर्पित होता है, जिसे एकादशी कहते हैं. माह में दो और साल में कुल 24 एकादशियां पड़ती हैं, सभी 24 एकादशियों के विभिन्न महत्व होते हैं. फाल्गुन कृष्ण पक्ष की एकादशी को विजया एकादशी के नाम से पूजा जाता है, इस दिन श्रीहरि की विशेष पूजा का विधान है. पद्म पुराण और स्कंद पुराण में उल्लेखित है कि जातक जब दुश्मनों से घिरा हो तब विपरीत परिस्थितियों में भी विजया एकादशी का व्रत-पूजा से उसकी जीत सुनिश्चित होती है. इस वर्ष 6 मार्च 2024 को विजया एकादशी मनाई जाएगी. आइये जानते हैं इस व्रत का महत्व, मुहूर्त एवं पूजा विधि..

विजया एकादशी का महत्व

महाभारत के पश्चात श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर द्वारा पूछने पर बताया था कि श्रीराम ने लंका पर विजय की कामना के साथ बकदाल्भ्य मुनि के सुझाव पर समुद्र तट पर भगवान श्रीराम ने विजया एकादशी का व्रत किया था. इसके बाद श्रीराम ने रावण का संहार कर लंका पर विजय प्राप्त किया था. यह भी पढ़ें : Mahashivratri 2024: महाशिवरात्रि पर क्या घर पर शिवलिंग की पूजा करनी चाहिए? जानें क्या हैं इसके नियम एवं विधान?

विजया एकादशी व्रत की तिथि

विजया एकादशी प्रारंभः 06.31 AM (06 मार्च 2024, बुधवार)

विजया एकादशी समाप्तः 04.14 AM (07 मार्च 2024, गुरूवार)

उदया तिथि के अनुसार 6 मार्च 2024 को पूरे समय एकादशी होने के कारण 6 मार्च को ही विजया एकादशी का व्रत रखा जाएगा.

विजया एकादशी पर व्रत-पूजा के नियम

फाल्गुन मास की दशमी की सायंकाल से अन्न का सेवन बंद कर देना चाहिए. एकादशी की सुबह उठकर नित्य क्रिया निवृत्त होकर स्नान करें. सूर्य को अर्घ्य देने के पश्चात पीला वस्त्र धारण भगवान विष्णु एवं देवी लक्ष्मी के व्रत एवं पूजा का संकल्प लें. अब पूजा स्थल पर एक चौकी बिछाकर श्रीहरि-लक्ष्मी की प्रतिमा स्थापित करें. धूप-दीप प्रज्वलित करें एवं निम्न श्लोक का उच्चारण करें.

ॐ भूरिदा भूरि देहिनो, मा दभ्रं भूर्या भर। भूरि घेदिन्द्र दित्ससि।

ॐ भूरिदा त्यसि श्रुत: पुरूत्रा शूर वृत्रहन्। आ नो भजस्व राधसि।

अब भगवान को पीला पुष्प, पीला अक्षत, तुलसी पत्ता, पीला चंदन अर्पित करें. अब प्रसाद में पीला फल, दूध की मिठाई एवं केसर की खीर आदि चढ़ाएं. विष्णु चालीसा का पाठ करें. इसके बाद विजया एकादशी की कथा सुनना अथवा पढ़ना चाहिए. पूजा का समापन भगवान विष्णु की आरती उतार कर करें. इसके पश्चात प्रसाद वितरित करें.

विजया एकादशी व्रत कथा

पौराणिक कथाओं के अनुसार श्रीराम ने लंका पर आक्रमण करने से पूर्व अथाह सागर देख चिंतित हो गये. लक्ष्मण ने श्रीराम से अनुरोध किया कि वह वकदाल्भ्य मुनि से सलाह लें. श्रीराम एवं लक्ष्मण वकदाल्भ्य मुनि की सलाह के अनुसार भगवान विष्णु की पीले पुष्प, पीले चंदन, नारियल, धूप-दीप एवं तिल आदि से पूजा करने की सलाह दी. श्रीराम ने मुनि की सलाह के अनुसार फाल्गुन मास की एकादशी के दिन भगवान विष्णुजी की विधिवत व्रत के साथ पूजा की. व्रत के प्रभाव से श्रीराम ने सागर पर सेतु बनवाकर लंका पर आक्रमण किया और रावण का संहार कर माता सीता को आजाद करवाया. इसके बाद और भी कई राजाओं ने युद्ध से पूर्व यह पूजा कर विजय प्राप्त किया. इसके बाद से ही विजया एकादशी व्रत की परंपरा चली आ रही है.

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