उगादी दक्षिण भारत के प्रमुख पर्वों में एक है. इस पर्व को दक्षिण भारत के कर्नाटक, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में नववर्ष के रूप में मनाया जाता है. उगादी पर्व हिंदू पंचांग के मुताबिक चैत्र माह के प्रथम दिन में खुशी, आशा और नई शुरुआत के रूप में सेलिब्रेट करते हैं. यह पर्व मुख्य रूप से कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना राज्यों में मनाया जाता है. अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार उगादी पर्व मार्च अथवा अप्रैल माह में पड़ता है. उगादी दक्षिण भारत में अपनाए जाने वाले बंद्र और सौर कैलेंडर के अनुसार नववर्ष की शुरुआत का प्रतीक है. आइये जानते हैं उगादी 2024 के इतिहास, महत्व एवं सेलिब्रेशन आदि के बारे में
उगादि का इतिहास
उगादी का इतिहास सदियों पुराना है. कहा जाता है कि इसकी उत्पत्ति सातवाहन राजवंश से है, जिसने लगभग 2.30 ईस्वी से 220 ईस्वी तक वर्तमान आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और महाराष्ट्र के कुछ हिस्सों पर शासन किया था. उगादी का उल्लेख प्राचीन ग्रंथों एवं शिलालेखों में भी मिलता है. इसके अलावा इसके पीछे कई मान्यताए एवं लोक कथाएं प्रचलित हैं. उगादी का शाब्दिक अर्थ युगादि से लिया गया है. क्षेत्र एवं भाषा के आधार पर भी इसे अलग-अलग जुबान प्राप्त हैं. उदाहरण के लिए महाराष्ट्र में गुड़ी पाड़वा, कर्नाटक एवं आंध्र प्रदेश में युगादि, तेलंगाना में चेट्टि चंदन आदि. यह भी पढ़ें : Gangaur Vrat 2024: अखंड सौभाग्य के लिए किया जाता है गणगौर व्रत! जानें इसका महत्व, मुहूर्त एवं पूजा-व्रत के नियम इत्यादि!
उगादि सेलिब्रेशन
अन्य पर्वों की तरह उगादी में भी कई रस्म-रिवाज एवं परंपराएं निभाई जाती हैं. सुबह-सवेरे उठकर शरीर पर तेल एवं उबटन लगाकर स्नान करते हैं. नये वस्त्र पहनते हैं. मान्यता है कि ऐसा करने से तन-मन शुद्ध होता है. इस तरह इसे नई शुरुआत का प्रतीक माना जाता है. लोग अपने घरों की साफ-सफाई करके उसे आम के पत्तों, फूलों एवं रंगोली आदि से सजाते हैं. आम के पत्ते शुभ माने जाते हैं. इससे घर में शुभता आती है. घर के सभी लोग नये-नये वस्त्र पहनते हैं. भगवान की पूजा-अनुष्ठान करते हैं. पूजा के पश्चात परिवार एवं समाज के साथ खुशियां मनाते हैं. नववर्ष की बधाइयां देते हैं, साथ ही घर आये मेहमानों को घर में बने तिल के लड्डू, पूरी, चना, राजगीर के पराठे, आम और नारियल के पन्ने जैसे पकवान खिलाकर उनका स्वागत करते हैं.