स्वर्ण मंदिर की सामुदायिक रसोई जहां हजारों लोग रोज खाते हैं खाना

यहां पूरे साल अहर्निश यानी दिन-रात चौबीसों घंटे लंगर जारी रहता है

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अमृतसर का स्वर्ण मंदिर भारत के सबसे प्रसिद्द मंदिरों में से एक है. इसे हरमंदिर साहिब के नाम से भी जाना जाता है. स्वर्ण मंदिर में प्रतिदिन लाखों की संख्या में भक्तों का हुजूम उमड़ता है. इस मंदिर को सबसे पहले 16वीं शताब्दी में 5वें सिख गुरु, गुरु अर्जुन देव जी ने बनवाया था. आज के इस दौर में जाति, वर्ग, लिंग व धर्म के दायरे से ऊपर उठकर समता की मिसाल देखनी हो तो अमृतसर के हरमंदिर साहिब का लंगर देखें. ये वाकई में एक अनूठा उदाहरण है.

विश्व की सबसे बड़ी लंगर रसोई

दुनिया में सबसे बड़ी सामुदायिक रसोई के तौर पर अमृतसर के स्वर्ण मंदिर स्थित गुरु रामदासजी लंगर भवन कई मायने में बेमिसाल है. आमतौर पर यहां एक लाख लोगों का भोजन तैयार होता है और सभी धर्मो, जातियों, क्षेत्रों, देशों सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक वर्ग के लोग यहां भोजन करते हैं, जिनमें बच्चों से लेकर बूढ़े शामिल होते हैं. यहां पूरे साल अहर्निश यानी दिन-रात चौबीसों घंटे लंगर जारी रहता है. यह परंपरा सदियों से चली आ रही है. लंगर की शुरुआत सिख धर्म के प्रवर्तक गुरु नानक देव ने की थी. नानक देव ही सिख धर्म के प्रथम गुरु थे. उनके बाद के गुरुओं ने लंगर की पंरपरा को आगे बढ़ाया.

अस्पताल में भी भेजा जाता है भोजन:

लंगर में दिन हो या रात यहां हर समय श्रद्धालुओं का जमघट लगा रहता है, जो स्वेच्छा से लंगर में सेवा करने को तत्पर रहते हैं. यहां सेवा कार्य को गुरु का आशीर्वाद समझा जाता है. लंगर में हाथ बंटाने को सैकड़ों स्वयंसेवी तैयार रहते हैं. लंगर में तैयार भोजन रोजाना तीन बार अमृतसर में शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) द्वारा संचालित दो अस्पतालों में भेजा जाता है. खासतौर से उस वार्ड में भोजन जरूर भेजा जाता है, जहां मानसिक रोगों के मरीजों और नशीली दवाओं के आदी लोग उपचाराधीन अस्पताल में भर्ती होते हैं. एसपीजीसी के पास सभी सिख गुरुद्वारों के संचालन का दायित्व है.

लोग यहां अत्यंत श्रद्धा के साथ रोज संगत में शामिल होते हैं. पूरे पंजाब से ट्रकों व ट्रैक्टर ट्रॉलियों में लोग यहां पहुंचते हैं. इसके अलावा विभिन्न प्रांतों व देशों के लोग भी यहां लंगर में सेवा प्रदान करने के लिए आते हैं. स्थानीय निवासी वर्षों से इस सेवा कार्य में हिस्सा ले रहे हैं. महिलाएं व पुरुष सभी अपनी सरकारी व निजी नौकरियों से समय निकालकर यहां अपनी सेवा देने आते हैं, उनमें सभी धर्मो व जातियों के लोग शामिल होते हैं. हम स्नेह से सबका स्वागत करते हैं.

लंगर में मिलता है यह खाना

लंगर में शाहकारी भोजन ही मिलता है. लंगर के भोजन में दाल, चावल, चपाती, अचार और एक सब्जी मिलती है. इसके साथ मिष्ठान्न के तौर पर खीर होती है. श्रद्धालु लंगर भवन में लगे गलीचे पर कतार में बैठकर भोजन करते हैं. भीड़ को नियंत्रित करने के लिए एसजीपीसी के स्वयंसेवी एक बार में सिर्फ 100 लोगों को प्रवेश की अनुमति देते हैं. पूरी सावधानी से रोजाना पूरी व्यवस्था का संचालन किया जाता है. चपाती बनाने वाली आठ मशीनें हैं, जिनसे हजारों चपाती बनाई जाती है.

प्रतिदिन लगता इतना अनाज

लंगर के प्रभारी गुरप्रीत सिंह के मुताबिक, पूरी कवायद बहुत बड़ी है, लेकिन परमात्मा की कृपा से यह कार्य अनवरत चलता रहता है. हम 100 कुंटल चावल और प्रति कुंटल चावल पर 30-30 किलोग्राम से अधिक दाल व सब्जियों का उपयोग रोज करते हैं. रसोई तैयार करने में 100 से अधिक एलपीजी सिलिंडर की खपत रोज होती है. इसके अलावा सैकड़ों किलोग्राम जलावन का भी इस्तेमाल किया जाता है. यही नहीं, 250 किलोग्राम देसी घी की भी खपत है.

अमृतसर और आस-पास के 30,000-35,000 लोग रोज गुरुद्वारा पहुंचते हैं और तीन वक्त लंगर में शामिल होते हैं. इनमें ज्यादातर दूसरे प्रदेशों के अप्रवासी और गरीब लोग हैं, जो खुद भोजन का जुगाड़ नहीं कर पाते हैं. एसजीपीसी के सूचना कार्यालय के पदाधिकारी अमृत पाल सिंह ने कहा, बिना किसी भेदभाव के हमारे दरवाजे सबके लिए खुले हैं. हम समानता की अवधारणा का अनुपालन करते हैं.

इसके अलावा महिलाएं व पुरुष स्वयंसेवी हाथ से भी चपाती बनाते हैं. स्टील की लाखों थालियां, ग्लास व चम्मच हैं, जिनका उपयोग यहां श्रद्धालु करते हैं और इनकी सफाई भी श्रद्धालु खुद स्वेच्छा से करते हैं. साथ ही, स्वयंसेवी कार्यकर्ता भी बर्तनों की सफाई में लगे रहते हैं. यहां लंगर आपको कई तरह से संतुष्टि प्रदान करता है. यहां का अनुभव आपकी आत्मा पर प्रभाव छोड़ता है.

( इनपुट - आईएएनएस )

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