IVF and Risk of Stroke: आईवीएफ ट्रीटमेंट से महिलाओं में 66 प्रतिशत तक बढ़ सकता है स्ट्रोक का खतरा

एक चौंकाने वाले अध्ययन में यह बात सामने आई है कि जिन महिलाओं को विट्रो-फर्टिलाइजेशन (आईवीएफ) का उपचार मिला है, उनमें प्रसव के 12 महीनों के भीतर स्ट्रोक का खतरा बढ़ जाता है.

Pregnant Women (Photo Credit: Pixabay)

न्यूयॉर्क, 31 अगस्त: एक चौंकाने वाले अध्ययन में यह बात सामने आई है कि जिन महिलाओं को विट्रो-फर्टिलाइजेशन (आईवीएफ) का उपचार मिला है, उनमें प्रसव के 12 महीनों के भीतर स्ट्रोक का खतरा बढ़ जाता है. रटगर्स यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने 31,339,991 गर्भवती महिलाओं पर एक विश्लेषण किया, जिन्‍होंने 2010 से 2018 के बीच प्रसव कराया था. साथ ही उनका भी विश्लेषण किया गया, जिन्‍हें बांझपन का इलाज नहीं मिला. यह भी पढ़ें: 44 Medicine Price Under Control: BP, डिप्रेशन समेत इन बीमारियों की दवाएं हुईं सस्ती, NPPA ने तय की नई कीमतें

जेएएमए नेटवर्क ओपन में प्रकाशित पेपर में बताया गया है कि हालांकि अस्पताल में भर्ती होने की पूर्ण दर कम थी, लेकिन पाया गया कि बांझपन उपचार के मामलों में 66 प्रतिशत मामले स्ट्रोक के जोखिम से जुड़े थे. उनमें स्ट्रोक के घातक रूप, रक्तस्रावी स्ट्रोक से पीड़ित होने की संभावना दोगुनी थी, वहीं इस्केमिक स्ट्रोक से पीड़ित होने की संभावना 55 प्रतिशत अधिक थी.

इस्केमिक स्ट्रोक, अधिक सामान्य, मस्तिष्क के एक क्षेत्र में रक्त की आपूर्ति के नुकसान के कारण होता है, जबकि रक्तस्रावी स्ट्रोक रक्त वाहिका के टूटने से मस्तिष्क में रक्तस्राव के कारण होता है. महत्वपूर्ण बात यह है कि जोखिम में वृद्धि प्रसव के बाद पहले 30 दिनों में भी स्पष्ट थी.

यह अध्ययन तब सामने आया है, जब हाल के वर्षों में प्रौद्योगिकी में पर्याप्त प्रगति और नई दवाओं के विकास से बांझपन के इलाज में तेजी आई है. हृदय रोग (सीवीडी) महिलाओं में मृत्यु का प्रमुख कारण बना हुआ है. हर साल तीन में से एक मौत सीवीडी के कारण होती है. स्ट्रोक पुरुषों और महिलाओं दोनों में मृत्यु का तीसरा प्रमुख कारण है.

अध्ययनों से संकेत मिलता है कि 5 में से 1 महिला को अपने जीवनकाल में स्ट्रोक होने का खतरा होता है. सबूत बताते हैं कि कई लोग उन स्वास्थ्य कारकों को नहीं जानते हैं जो उन्हें स्ट्रोक या अन्य सीवीडी के खतरे में डालते हैं.

अध्ययन में इसके पीछे के कारणों का पता नहीं चल पाया है. शोधकर्ताओं ने कहा कि यह उन हार्मोन उपचारों के कारण हो सकता है, जो प्रक्रियाओं से गुजरने वाली महिलाएं लेती हैं. साथ ही उन महिलाओं के लिए अधिक जोखिम है, जिनमें ठीक से प्लेसेंटा इम्प्लांट नहीं होता.

शोधकर्ताओं ने स्ट्रोक के जोखिम को कम करने के लिए प्रसव के तुरंत बाद के दिनों में समय पर फॉलो-अप और दीर्घकालिक फॉलो-अप जारी रखने का आह्वान किया.

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