हमारे वेदों और पुराणों में महाबलशाली हनुमान जी पर अनगिनत कथाएं मिलेंगी. उनके हर नाम के साथ कई-कई कहानी है, जो हनुमान जी की गौरवगाथा का बखान करती है. लेकिन यह बात बहुत कम लोगों को मालूम होगी कि श्रीराम के अनन्य भक्त पवनपुत्र हनुमान जी की मां शापित स्त्री थीं, यह शाप उन्हें एक ऋषि ने दिया था. आखिर कौन थीं हनुमान जी की माता और किसने तथा क्यों उन्हें शाप दिया और वे शाप से कब और कैसे मुक्त हुईं? आइए जानें इस लोककथा से...
क्या है लोक कथा
कम ही लोग जानते होंगे कि हनुमान जी की माता इंद्र देवता के दरबार में अप्सरा थीं और उनका नाम पुंजिकस्थला था. कहा जाता है कि वह अभूतपूर्व सुंदरी और बहुत चंचल भी थीं. एक बार अपने चंचल स्वभाववश उन्होंने एक तेजस्वी ऋषि के तप में विघ्न डाल दिया. तप भंग होते ही ऋषि ने उन्हें शाप दिया कि अगले जन्म में तू बंदरिया बनेगी. तब पुंजिकस्थला का चैतन्य टूटा. उऩ्होंने ऋषि से माफी मांगते हुए कहा कि वे अपना शाप वापस ले लें. बार-बार प्रार्थना करने पर ऋषि को उन पर दया आ गई. ऋषि ने कहा हे कन्या शाप कभी वापस नहीं लिए जा सकते, लेकिन इसके साथ ही मैं तुझे वरदान देता हूं कि तेरा बंदरिया का रूप भी अद्वितीय और तू परम बलशाली पुत्र को जन्म देगी. भगवान शिव तेरे कोख में पलेंगे. इस तरह पुंजिकस्थला को महाबलशाली और दिव्य पुत्र की मां होने का आशीर्वाद मिला. इधर पुंजिकस्थला को जब इंद्र देव ने दुःखी देखा तो उन्होंने उसकी वजह पूछी. पुंजिकस्थला ने इंद्र भगवान को सारी बातें बताईं. इंद्र ने उऩ्हें कहा कि इस शाप से मुक्ति पाने के लिए उन्हें पृथ्वी पर जन्म लेकर वहीं पर अपने पति से मिलें. शिव जी के अवतार को जन्म देते ही उन्हें शाप से छुटकारा मिल जाएगा.
केसरी के साथ अंजनी की शादी
पुंजिकस्थला ने पृथ्वी पर अंजनी के नाम से जन्म लिया. एक दिन अंजनी जंगल में शिकार कर रही थीं, तभी उनका सामना एक महाबलशाली एवं दिव्य युवक से हुआ, जो निहत्था एक शेर से जूझ रहा था. अंजनी उस युवक के शौर्य पर मोहित हो उठीं. लेकिन जैसे ही उस युवक ने अंजनि की ओर देखा उसकी शक्ल भी बंदर जैसी हो गई. यह देख अंजनी जोर-जोर से विलाप करने लगीं. तब उक्त बानर ने कहा कि मैं और कोई नहीं बल्कि वानर राज केसरी हूं. इसके पश्चात केसरी और अंजनी ने शादी कर ली.
ऋषि ने अंजनी को सूर्य समान तेजस्वी पुत्र का वरदान दिया
शादी के काफी समय बाद भी अंजनी जब मां नहीं बन सकीं, तब चिंतातुर हो मातंग ऋषि से मिलीं. अंजनी की सारी बातें सुनकर ऋषि ने कहा कि अंजनी नारायण पर्वत के निकट स्वामी तीर्थ पर जाकर कठिन व्रत एवं तप करें, तभी उन्हें पुत्र-रत्न की प्राप्ति होगी. 12 वर्ष तक मात्र वायु पर ही जीवित रहीं. तब वायु देवता ने अंजनी को वरदान देते हुए कहा कि तुम्हारे कोख से सूर्य एवं अग्नि के समान तेजस्वी और वेद-वेदांगों को जानने समझने वाला महाबली पुत्र पैदा होगा. लेकिन अभी तुम्हें शिव भगवान के यहां कठोर तपस्या करनी होगी.
शाप से मुक्ति दिलाने शिव जी ने लिया जन्म
इसके पश्चात वे भगवान शिव की कड़ी तपस्या में लीन हो गईं. अंततः शिव भगवान जब अंजनी की तपस्या से प्रसन्न होकर उनसे वरदान मांगने को कहा तो अंजनी ने उन्हें बताया कि किस तरह साधु के शाप से मुक्ति पाने के लिए उन्हें शिव के अवतार को जन्म देना होगा. शिव जी तथास्तु कहकर अंतर्ध्यान हो गए.
इस तरह हुआ हनुमान जी का जन्म
संयोग से उसी समय अयोध्या के राजा दशरथ भी अपनी तीनों पत्नियों कौशल्या, कैकेयी और सुमित्रा के साथ पुत्र-रत्न की प्राप्ति के लिए श्रृंगी ऋषि से पुत्र कामेष्टि यज्ञ करवा रहे थे. यज्ञ की पूर्णाहुति पर स्वयं अग्निदेव ने प्रकट होकर श्रृंगी ऋषि को स्वर्ण पात्र में खीर का एक पात्र (कटोरा) देते हुए कहा, ऋषिवर, यह खीर तीनों रानियों को खिला दें, उनकी इच्छा अवश्य पूरी हो जाएगी. लेकिन तभी एक पक्षी खीर का एक अंश झपट कर उड़ गया. वह खीर कठोर तपस्या कर रही अंजनी के हाथों में गिरी. अंजनी ने उसे भगवान का प्रसाद समझ कर खा लिया.
प्रसाद खाने के पश्चात अंजनी माता गर्भवती हो गईं. अंततः अंजनी माता के गर्भ से हनुमान जी का जन्म हुआ. हनुमान जी को जन्म देने के पश्चात अंजनी पुनः अप्सरा बनकर इंद्रलोक में चली गईं और इस तरह महज हनुमान जी को जन्म देने के बाद माता अंजनी के रूप में पृथ्वी पर अवतरण लिया था.