मां दुर्गा का चौथा स्वरूप ‘कुष्मांडा’! जानें किस मंत्र के साथ, कैसे करें इनकी पूजा!
मां दुर्गा का चौथा स्वरूप ‘कुष्मांडा’ (Photo Credit-File Photo)

शारदीय नवरात्रि के चौथे दिन मां दुर्गा जी के चतुर्थ स्वरूप मां कुष्मांडा की पूजा अर्चना का विधान है. देवी पुराण के अनुसार सृष्टि की उत्पत्ति से पूर्व जब हर ओर अंधेरा छाया हुआ था, शक्ति की देवी मां दुर्गा ने इस ब्रह्माण्ड की रचना की थी. इसीलिए मां दुर्गा के इस स्वरूप को कुष्माण्डा के नाम से जाना जाता है. सृष्टि की उत्पत्ति करने के कारण इन्हें आदिशक्ति का नाम भी दिया गया है. इनकी पूजा आराधना से हृदय को शांति एवं लक्ष्मी की प्राप्ति होती हैं.

मां कुष्‍मांडा का महात्म्य

माता कुष्मांडा के 'कु' का आशय है 'कुछ', 'ऊष्‍मा' का 'ताप' और 'अंडा' का अर्थ है 'ब्रह्मांड'. शास्‍त्रों के अुनसार मां कुष्‍मांडा ने अपनी दिव्‍य मुस्‍कान से संसार में फैले अंधकार को दूर किया था. चेहरे पर हल्की मुस्कान लिए माता कूष्‍मांडा को सभी भक्तों के दुखों को हरने वाली मां भी कहा जाता है. मान्यतानुसार इनका निवास स्थान सूर्य है. इसीलिए माँ कुष्‍मांडा के पीछे सूर्य का दिव्य तेज दिखाया जाता है. मां दुर्गा का यह इकलौता ऐसा रूप है जिन्हें सूर्यलोक में रहने की शक्ति प्राप्त है.

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माता का दिव्य स्वरूप

माँ कुष्मांडा अपने दिव्य एवं भव्य रूप के साथ अष्टभुजाओं से युक्त हैं. जगहित के लिए उन्होंने अपने दाहिने हाथों में कमण्डल, धनुष, बाण, कमल पुष्प धारण कर रखे हैं. माता के बाईं हाथों में अमृत से भरा कलश, माला, गदा, चक्र विराजमान हैं. मां सिंह पर सवार अपने दिव्य तेज से दिशाओं व विदिशाओं को प्रकाशमान कर रही हैं. संपूर्ण जगत में चल, अचल सजीवों आदि में जो भी प्रकाश व आभा है, वह इन्हीं के प्रकाश पुंज से संभव हो रहा है. माँ की कृपा प्राप्त होती है तो भक्तों के रोग, दुःख, भय, चिंताएं समाप्त हो जाती हैं. प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष शत्रु उसका कुछ भी नहीं बिगाड़ सकते. मां शक्ति के इस कुष्मांडा स्वरूप की पूजा-अर्चना करते समय निम्न मंत्र का जाप करने से मनोवांछित फलों की प्राप्ति होती है.

सुरासंपूर्णकलशं, रुधिराप्लुतमेव च.

दधाना हस्तपद्माभ्य, कुष्मांडा शुभदास्तु

अर्थात अमृत से परिपूरित कलश को धारण करने वाली और कमल पुष्प से युक्त तेजोमय मां कुष्मांडा हमारे प्रत्येक कार्यों में सफलता का मार्ग प्रशस्त करें.

कैसे करें पूजा-अर्चना

नवरात्रि के चौथे दिन प्रातःकाल उठकर स्नान-ध्यान करें एवं हरे रंग का वस्त्र धारण करें. अब माता कुष्मांडा की प्रतिमा अथवा तस्वीर के सामने घी का दीप प्रज्जवलित करें, एवं माता को तिलक लगायें. देवी को हरी इलायची, सौंफ और कुम्‍हड़े का भोग लगाएं. वैसे मां कुष्मांडा को मालपुआ का भोग अतिप्रिय है. भोग लगाने के पश्चात निम्न मंत्र का 108 बार जाप करें. तत्पश्चात माता कुष्‍मांडा की आरती उतारें. पूजा सम्पन्न होने के पश्चात किसी ब्राह्मण को भोजन कराएं. इसके पश्चात स्वयं भोजन ग्रहण करें.

कूष्‍मांडा मंत्र

या देवी सर्वभू‍तेषु मां कूष्‍मांडा रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।