Rajmata Jijamata Jayanti 2021: छत्रपति शिवाजी महाराज को शूरवीर योद्धा बनाने में था उनकी मां जीजाबाई का अहम योगदान, जानें इस वीरांगना से जुड़ी ये रोचक बातें
जीजामाता और बाल शिवाजी महाराज (Photo Credits: Facebook)

Rajmata Jijamata Jayanti 2021:  आज राजमाता जीजाबाई की जयंती है.  हमारे देश के इतिहास के पन्ने ऐसी वीरांगनाओं के शौर्य, त्याग और ममत्व से भरे पड़े हैं जिन्होंने अपनी अदम्य बहादुरी से न केवल दुश्मनों के दांत खट्टे किये, बल्कि एक अदम्य मां की भूमिका निभाते हुए अपने पुत्र को शेर जैसा शक्तिशाली बनाया. ऐसी ही साहसी मां थीं माता जीजाबाई (Jijabai).. जिनके पुत्र थे  छत्रपति शिवाजी महाराज (Shivaji Maharaj).

मराठा साम्राज्य की जब भी चर्चा होगी, जीजामाता और शिवाजी (Jijamata And Shivaji) के बिना पूरी नहीं हो सकेगी. शिवाजी महाराज को साहसी, पराक्रमी एवं शूरवीर योद्धा के रूप में ढालने की भूमिका जीजामाता को ही जाता है. जिन्होंने पति की अनुपस्थिति में शिवाजी को अंगुलियां पकड़कर चलना सिखाया और उन्हें इस योग्य बनाया कि हर माएं अपनी संतान को शिवाजी महाराज जैसा बनने की कामना ईश्वर से करती हैं.

जन्म:

जीजाबाई का जन्म 12 जनवरी 1598 को महाराष्ट्र के बुलढाणा स्थित सिंदखेद की रहनेवाली महालसाबाई के गर्भ से हुआ था. पिता का नाम था लखुजी जाधव. बहुत छोटी-सी उम्र में जीजाबाई का विवाह शहाजी भोसले के साथ कर दिया गया था. उन दिनों शहाजी भोसले आदिल शाह सुल्तान की सेना में सैन्य कमांडर थे. विवाह के पश्चात जीजाबाई ने छह बेटियों और दो बेटों को जन्म दिया था. इन्हीं में एक थे शिवाजी महाराज. जीजाबाई जितनी सुंदर थीं, उतनी ही बहादुर और बुद्धिमान भी थीं. यह भी पढ़ें: Happy Mothers Day 2019: इस मदर्स डे अपनी माँ को दें ये गिफ्ट, खुशी से खिल उठेगा उनका चेहरा

कहा जाता है कि शिवाजी के जन्म के बाद युद्धों में शामिल होने के कारण शहाजी लंबे-लंबे समय तक उनसे दूर ही रहते थे. छोटी सी उम्र में आठ बच्चों की परवरिश आसान नहीं होती. लेकिन जीजामाता संघर्ष की इन कठिन परिस्थितियों में भी ना टूटीं और ना हार मानीं. जीजाबाई मातृत्व से भरी एक मां तो थीं ही, साथ ही बहादुर एवं सक्षम योद्धा के साथ-साथ कुशल प्रशासक भी थीं. शौर्यता उनके खून में था. शिवाजी महाराज जब बहुत छोटे से थे, तभी से जीजाबाई उऩ्हें बहादुर महापुरुषों की सच्ची कहानियां सुनाकर उन्हें उन जैसा बनने के लिए प्रोत्साहित करती थीं. शिवाजी जब भी मुश्किलों में घिरते, जीजामाता उनका मार्ग दर्शन करती थीं.

आम महिला से इतर थीं जीजाबाई

एक मां और पत्नी के अलावा उनके भीतर और भी कई गुण थे. वह खुद एक सक्षम योद्धा और कुशल प्रशासक थीं. शौर्यता उनके रगों में भरी थी. वे शिवाजी को हमेशा वीर योद्धाओं के किस्से सुनाकर उन्हें प्रेरित करतीं कि शिवाजी उन जैसा बनें. शिवाजी की हर मुश्किलों में वह आगे बढ़कर उन्हें रास्ता बतातीं और कहतीं कि मैं रास्ता मैं बताऊंगी, चलकर मंजिल तक तुम्हें अकेले पहुंचना होगा.

पति की अनुपस्थिति में आठ बच्चों की परवरिश किसी भी मां के लिए एक बड़ी चुनौती कही जायेगा, उस पर से शिवाजी को एक बहादुर योद्धा के रूप में गढ़ना इतना आसान नहीं था. लेकिन इस चुनौती को जीजामाता ने बड़ी सहजता से लिया. समर्थ गुरु रामदास की मदद से उन्होंने शिवाजी को छोटी सी उम्र से ही घुड़सवारी के साथ-साथ तीर तलवार, भाला इत्यादि चलाना सिखाया. वह हर पल उनके भीतर वीरता के बीज रोपित करतीं. देखते ही देखते युवाकाल तक पहुंचते-पहुंचते शिवाजी एक वीर योद्धा के रूप में विख्यात हो गये. मुगल शासक उनके नाम से खौफ खाते थे.

मां ने जगाया शिवाजी के भीतर का पौरुष

शिवाजी एक शूरवीर योद्धा के रूप में ढल ही रहे थे कि एक दिन जीजामाता ने उनसे कहा,- बेटा तुम्हें सिंहगढ़ के ऊपर फहराते विदेशी झंडे को किसी भी तरह से उतार फेंकना है. अगर तुम ऐसा करने में सफल नहीं रहे, तो तुम्हें मैं अपना बेटा नहीं समझूंगीं. माँ की बात सुन चिंतित होकर शिवाजी ने कहा, - माँ मुगलों की सेना बहुत बड़ी है, अभी हम उतने मजबूत नहीं हो सके हैं कि उनसे युद्ध कर सकें. ऐसे में उऩ पर विजय प्राप्त कर सिंहगढ़ पर अपनी ध्वजा लहराना मुश्किल कार्य होगा.

शिवाजी के मुख से ‘ना’ सुनकर वे नाराज भी हुईं और चिंतित भी. उन्होंने शिवाजी से क्रोधित होकर कहा, ठीक है जो कार्य तू नहीं कर सकता, वह मैं करूंगी, तू मेरी ये चूडियां पहनकर घर में बैठ. माँ के मुख से यह सुनते ही शिवाजी के भीतर का पौरुष जाग उठा, उन्होंने मातृत्व की भावनाओं का सम्मान करते हुए तत्काल नाना जी को बुलवाया और सिंहगढ पर आक्रमण की तैयारी करने को कहा. इतिहास में दर्ज है कि माँ की चुनौतियों को स्वीकारते हुए शिवाजी ने सिंहगढ़ पर आक्रमण किया और पहले ही प्रयास में एक बड़ी जीत हासिल की.

पति-पुत्र की जुदाई का दर्द नहीं बर्दाश्त कर सकीं

जीजाबाई के दूसरे बेटे थे संभाजी महाराज. ज्यादातर युद्ध क्षेत्र में रहने के कारण वह जीजामाता के सानिध्य में कम ही रहे, किन्तु जीजामाता के मन में संभाजी हमेशा रहते थे. एक दिन उन्हें खबर मिली कि संभाजी कर्नाटक में ‘अफजल खान’ के साथ युद्ध लड़ रहे हैं. पता नहीं क्यों इस बार उनके मन में संभाजी के लिए फिक्र पैदा हुई. इसी बीच उन्हें खबर मिली कि संभा जी युद्ध लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए. यह खबर जीजाबाई के लिए बेहद दु:खद थी. इसके कुछ दिनों पूर्व ही उन्हें उनके पति की मृत्यु का समाचार मिला ही चुका था. यह भी पढ़ें: Mother's Day 2019 Wishes And Messages: भगवान का दूसरा रूप होती है मां, मदर्स डे के इन प्यारे WhatsApp Stickers, Images, SMS और Facebook Greetings के जरिए उन्हें खास होने का एहसास दिलाएं

एक के बाद एक दो त्रासदीपूर्ण घटनाएं किसी भी औरत के लिए आसान नहीं होता. इन घटनाओं ने जीजामाता को पूरी तरह से तोड़ दिया था. कहते हैं कि यही वह पल था जब जीजामाता पहली बार विचलित हुईं और उन्होंने खुद को सती करने तक का मन बना लिया था, लेकिन शिवाजी ने हस्तक्षेप कर उन्हें ऐसा करने से रोक लिया. यद्यपि इसके बाद जीजामाता ज्यादा दिनों तक जीवित नहीं रहीं. शिवाजी का राज्याभिषेक के बाद 17 जून 1674 में उनकी मृत्यु हो गयी.

शिवाजी महाराज ने हमेशा मां को माना गुरु

मां के निधन के पश्चात भी छत्रपति शिवाजी महाराज मां के बताये रास्ते पर चलते रहे. उन्होंने अपना पूरा जीवन अपनी जनता की रक्षा में लगा दिया. निश्चित रूप से मां की नसीहतों के चलते ही छत्रपति शिवाजी महाराज आज भी युवाओं के दिलों पर राज करते हैं. धन्य है वह माँ, जिसने शिवाजी महाराज जैसे संपूर्ण योद्धा को जन्म दिया. और सदा प्रजा के हित के लिए कार्य किया.