Kaal Bhairav Jayanti 2019: सनातन धर्म के अनुसार मार्गशीर्ष कृष्णपक्ष की अष्टमी की मध्य-रात्रि में शिवजी ने कालभैरव के रूप में अवतार लिया था, इसलिए इसी दिन काल भैरव जयंती मनायी जाती है. अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार इस वर्ष 19 नवंबर को काल भैरव जयंती मनायी जायेगी. इस दिन शिवजी के मंदिरों में काल भैरव जी की विशेष पूजा-अर्चना होती है. मान्यता है कि भगवान शिव के इस स्वरूप की पूजा अनुष्ठान करने से साधक को सभी पापों से मुक्ति मिलती है और मृत्योपरांत उसे शिवलोक की प्राप्ति होती है. ज्योतिषियों के अनुसार काल भैरव की कृपा से राहु का प्रकोप भी शांत होता है.
काल भैरव को भगवान शिव का पांचवा रूद्र अवतार माना जाता है. शिव पुराण में उल्लेखित है कि सृष्टि की रचना सत्व, रज और तम से मिलकर हुई है. इसलिए शिव कण-कण में व्याप्त हैं,. शिवजी को ही इन तीनों गुणों का नियंत्रक माना गया है. काल भैरव को तंत्र का देवता भी माना जाता है. भगवान काल भैरव की पूजा करने से भूत-प्रेत जैसी समस्याएं नहीं सताती और भक्तों के सभी संकट दूर हो जाते हैं. शिव पुराण के अनुसार मार्गशीर्ष कृष्णपक्ष की अष्टमी की मध्य-रात्रि में भगवान शिव ने भैरव बाबा के रूप में अवतार लिया था. कहा जाता है कि इनसे काल भी डरता है, इसीलिए इन्हें काल भैरव कहा जाता है. पौराणिक ग्रंथों में काल भैरव को दिशाओं का रक्षक और काशी का संरक्षक भी बताया गया है.
काल भैरव की पूजा विधि
मार्गशीर्ष कृष्णपक्ष की अष्टमी के दिन प्रातःकाल सुबह स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहनना चाहिए. इसके बाद पितरों का तर्पण-पूजा करनी चाहिए. काल भैरव का जन्म मध्यरात्रि में हुआ था. इसलिए अर्ध-रात्रि में ही शिव-पार्वती जी के साथ इनकी पूजा की जाती है. भगवान काल भैरव को काला तिल, उड़द और सरसों का तेल अर्पित करने के बाद भैरव-मंत्र का जाप करना चाहिए. प्रसाद में काला तिल और उड़द से बनी वस्तुएं चढ़ानी चाहिए. भोग लगाने के बाद काल भैरव की शंख, नगाड़ा और घंटे से आरती की जाती है. इसके बाद किसी काले कुत्ते की विधि-वत पूजा करके उसे कुछ खिलाना चाहिए, क्योंकि इसे ही काल भैरव की सवारी माना जाता है. काला कुत्ता न मिलने पर किसी भी कुत्ते की पूजा कर उसे कुछ खिलाएं. अगले दिन किसी निर्धन व्यक्ति या ब्राह्मण को काले रंग की वस्तु दान करें. मान्यता है कि यदि शास्त्र के अनुरूप काल भैरव की पूजा की जाए तो मनचाही सिद्धियां प्राप्त हो जाती हैं.
काल भैरव की पौराणिक कथा
एक बार त्रिदेवों (ब्रह्मा-विष्णु-महेश) के बीच ‘कौन है सर्वश्रेष्ठ?’ पर विवाद उठा. विवाद का तत्काल हल बहुत जरूरी था. क्योंकि तीनों ही देवता अपने आपमें हर दृष्टि से सर्वशक्तिमान थे. इनके बीच युद्ध होने की स्थिति में सृष्टि का विनाश निश्चित था. अंततः देवताओं ने एक सभा की. सभी ने अपने-अपने विचार रखे, अंततः निष्कर्ष निकला कि त्रिदेवों में भगवान शिव ही सर्वोपरि हैं. भगवान विष्णु ने देवताओं की बात में अपनी सहमति प्रकट की, लेकिन सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा जी संतुष्ट नहीं थे. ब्रह्मा जी के पांचवे सिर ने क्रोधित होकर कहना शुरू किया कि, शिव नग्न रहते हैं, उनके पास न धन है, न ही वैभव. वह शरीर पर भस्म लगाकर घूमते हैं. यह सुन सभी देव-देवियों दुख हुआ. शिव जी को भी बहुत क्रोध आया. उसी अवस्था में शिव जी से एक दिव्ज्योति के रूप में शिशु उत्पन्न हुआ. ब्रह्मा को लगा की यह बालक (भैरव) उनके तेज से हुआ है. उन्होंने उसे कई वर प्रदान कर दिये. लेकिन ब्रह्मा के पांचवें सिर से शिव जी के लिए निकले गलत शब्दों से नाराज होकर भैरव जी ने अपनी सबसे छोटी उंगली से ब्रह्मा जी के पांचवे सिर को काट डाला. इससे उन्हें ब्रह्म हत्या का दोष लग गया. शिव जी ने कहा ब्रह्महत्या के कारण तुम त्रिलोक में तब तक भटकोगे जब तक तुम इस दोष से मुक्त न हो जाओं. उधर ब्रह्मा जी का वह पांचवां शीश काशी में जा गिरा. भगवान शिव ने भैरव जी को काशी का कोतवाल बना दिया.
काल भैरव जयंती मंगलवार 19 नवंबर 2019
अष्टमी प्रारंभ मंगलवार 19 नवंबर 2019 दोपहर 03.35 बजे
अष्टमी समाप्त बुधवार 20 नवंबर 2019 दोपहर 01.41 बजे
भैरव बाबा को ब्रह्म-हत्या के कारण दण्ड मिला. वह कई दिनों तक भिखारी की तरह भटकते रहे. अंततः जब वे काशी पहुंचे तभी उनके दण्ड की अवधि पूरी हुई. दण्ड पाने के कारण इनका एक नाम ‘दण्डपाणि’ भी पड़ा. ज्योतिषियों के अनुसार धर्म शास्त्रों में अष्ट भैरव से लेकर कुल 64 स्वरूप भैरव जी हैं. शिव जी के रज, तम और सत्व गुणों के आधार पर हर भैरव जी की पूजा अलग-अलग मनोकामनाओं के लिए की जाती है.