Year Ender 2024: 'हिंदुत्व' से लेकर 'जहरीले सांप..' तक, वो विवादित बयान जिन्होंने बटोरी सुर्खियां

साल 2024 अलविदा कहने वाला है और नया साल 2025 दस्तक दे रहा है. यह साल सियासत के लिहाज से काफी हलचल भरा रहा. देश में लोकसभा चुनाव के साथ कई राज्यों में विधानसभा चुनाव भी हुए.

Mallikarjun Kharge (img: tw)

नई दिल्ली, 17 दिसंबर : साल 2024 अलविदा कहने वाला है और नया साल 2025 दस्तक दे रहा है. यह साल सियासत के लिहाज से काफी हलचल भरा रहा. देश में लोकसभा चुनाव के साथ कई राज्यों में विधानसभा चुनाव भी हुए. इस दौरान कुछ बयान ऐसे भी रहे जिन्होंने देश को झकझोर कर रख दिया. ध्रुवीकरण की राजनीति के चलते ऐसी टिप्पणियां की गईं जिन्होंने विवाद को जन्म दिया. लिहाज किसी ने नहीं किया. मौका मिला तो जमकर दिल का गुबार निकाला और जब घिरे तो स्पष्टीकरण भी दिया.

जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री और पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती की बेटी इल्तिजा मुफ्ती का हालिया बयान सुर्खियों में है. उन्होंने 'हिंदुत्व' को एक "बीमारी" बताया. इल्तिजा मुफ्ती ने 7 नवंबर को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर एक वीडियो पोस्ट कर लिखा, "यह सब देखकर भगवान राम भी बेबसी और शर्म से सिर झुका लेंगे कि उनके नाम का इस्तेमाल करके नाबालिग मुस्लिम बच्चों को सिर्फ इसलिए चप्पलों से मारा जा रहा है क्योंकि उन्होंने राम का नाम लेने से इनकार कर दिया. 'हिंदुत्व' एक बीमारी है, जिसने लाखों भारतीयों को प्रभावित किया है और भगवान के नाम को कलंकित किया है." खूब हंगामा मचा तो बोलीं हमें गलत को गलत कहने से परहेज नहीं करना चाहिए. यह भी पढ़ें : मध्यप्रदेश में ‘लाडली बहना’ योजना के तहत 16 महीने से कोई नया पंजीकरण नहीं हुआ: मंत्री

महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने भी कुछ ऐसा ही किया. सांगली में एक रैली को संबोधित करते हुए खड़गे ने भाजपा और आरएसएस की तुलना "जहर" से की थी और उन्हें भारत में "राजनीतिक रूप से सबसे खतरनाक" बताया.

मल्लिकार्जुन खड़गे ने चुनावी जनसभा को संबोधित करते हुए कहा था "अगर भारत में राजनीतिक रूप से सबसे खतरनाक कोई चीज है तो वह है भाजपा और आरएसएस. वे जहर की तरह हैं. अगर सांप काटता है तो वह व्यक्ति (जिसे काटा गया है) मर जाता है. ऐसे जहरीले सांप को मार देना चाहिए."

इनसे एक कदम आगे बढ़ कांग्रेस नेता भाई जगताप ने तो ईसीआई को ही नहीं छोड़ा. आईएएनएस से बातचीत में आपत्तिजनक टिप्पणी की. चुनाव आयोग को 'कुत्ता' तक कहा. बोले, "चुनाव आयोग तो कुत्ता है. पीएम मोदी के बंगले के बाहर बैठा कुत्ता बनकर काम कर रहा है. लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए बनाई गई सभी एजेंसियां अब कठपुतलियां बन गई हैं और नरेंद्र मोदी के प्रभाव में काम कर रही हैं. एजेंसियां, जो हमारे लोकतंत्र की रक्षा के लिए थी, उसका दुरुपयोग किया जा रहा है. महाराष्ट्र और देश भर में चल रही घटनाएं दिखाती हैं कि किस तरह व्यवस्था से छेड़छाड़ की जा रही है."

बिहार की मुख्य विपक्षी पार्टी राजद भी अनर्गल बोलों को लेकर चर्चा में रहा. साल का अंत आते आते पार्टी अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव ने बेहद शर्मनाक बयान दिया. राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव ने 10 दिसंबर को नीतीश कुमार की महिला संवाद यात्रा पर सवाल उठाते हुए कहा, "वह नैन सेंकने जा रहे हैं. इसके बाद वह सरकार बनाएंगे." इसी बयान को लेकर लालू प्रसाद यादव को आलोचनाओं का सामना करना पड़ा. लोगों को वर्षों पहले हेमा मालिनी को लेकर दी गई टिप्पणी याद आ गई.

दक्षिण भारत से हिंदुत्व को लेकर कई बार अटपटे बयान दिए गए. जिसको मौका मिला उसने सनातन धर्म को लेकर भड़ास निकाली. सिलसिला 2023 में डीएमके नेता उदयनिधि मारन के बयान से शुरू हुआ था. जिन्होंने सनातन को एक बीमारी बताया था.

तो इस साल 2 अक्टूबर को कर्नाटक के स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री दिनेश गुंडू राव ने एक कार्यक्रम में वीर सावरकर को लेकर विवादास्पद टिप्पणी की. उन्होंने अपने बयान में कहा, वीर सावरकर एक ब्राह्मण थे, लेकिन वह मांसाहारी थे और बीफ खाते थे. उन्होंने कभी गाय के वध का विरोध नहीं किया. इस विषय पर उनकी सोच काफी आधुनिक थी. उनके विचार एक तरह से कट्टरपंथी थे, जबकि दूसरी तरफ वह आधुनिकता को अपनाते थे. कुछ लोग यह भी कहते हैं कि वह एक ब्राह्मण होने के नाते खुलकर मांस खाते थे और इसका प्रचार करते थे. दूसरी तरफ, महात्मा गांधी एक सख्त शाकाहारी थे और हिंदू सांस्कृतिक रूढ़िवाद में उनकी गहरी आस्था थी. उन्होंने गांधी को एक लोकतांत्रिक व्यक्ति बताया, जो अपनी सोच में प्रगतिशील थे."

मोहम्मद अली जिन्ना का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा, "जिन्ना ने एक और चरमपंथ का प्रतिनिधित्व किया. वे कभी भी कठोर इस्लामवादी नहीं रहे, और कुछ लोगों का कहना है कि उन्होंने सूअर का मांस भी खाया. हालांकि, वह बाद में मुसलमानों के लिए एक प्रतीक बन गए. जिन्ना कभी भी कट्टरपंथी नहीं थे, लेकिन सावरकर थे." दिनेश गुंडू राव के इस बयान पर सियासी कोहराम मचा, भाजपा ने कड़ा एतराज जताते हुए उन्हें इसे वीर सावरकर का अपमान बताया था.

नेताओं की ओर से विवादित बयान देने का सिलसिला यहीं नहीं थमा. 24 सितंबर को हिमाचल प्रदेश के राजस्व मंत्री जगत सिंह नेगी ने मंडी सांसद कंगना रनौत को लेकर विवादास्पद टिप्पणी की. मानसून सत्र के दौरान नेगी ने सदन में आपदा पर चर्चा करते हुए कहा था, "कंगना राज्य में तब आईं जब सब कुछ सामान्य था. न तो वह तब आईं जब भारी बारिश की चेतावनी थी, न ही तब जब उनके मंडी लोकसभा क्षेत्र में नौ लोग मर गए. वह बारिश के दौरान नहीं आना चाहती थीं, क्योंकि इससे उनका मेकअप धुल जाता, और मेकअप के बिना लोग यह नहीं बता पाते कि यह कंगना रनौत हैं या उनकी मां."

देश में ही नहीं सात समंदर पार से भी ऐसी टिप्पणी की गई जिसने सियासी बवाल मचा दिया. आठ मई को इंडियन ओवरसीज कांग्रेस के अध्यक्ष सैम पित्रोदा ने लोकसभा चुनाव के दौरान नस्लीय टिप्पणी करते हुए नई बहस को जन्म दे दिया. सैम पित्रोदा ने भारतीयों के खिलाफ नस्लीय टिप्पणी करते हुए कहा कि उत्तर भारत के लोग तो सफेद नजर आते हैं, जबकि, पूर्वी भारत के लोग चाइनीज दिखते हैं. दक्षिण भारतीय लोग अफ्रीकी जैसे और पश्चिम भारत के लोग अरब के लोगों जैसे दिखते हैं. हालांकि, विवाद बढ़ता देख कांग्रेस ने सैम पित्रोदा ने इस बयान से किनारा करते हुए इसे उनकी निजी राय बताया था.

देश की सियासत में इस साल संविधान की गूंज सड़क से लेकर संसद तक दिखाई दी. लोकसभा चुनावी समर में 14 अप्रैल को भाजपा के पूर्व सांसद लल्लू सिंह ने फैजाबाद के मिल्कीपुर विधानसभा क्षेत्र में एक सार्वजनिक बैठक में कथित तौर पर कहा था, "लोकसभा में 272 सांसदों के साथ सरकार बनाई जा सकती है, लेकिन संविधान में संशोधन करने या नया संविधान बनाने के लिए हमें दो-तिहाई से अधिक बहुमत की जरूरत है." लल्लू सिंह ने इस विवादित टिप्पणी से किनारा कर लिया लेकिन विपक्ष ने इसे चुनाव के दौरान खूब भुनाया. जिसका असर लोकसभा चुनाव में देखने को मिला.

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