न्यूजक्लिक मामले में 46 पत्रकारों के खिलाफ पुलिस कार्रवाई का विरोध करते हुए मीडिया संगठनों ने मुख्य न्यायाधीश को चिट्ठी लिखी है. उनसे अपील की गई है की वो मीडिया के खिलाफ जांच एजेंसियों के 'दमनकारी' इस्तेमाल को रोकें.यह चिट्ठी मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ को कम से कम 15 मीडिया संगठनों ने मिल कर लिखी है, जिनमें प्रेस क्लब ऑफ इंडिया, मुंबई प्रेस क्लब, दिल्ली यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट्स, डिजिपब न्यूज इंडिया फाउंडेशन आदि जैसे संगठन शामिल हैं.
इन संगठनों ने सीजेआई को लिखा है कि आज भारत में पत्रकारों का एक बड़ा धड़ा अपने ऊपर "बदले की कार्रवाई का खतरा" महसूस कर रहा है, जिसके बारे में सीजेआई खुद कह चुके हैं कि प्रेस के ऊपर यह खतरा नहीं मंडराना चाहिए.
पत्रकारिता नहीं है आतंकवाद
न्यूजक्लिक मामले में पुलिस की कार्रवाई का हवाला देते हुए चिट्ठी में लिखा गया है कि तीन अक्टूबर को दिल्ली पुलिस की विशेष शाखा ने न्यूजक्लिक से जुड़े 46 पत्रकारों और अन्य लोगों के घरों पर छापे मारे और दो लोगों को आतंकवाद के मामलों में इस्तेमाल किए जाने वाले कानून यूएपीए के तहत गिरफ्तार कर लिया.
उन सभी के इलेक्ट्रॉनिक उपकरण बिना उनके अंदर मौजूद डाटा की सुरक्षा सुनिश्चित किए हुए जब्त कर लिए गए. संगठनों ने लिखा है कि यूएपीए का इस्तेमाल विशेष रूप से डरावना है और "पत्रकारिता को आतंकवाद बता कर मुकदमा नहीं चलाया जा सकता है."
चिट्ठी में लिखा गया है कि पत्रकार सिद्दीक कप्पन का मामला यह दिखाता है कि यूएपीए के तहत गिरफ्तार किए गए पत्रकारों को सालों नहीं तो महीनों तक बिना जमानत के जेल में रखा जा सकता है.
हस्तक्षेप की मांग
संगठनों ने लिखा है कि उन्हें डर है कि पत्रकारों के खिलाफ स्टेट के कदम हद पार कर गए हैं और अगर इन कदमों को इसी दिशा में बढ़ते जाने दिया गया तो स्थिति को सुधारना संभव नहीं रह जाएगा.
इसलिए पत्रकारों ने सर्वोच्च न्यायालय से निवेदन किया है कि वो हस्तक्षेप करे ताकि मीडिया के खिलाफ जांच एजेंसियों के बढ़ते हुए दमनकारी इस्तेमाल को रोका जा सके. चिट्ठी में सीजेआई के आगे तीन विशेष मांगें रखी गई हैं.
पहला, मनमाने ढंग से पत्रकारों के फोन और लैपटॉप को जब्त करने पर रोक लगाने के मानक बनाए जाएं. पत्रकारों से पूछताछ और उनका सामान जब्त करने के लिए दिशा-निर्देश बनाए जाएं.
तीसरा, ऐसी स्टेट एजेंसियों और उनके अधिकारियों की जवाबदेही सुनिश्चित करने के तरीके तलाशे जाएं जो कानून की हदें पार करते हैं या पत्रकारों के खिलाफ अस्पष्ट जांच का हवाला देकर जानबूझकर अदालतों को गुमराह करते हैं.