रूस-यूक्रेन युद्ध से एक भारतीय शहर में क्यों बढ़ी आत्महत्याएं

हजारों किलोमीटर दूर किसी युद्ध का असर कैसे एक देश में आर्थिक संकट पैदा कर सकता है इसका सबसे अच्छा उदाहरण भारत की ‘हीरा नगरी’ सूरत है.

प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

हजारों किलोमीटर दूर किसी युद्ध का असर कैसे एक देश में आर्थिक संकट पैदा कर सकता है इसका सबसे अच्छा उदाहरण भारत की ‘हीरा नगरी’ सूरत है. रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से सूरत के हीरा कामगारों में आत्महत्या की संख्या बढ़ी है.सूरत में 6 लाख से ज्यादा लोग हीरा उद्योग में काम करते हैं. आंकड़े बताते हैं कि दुनिया में हीरे काटने और पॉलिश करने का 80 प्रतिशत काम सूरत में होता है. युद्ध से पहले सूरत का हीरा उद्योग अफ्रीका में बाढ़, पश्चिम से मांग में गिरावट, चीन को कम निर्यात जैसी समस्याओं से जूझ रहा था. युद्ध शुरू होने के बाद पश्चिमी देशों द्वारा रूस के खिलाफ लगाए गए प्रतिबंधों ने आग में घी डालने का काम किया.

युद्ध ने कैसे पैदा किया आर्थिक संकट

जेम एंड ज्वैलरी एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल (जीजेईपीसी) के क्षेत्रीय अध्यक्ष दिनेश नवदिया कहते हैं, "भारत में 30 प्रतिशत से ज्यादा कच्चे माल की आपूर्ति रूस की अलरोसा खदान से होती है."

रूस के हमले के बाद यूरोपीय संघ और जी-7 ने तीसरे देशों के माध्यम से रूसी हीरे के आयात पर प्रतिबंध लगा दिया, जिससे भारत के हीरा उद्योग के सामने कच्ची सामग्री का संकट पैदा हो गया.

मार्च 2022 में प्रतिबंध लागू होने के बाद भारत के हीरा राजस्व में लगभग एक तिहाई की गिरावट दर्ज की गई. स्थानीय मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार आर्थिक संकट की वजह से पिछले 16 महीनों में सूरत में हीरा पॉलिश करने वाले कम से कम 63 लोगों ने आत्महत्या की है.

व्यापारियों के पास हीरे की अधिकता

वित्त वर्ष 2023-24 में भारत का कटे और पॉलिश किए हुए हीरे का निर्यात 27.6 प्रतिशत गिर गया, जिसमें शीर्ष तीन देशों - संयुक्त राज्य अमेरिका, चीन और संयुक्त अरब अमीरात से महत्वपूर्ण कटौती दर्ज की गयी. नवादिया बताते हैं कि इस वजह से कंपनियों के स्टॉक में सामान्य से तीन गुना की बढ़ोत्तरी हुई और व्यापारी अपना माल कम दरों पर बेचने के लिए मजबूर हो गए.

आर्थिक संकट से जूझ रहे हीरा पॉलिश करने वाले कामगारों को आत्महत्या से बचाने के लिए गुजरात हीरा श्रमिक संघ के प्रमुख रमेश जिलारिया ने हेल्पलाइन की शुरूआत की है. जिलारिया बताते हैं कि अब तक मदद के लिए 1,600 से ज्यादा कॉल आ चुकी हैं.

एक ऐसी ही कॉल का जिक्र करते हुए वो कहते हैं, "एक दिन हमें एक ऐसे शख्स का फोन आया जो पिछले चार महीने से बेरोजगार था. उसके पास घर का किराया और बच्चों की स्कूल फीस देने के भी पैसे नहीं थे. उसके ऊपर 5 लाख का कर्ज था और उसने कहा कि वो थक चुका है और आत्महत्या करना चाहता है. हमने न सिर्फ उसकी जान बचायी बल्कि आर्थिक मदद भी की. लेकिन हम सभी की मदद नहीं कर सकते हैं क्योंकि यहां लोगों को हीरा पॉलिश करने के अलावा कोई और काम नहीं आता है."

काम के घंटे और वेतन में कटौती

हीरा पॉलिश करने वाले 45 साल के मनोज को तीस साल की नौकरी के बाद मई में काम से निकाल दिया गया. अब वो कम वेतन में पार्सल पहुंचाने का काम करने पर मजबूर हैं. पैसे की कमी के चलते वो घर का किराया और बच्चों के स्कूल की फीस भी नहीं भर पाए हैं. खर्चे चलाने के लिए उन्हें अपनी पत्नी का मंगलसूत्र गिरवी रखना पड़ा है.

सरकार या हीरा श्रमिक संघ के पास इस बात का पूरा डेटा नहीं है कि कितने लोगों ने अपनी नौकरी गंवायी है क्योंकि भारत के कई उद्योगों की तरह हीरा उद्योग के कुछ हिस्से अनौपचारिक रूप से काम करते हैं.

जिलारिया कहते हैं कि हमने ऐसे लोगों का पता लगाने के लिए गूगल फॉर्म के जरिए सर्वे करने की कोशिश की थी लेकिन ज्यादातर लोग इसका इस्तेमाल करना नहीं जानते थे. उनका अंदाजा है कि पिछले छह महीने में पॉलिशिंग के काम में लगे कम से कम 50 हजार लोगों ने अपनी नौकरी खो दी है.

जीजेईपीसी के क्षेत्रीय अध्यक्ष नवदिया कहते हैं कि कई कंपनियों ने पैसे बचाने के लिए हफ्ते में चार दिन काम करना शुरू कर दिया है. कई कंपनियों ने काम के घंटों में भी कटौती की है. जो शख्स पहले 40 हजार रुपये प्रति माह कमा रहा था, अब उसकी कमाई घटकर मात्र 23 हजार रुपये रह गई है.

मोदी काल की योजना वापस चाहते हैं कामगार

साल 2008-09 में वैश्विक आर्थिक संकट के दौरान गुजरात के हीरा कामगारों के कौशल को उन्नत करने के लिए तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने 'रतनदीप योजना' की शुरुआत की थी. गुजरात हीरा श्रमिक संघ इस योजना को फिर से शुरू करने की मांग कर रहा है.

राज्य सरकार को लिखे गए पत्र में संघ ने आत्महत्या करके जान गंवाने वाले कारीगरों के परिवारों के लिए आर्थिक सहायता की मांग की है. जिलारिया बताते हैं कि इन पत्रों का फिलहाल कोई जवाब नहीं मिला है.

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