Artificial Rain: एयर क्वालिटी में लगातार गिरावट से गैस चैंबर बनी दिल्ली में हालात कैसे सामान्य हो इसके लिए सरकार और प्रशासन लगातार जद्दोजहद में लगे हैं. लगता है इस बार प्रदूषण से निजात पाने के लिए दिल्ली सरकार को आर्टिफिशियल रेन करवानी पड़ेगी. दिल्ली के पर्यावरण मंत्री गोपाल राय ने कृत्रिम बारिश (Artificial Rain) के लिए केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव को चिट्ठी लिखी है. राय ने चिट्ठी में कहा है कि दिल्ली में प्रदूषण बेहद गंभीर श्रेणी में है और इससे निपटने के लिए कृत्रिम बारिश कराने की जरूरत है.
गोपाल राय का कहना है कि दिल्ली में ग्रैप-4 की पाबंदियां लगाई गई हैं. पॉल्यूशन फैलाने वाली गाड़ियों पर प्रतिबंध लगाए जा रहे. लगातार स्मॉग की चादर को हटाने के लिए प्रयास किया जा रहे. बावजूद इसके स्मॉग में कमी नजर नहीं आ रही.
दिल्ली के पर्यावरण मंत्री ने कहा कि हमें लगता है कि अब वो समय आ गया है कि जब राष्ट्रीय राजधानी के अंदर आर्टिफिशियल रेन करवाई जाए. इसके लिए हमने अगस्त में ही तैयारी शुरू कर दी थी, ताकि जब स्थिति खराब हो तो उस पर काम किया जा सके.
आइए जानते हैं कि ये क्लाउड सीडिंग क्या है, कैसे होती है कृत्रिम बारिश.
क्लाउड सीडिंग क्या है?
क्लाउड सीडिंग एक तकनीक है जिसमें बादलों में कुछ रसायनों का छिड़काव किया जाता है, ताकि बारिश हो. इसमें मुख्यतः सिल्वर आयोडाइड, पोटेशियम आयोडाइड, या सूखी बर्फ का उपयोग किया जाता है. ये पदार्थ पानी की बूंदों के इर्द-गिर्द नाभिक (Nuclei) के रूप में काम करते हैं, जिससे बादलों में संघनन (Condensation) बढ़ता है और बारिश होने की संभावना बढ़ जाती है.
आसमान में 40% बादल कृत्रिम बारिश के लिए जरूरी
कृत्रिम बारिश के लिए आसमान में 40% बादल होने चाहिए. उन बादलों में थोड़ा पानी होना चाहिए. अब इन दोनों स्थितियों में थोड़ी कमी चल जाती है. लेकिन ज्यादा अंतर हुआ तो दिल्ली पर कृत्रिम बारिश कराने का ट्रायल बेकार हो जाएगा. गलत असर भी हो सकता है. ज्यादा बारिश हो गई तो भी दिक्कत होगी.
कैसे की जाती है क्लाउड सीडिंग?
इस प्रक्रिया को विभिन्न तरीकों से किया जा सकता है:
- विमान के माध्यम से: रसायनों को बादलों में छिड़कने के लिए हवाई जहाज का उपयोग किया जाता है.
- जमीन आधारित जनरेटर: रसायन उत्पन्न कर हवा में छोड़े जाते हैं.
- रॉकेट: कुछ विशेष परिस्थितियों में रॉकेट का भी उपयोग किया जा सकता है.
दिल्ली के पर्यावरण मंत्री गोपाल राय ने हाल ही में केंद्र सरकार से आग्रह किया है कि कृत्रिम बारिश के माध्यम से प्रदूषण को कम करने के लिए तत्काल कदम उठाए जाएं. क्लाउड सीडिंग को एक अस्थायी उपाय के रूप में देखा जा रहा है, जो वायु में मौजूद हानिकारक कणों को नीचे गिराने और हवा को साफ करने में मदद कर सकता है.
आईआईटी कानपुर ने दिल्ली सरकार को इस परियोजना का प्रस्ताव दिया है, जिसमें लगभग 1 लाख रुपये प्रति वर्ग किलोमीटर का खर्च बताया गया है. इसके लिए बादलों की मूवमेंट का सही आकलन भी जरूरी है.
अगर यह गलत हुआ तो बारिश उस जगह नहीं होगी, जहां इसे करवाने का प्रयास हुआ है. इस तरह की बारिश करवाने में एक बार में करीब 10 से 15 लाख रुपये का खर्च आता है. सर्दियों में बादलों में पर्याप्त पानी नहीं होता. इतनी नमी नहीं होती कि बादल बनें. मौसम ड्राई होगा तो पानी की बूंदे जमीन पर पहुंचने से पहले ही भांप बन जाएंगी.
क्लाउड सीडिंग से कम होगा प्रदूषण?
वैज्ञानिकों के अनुसार, क्लाउड सीडिंग प्रदूषण का स्थाई हल नहीं है, लेकिन स्मॉग के दौरान इसे अपनाया जा सकता है. इससे थोड़े समय के लिए राहत मिल जाएगी. इसका अधिकतम असर इसपर निर्भर करेगा कि बारिश के बाद हवा किस गति से चलती है. इसलिए इसका इस्तेमाल सिर्फ आपात स्थिति में ही हो सकता है. वैज्ञानिकों के अनुसार कृत्रिम बारिश स्मॉग या गंभीर वायु प्रदूषण का स्थाई इलाज नहीं है.