Lok Sabha Election 2024: कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों के लिए अस्तित्व की लड़ाई है यह चुनाव! बिना PM फेस कैसे पार होगी नाव?
देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस पिछले दो लोकसभा चुनाव में हार के बाद वह एक बार फिर बेहद मुश्किल माने जा रहे चुनाव में उतर रही है. इस चुनाव में उसके सामने अस्तित्व बचाने की कड़ी चुनौती है क्योंकि एक बार उसका मुकाबला प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली शक्तिशाली भाजपा से है.
नयी दिल्ली, 16 मार्च: देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस पिछले दो लोकसभा चुनाव में हार के बाद वह एक बार फिर बेहद मुश्किल माने जा रहे चुनाव में उतर रही है. इस चुनाव में उसके सामने अस्तित्व बचाने की कड़ी चुनौती है क्योंकि एक बार उसका मुकाबला प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली शक्तिशाली भाजपा से है. कुछ ऐसी ही चुनौती आम आदमी पार्टी, वाम दलों और कई अन्य क्षेत्रीय दलों के लिए भी है.
कांग्रेस का आजादी से पहले से लेकर पिछले दशक तक राष्ट्रीय राजनीतिक परिदृश्य में बड़ा दबदबा था, लेकिन कुछ वर्षों से वह लगातार सिमटती जा रही है. अब वह केवल तीन राज्यों - कर्नाटक, हिमाचल प्रदेश और तेलंगाना में अपने दम पर सत्ता में है. इस पर भी एक बड़ा सवालिया निशान है कि क्या वह ‘इंडिया’ गठबंधन की अगुवाई का दावा भी कर सकती है.
केंद्र में मोदी के रहते पिछला दशक 138 साल पुरानी पार्टी के लिए बहुत मुश्किल भरा रहा. वह लोकसभा में विपक्ष के नेता के पद के लिए आवश्यक सीटें भी हासिल करने में विफल रही. कांग्रेस नेता पार्टी की गौरवशाली विरासत पर भरोसा करते हुए पतन के रुकने और फिर से खड़े होने की उम्मीद कर रहे हैं, हालांकि कई चुनौतियां उनके सामने खड़ी हैं.
पार्टी ने पिछले चुनाव में लड़ी गई 421 सीटों में से केवल 52 सीटें हासिल कीं, जिससे 2014 की तुलना में उसकी संख्या में थोड़ा सुधार हुआ जब उसने लड़ी गई 464 सीटों में से 44 सीटें हासिल की थी. 2014 में 178 के मुकाबले 2019 में 148 कांग्रेस उम्मीदवारों ने अपनी जमानत गवां दी.
वर्ष 1984 में कांग्रेस के लिए शिखर तब आया जब उसने रिकॉर्ड 404 सीटें जीतीं. इसके बाद उसे 1989 के आम चुनाव में 197 सीट, 1991 में 232, 1996 में 140, 1998 में 141, 1999 में 114, 2004 में 145 और 2009 में 206 सीटें मिलीं.
वर्ष 2019 और 2014 के लोकसभा चुनावों में पार्टी के लिए हल्की उम्मीद की किरण यह थी कि उसने अपना मत प्रतिशत लगभग 19 प्रतिशत पर बनाए रखा, जिसे अब वह आगे बढ़ाने की उम्मीद कर रही है. 2009 में, जब मनमोहन सिंह सत्ता में लौटे थे, तो पार्टी को 28.55 प्रतिशत मत मिले थे.
दिल्ली और पंजाब में सत्तारूढ़ ‘आप’ने करीब एक दशक में राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा हासिल कर लिया है. वह आगामी लोकसभा चुनावों में अपने राजनीतिक पदचिह्न का विस्तार करने की कोशिश करेगी.
आम आदमी पार्टी भी ‘इंडिया’ गठबंधन का एक प्रमुख घटक है. पार्टी बड़ी परीक्षा के लिए तैयार है और उसे अपने नेताओं के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों और कथित आबकारी नीति घोटाला मामले में अपने प्रमुख अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी के खतरे जैसी चुनौतियों से निपटना है. भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन के विचार के आधार पर 12 साल पहले एक राजनीतिक 'स्टार्ट-अप' के रूप में शुरू हुई आम आदमी पार्टी दिल्ली और पंजाब में अपनी सरकारों के प्रदर्शन और अपनी उपलब्धियों को सामने रखकर मतदाताओं को साथ लेने की कोशिश करेगी.
आप पंजाब (13 सीटें), दिल्ली (4), असम (2), गुजरात (2) और हरियाणा (एक सीट) में लोकसभा सीट पर चुनाव लड़ रही है.
17वीं लोकसभा में केवल पांच सांसदों तक सीमित आप विपक्षी ‘इंडिया’ गठबंधन का हिस्सा हैं. 2019 के चुनावों में अब तक की सबसे कम संख्या हासिल करने के बाद इस आम चुनाव में उनके लिए करो या मरो की स्थित है.
वामपंथी दलों के लिए भी यह लोकसभा चुनाव अस्तित्व बचाने की चुनौती वाला है. मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा), भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा), भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) लिबरेशन, रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी और ऑल इंडिया फॉरवर्ड ब्लॉक ने पिछले कुछ चुनावों में अपने प्रदर्शन में लगातार गिरावट देखी है. वामपंथी दलों में भाकपा अपना राष्ट्रीय दर्जा खो चुकी है और माकपा राष्ट्रीय दल है, लेकिन उसका आधार भी सिकुड़ता जा रहा है. यह लोकसभा चुनाव वाम दलों के भविष्य के लिए भी निर्णायक रहने वाला है.
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