महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के जब 24 अक्टूबर को नतीजे आए थे तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह शाम करीब पांच बजे कार्यकर्ताओं को संबोधित करने भारतीय जनता पार्टी (Bharatiya Janata Party) मुख्यालय पहुंचे थे. इस दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) ने कहा था, "देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व में आने वाले पांच साल महाराष्ट्र के विकास को और अधिक ऊंचाई पर ले जाने वाले होंगे, ऐसी मुझे उम्मीद है.
हरियाणा और महाराष्ट्र, बीजेपी के परंपरागत राज्य नहीं थे, फिर भी इस तरह के नतीजे दोनों मुख्यमंत्रियों द्वारा ईमानदारी से जनता की सेवा का परिणाम है." प्रधानमंत्री ने संबोधन के दौरान ही देवेंद्र फडणवीस के फिर से मुख्यमंत्री होने की बात साफ कर दी थी. उसी दिन देर शाम हुई संसदीय बोर्ड की बैठक में भी फडणवीस के नाम पर मुहर लग गई थी.
हालांकि पिछली बार की तुलना में सीटें कम आने पर एक धड़ा नेतृत्व परिवर्तन की भी अटकलें लगा रहा था मगर मोदी ने अपने संबोधन से सभी अटकलों को एक झटके में खारिज कर दिया था. मगर, चुनाव नतीजों के बाद जिस तरह से शिवसेना ने बागी रुख आख्तियार किया और उसकी कांग्रेस-राकांपा के साथ सरकार बनाने की बातचीत चलने लगी. बीच में नितिन गडकरी की अचानक सक्रियता बढ़ी.
शिवसेना के एक नेता ने नितिन गडकरी का नाम लेते हुए कहा कि वह बातचीत सुलझा सकते हैं और फिर गडकरी की संघ प्रमुख भागवत से भी भेंट हुई. ऐसे में नितिन गडकरी का नाम भी मुख्यमंत्री के लिए उछलने लगा. कहा जाने लगा कि देवेंद्र की बजाए नितिन के मुख्यमंत्री बनने पर शिवसेना का रुख नरम हो सकता है.
महाराष्ट्र में पल दर पल बदलती ऐसी तमाम तस्वीरों के बीच सभी को लगने लगा कि शायद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का वचन पूरा नहीं हो पाएगा. शिवसेना के राजग से अलग होने के ऐलान के बाद कांग्रेस और राकांपा के साथ गठबंधन सरकार बनना तय माना जा रहा था. न्यूनतम साझा कार्यक्रम पर भी बातचीत लगभग तय हो चुकी थी.
मगर शुक्रवार देर रात 11 बजे से शनिवार सुबह आठ बजे के बीच ऐसा खेल हुआ, जिसकी भाजपा के भी कई बड़े नेताओं ने कल्पना नहीं की थी. सुबह आठ बजे तक देवेंद्र फडणवीस मुख्यमंत्री पद की शपथ ले चुके थे. इस प्रकार सभी आशंकाओं को खारिज करते हुए मोदी-शाह की जोड़ी ने देवेंद्र फडणवीस को मुख्यमंत्री बनाकर ही दम लिया.