'बुलढाणा प्लान' के जरिए महाराष्ट्र को पानीदार बनाने में जुटे हैं नितिन गडकरी
नितिन गडकरी (Photo Credits: PTI)

महाराष्ट्र में खासकर विदर्भ क्षेत्र सूखे के लिए जाना जाता है, और किसानों की आत्महत्या की खबरें यहां से अक्सर आती रहती हैं. यानी विदर्भ यदि पानीदार हो जाए तो इस इलाके से बुरी खबरें आनी बंद हो सकती हैं. केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने इसके लिए एक पहल की है और इस पहल का नाम है 'बुलढाणा प्लान'. गडकरी ने बुलढाणा प्लान के जरिए क्षेत्र की नदियों, तालाबों की सफाई और उन्हें पुनर्जीवित करने का काम शुरू किया है और इसका परिणाम भी सामने आने लगा है. उन्होंने इस काम में अपने मंत्रालय का इस्तेमाल इस तरीके से किया है कि काम भी हो जाए और सरकार के पैसे भी बच जाएं. उल्लेखनीय है कि नितिन गडकरी केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री हैं.

गडकरी ने इस योजना के बारे में मीडिया से बातचीत में बताया कि उन्होंने राजमार्ग मंत्रालय को निर्देश दिया कि राज मार्ग विस्तार के समय उनके आस-पास की सूखी नदियों और तालाबों को पुनर्जीवित किया जाए. इस क्रम में सूखा प्रभावित इलाकों में नदियों और तालाबों से निकलने वाले बालू, पत्थर, गाद आदि का इस्तेमाल सड़क निर्माण में किया जाए. ऐसा होने से, सड़क निर्माण के लिए जो खनिज और सामान बाहर से पैसे खर्च कर लाए जाते थे, वे अब निर्माण क्षेत्र के पास मौजूद तालाबों और नदियों से ही मुफ्त में लिए जाने लगे हैं.

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गडकरी ने बताया कि इससे एक तरफ सड़क निर्माण में आने वाली लागत की बचत हुई है, तो दूसरी तरफ तालाबों और नदियों को पुनर्जीवित करने में मदद मिल रही है. गडकरी ने बताया कि चूंकि इस पहल की शुरुआत विदर्भ के बुलढाणा जिले में हुई, इसलिए इसका नाम 'बुलढाणा योजना' रखा गया है. उन्होंने बताया कि इस योजना के तहत अबतक भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) ने कई नदियों, नालों और सूखे पड़े कुओं का जीर्णोद्धार किया है, जिसके कारण संबंधित इलाके में जलस्तर ऊंचा उठने लगा है.

भाजपा के वरिष्ठ नेता गडकरी ने कहा, "इस पहल को लागू करने में बहुत ही मुश्किलों का सामना करना पड़ा. यह काम अलग-अलग विभागों का होने की वजह से इसे अमलीजामा पहनाने में काफी दिक्कतें आईं. लेकिन इस परियोजना के कारण न तो एनएचएआई का बजट बढ़ा और न ही समय बर्बाद हुआ, उल्टे लागत में कमी आई."

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गडकरी ने बताया कि "पहले सड़क निर्माण के लिए जो खनिज और सामान बाहर से लाए जाते थे, वे अब निर्माण क्षेत्र के पास में ही मिल जाते हैं. आगे भी अगर इस तरह के कार्यक्रम बनाए गए तो एक तो सड़क निर्माण कार्य के खर्च में बचत होगी और आस-पास के तालाब, नदियों को दोबारा जीवित किया जा सकेगा और सूखाग्रस्त इलाके सूखामुक्त किए जा सकेंगे."