भोपाल: मध्यप्रदेश से निर्वाचित होकर राज्यसभा में जाने की नेताओं की चाहत ने राज्य की सियासत में चिंगारी भड़काने का काम किया है. विधायकों की खरीद-फरोख्त से लेकर उन्हें बंधक बनाए जाने तक के आरोप लगे तो अब दोनों प्रमुख दलों कांग्रेस और बीजेपी के विधायकों के अपने विरोधी दलों से संपर्क में होने की बातें सामने आ रही हैं. राज्य से राज्यसभा की तीन सीटें कांग्रेस के दिग्विजय सिंह(Digvijaya Singh), भाजपा के सत्यनारायण जटिया (Dr Satyanarayan Jatiya) और प्रभात झा (Prabhat Kha) के कार्यकाल अप्रैल में खत्म हो रहे हैं और इन तीनों सीटों के लिए इसी माह चुनाव होने हैं. विधायकों के संख्या बल के आधार पर इन तीन सीटों में से एक-एक सीट कांग्रेस और भाजपा को मिलनी तय है. लेकिन तीसरी सीट के लिए कांग्रेस को दो और भाजपा को नौ विधायकों की जरूरत है.
एक सदस्य की जीत के लिए 58 विधायकों का समर्थन चाहिए. इस स्थिति में कांग्रेस और भाजपा के एक एक सदस्य का चुना जाना तय है, क्योंकि दोनों के पास 58 से ज्यादा विधायक हैं. लेकिन एक और सीट पाने के लिए दोनों दल जोर लगा रहे हैं. इसी कोशिश ने राज्य की सियासत को नया रंग दे दिया है. विधायकों को दोनों ही दल अपने-अपने पाले में खींचने की कोशिश में लगे हुए हैं, क्योंकि दोनों दलों को राज्यसभा की एक और सीट जीतने के लिए निर्दलीय, सपा और बसपा के विधायकों के समर्थन की जरूरत होगी. वर्तमान विधानसभा की स्थिति पर गौर करें तो राज्य में कांग्रेस को पूर्ण बहुमत नहीं है. राज्य की 230 सीटों में से 228 विधायक हैं, दो सीटें खाली हैं. कांग्रेस के 114 और भाजपा के 107 विधायक हैं. कांग्रेस की कमलनाथ सरकार निर्दलीय चार, बसपा के दो और सपा के एक विधायक के समर्थन से चल रही है.
सूत्रों के अनुसार, राज्यसभा में कांग्रेस दो नेताओं को भेजना चाहती है. एक उम्मीदवार मुख्यमंत्री कमलनाथ (Kamal Nath) की पसंद का होगा और वह छिंदवाड़ा के पूर्व विधायक दीपक सक्सेना (Deepak Saxena) हो सकते हैं, जिन्होंने मुख्यमंत्री के लिए अपनी विधानसभा सीट छोड़ी थी. वहीं दूसरी सीट के लिए दिग्विजय सिंह और ज्योतिरादित्य सिंधिया (Jyotiraditya Scindia) बड़े दावेदार माने जा रहे हैं. सिंधिया को पार्टी हाईकमान राज्यसभा में भेजना चाहता है, क्योंकि सिंधिया की गिनती राहुल गांधी के नजदीकियों में होती है. सिंधिया अभी हाल ही में लोकसभा चुनाव हारे हैं, वहीं दिग्विजय सिंह फिर से राज्यसभा जाना चाहते हैं.
राज्यसभा चुनाव के नामांकन की तारीख करीब आने से पहले सरकार को समर्थन देने वाले 10 विधायकों को 25 से 35 करोड़ रुपये तक का ऑफर दिए जाने और फिर उन्हें दिल्ली ले जाने का पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने आरोप लगाकर सनसनी फैला दी. छह विधायक लौट आए, जिनमें से किसी ने भी प्रलोभन और बंधक बनाए जाने की बात नहीं कही. इन बयानों ने भाजपा को कांग्रेस और दिग्विजय सिंह पर हमला करने का मौका दे दिया है.
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भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष वी. डी. शर्मा ने विधायकों की खरीद-फरोख्त को लेकर दिग्विजय सिंह द्वारा लगाए गए आरोपों पर सवाल उठाए हैं. उनका कहना है, "दिग्विजय सिंह राज्यसभा में जाना चाहते हैं, इसीलिए उन्होंने और मुख्यमंत्री कमलनाथ ने भाजपा को बदनाम करने के लिए झूठ फैलाया. वास्तविकता तो कांग्रेस सरकार के मंत्री उमंग सिंघार ने ही सामने ला दी है कि यह लड़ाई राज्यसभा को लेकर है." राज्य से लापता 10 विधायकों में से छह भोपाल लौट आए हैं, जबकि चार विधायकों के बेंगलुरू में होने की बात कही जा रही है. कांग्रेस के एक विधायक हरदीप सिंह डंग ने विधानसभा अध्यक्ष और मुख्यमंत्री को अपना इस्तीफा सौंप दिया है. दूसरी ओर अन्य विधायकों के भी निकट भविष्य में इस्तीफा देने की चर्चा है.
भाजपा की ओर से लगाए जा रहे आरोपों का शुक्रवार को दिग्विजय सिंह ने जवाब दिया. उन्होंने कहा, "राम बाई के साथ जो हुआ, उसका वीडियो सबके सामने है. दुख इस बात का है कि भाजपा और वन मंत्री उमंग सिंघार के बयान एक जैसे हैं. जहां तक राज्यसभा में भेजने की बात है तो यह अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी व प्रदेश इकाई को तय करना है."
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भाजपा सत्यनारायण जटिया को फिर से राज्यसभा भेजने का मन बना रही है. इसकी वजह यह है कि पार्टी ने प्रदेशाध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी ब्राह्ममण नेता को सौंपी है, इसलिए वह जटिया को राज्यसभा में भेजकर दलित-पिछड़ों के बीच अपना संदेश देना चाहती है. इसके साथ ही वह दूसरी सीट पर निर्दलीय, सपा, बसपा और कांग्रेस के असंतुष्ट विधायकों के जरिए कब्जा चाहती है. इसके लिए भले ही उसे किसी गैर भाजपाई को निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर मैदान में उतारना क्यों न पड़े.
कांग्रेस व सरकार को समर्थन देने वाले विधायकों को भाजपा की ओर से कथित तौर पर प्रलोभन देने और बंधक बनाए जाने के आरोपों के बीच गुरुवार देर रात भाजपा के तीन विधायकों की मुख्यमंत्री कमलनाथ से हुई कथित मुलाकात ने सियासत को और भी सुलगाने का काम किया है. देखना अब यह है सियासत की यह चिंगारी किस खेमे को जलाती है.