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नई दिल्ली, 12 जुलाई: 25 जून को संविधान हत्या दिवस मनाने के केंद्र सरकार के फैसले पर कांग्रेस प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत की तीखी प्रतिक्रिया सामने आयी है. उन्होंने कहा कि 'संविधान हत्या' ये दो शब्द कभी एक साथ कहा ही नहीं सकता, क्योंकि इस देश में संविधान की हत्या करने वाला आज तक कोई पैदा ही नहीं हुआ है. सरकार हत्या की जगह 'रक्षा' या 'बचाओ' भी तो कह सकते थी, लेकिन यह हत्या शब्द भाजपा के अंदर की नफरत, उनकी कुंठा, उनका असली चेहरा और उनके अंदर की हिंसा का परिचायक है.
उन्होंने कहा कि असलियत यह है कि संविधान बदलने की भाजपा की साजिश नाकाम हो गई और इस देश की जनता ने उनके साजिश का पर्दाफाश कर दिया है. इस तरह की हरकतें हार की झुंझलाहट और ध्यान भटकाने की नाकाम कोशिश मात्र हैं.
जब बात अग्निवीर पर होनी चाहिए, मणिपुर पर होनी चाहिए, बेरोजगारी पर होनी चाहिए, महंगाई पर होनी चाहिए तो ये सरकार बात 50 साल पहले की करेगी. अगर ऐसा ही है तो क्यों न हर दिन इस देश में रोजगार हत्या दिवस, किसान हत्या दिवस, महिला सुरक्षा हत्या दिवस मनाया जाये?
वहीं रक्षा राज्य मंत्री संजय सेठ ने कहा है कि केंद्र सरकार का ये फैसला बिल्कुल सही है. देश की जनता को हमेशा ये याद दिलाना जरूरी है कि किस तरीके से 25 जून 1975 को संविधान की हत्या की गई थी.
वहीं, भाजपा प्रवक्ता राकेश तिपाठी ने कहा कि आने वाली पीढ़ी को याद रखना होगा कि कैसे देश में संविधान की हत्या की गई थी आपातकाल लगाकर देश को अंधकार में धकेला गया था. ये बहुत दुर्भयपूर्ण है कि जिन राजनीतिक पार्टियों का उदय तानाशाही का विरोध करके हुआ, वही समाजवादी लोग आज परिवारवादी होकर कांग्रेस के तानाशाही रवैए के साथ खड़े हो गए हैं.
भाजपा प्रवक्ता गौरव भाटिया ने कहा कि भारत सरकार का यह बहुत ही अहम फैसला है. अहम फैसला इसलिए है कि लोकतंत्र में काला अध्याय कभी आया, तो वह आपातकाल है. हमारी पीढ़ी है और आगे आने वाली पीढ़ी है इनको सीख लेने की जरूरत है. कांग्रेस और गांधी परिवार को आपातकाल के लिए माफी मांगना चाहिए.
केंद्र सरकार ने हर साल 25 जून को 'संविधान हत्या दिवस' के रूप में मनाने का फैसला लिया है. हर साल 25 जून को देश उन लोगों के महान योगदान को याद करेगा, जिन्होंने 1975 के इमरजेंसी के अमानवीय दर्द को सहन किया था.
25 जून को 'संविधान हत्या दिवस' के रूप में मनाने को लेकर भारत सरकार की ओर से एक अधिसूचना भी जारी कर दी गई है.