
Operation Sindoor: 22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुआ आतंकी हमला भारतीय इतिहास का एक और काला दिन बन गया. इस हमले में 26 मासूम नागरिकों की जान गई और कई घायल हो गए. देशभर में शोक और आक्रोश का माहौल था. सरकार और सेना के लिए यह हमला एक चेतावनी थी कि अब शब्द नहीं, एक्शन का समय है. यही एक्शन लेते हुए 7 मई की सुबह करीब 1:05 से 1:30 बजे के बीच भारतीय सेना, वायुसेना और नौसेना ने मिलकर 'ऑपरेशन सिंदूर' को अंजाम दिया. इस हाई-प्रिसिजन सैन्य कार्रवाई के तहत पाकिस्तान और पीओके (पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर) में स्थित 9 बड़े आतंकी ठिकानों को निशाना बनाया गया.
इनमें मुज़फ़्फराबाद के सवाई नाला कैंप और सय्यदना बिलाल कैंप, गुलपुर कैंप, अब्बास कैंप, बरनाला कैंप, सरजल कैंप, महमूना जोया कैंप, बहावलपुर में स्थित मार्कज तैबा और मार्कज सुभान शामिल हैं.
क्यों जरूरी था ऑपरेशन सिंदूर?
यह ऑपरेशन सिर्फ जवाबी हमला नहीं था, बल्कि एक कैलिब्रेटेड रणनीतिक कार्रवाई थी. इसका उद्देश्य था पाकिस्तान की उन आतंकी संरचनाओं को ध्वस्त करना, जिनकी जड़ें भारत में आतंक फैलाने के लिए मजबूत की गई थीं.
यह नेटवर्क भर्ती केंद्रों, हथियार प्रशिक्षण शिविरों, लॉन्च पैड्स और ऑपरेशनल बेस से बना है, जहां से आतंकियों को भारतीय सीमा में भेजा जाता है. इनमें से कई कैंप ऐसे थे जहां पुलवामा और 2008 के मुंबई हमले के आतंकियों को प्रशिक्षण मिला था.
किस आधार पर चुने गए टारगेट?
भारतीय रक्षा अधिकारियों के अनुसार, इन आतंकी ठिकानों का चुनाव विश्वसनीय खुफिया सूत्रों की मदद से किया गया. इन सभी कैंपों की पहचान पूर्व हमलों में संलिप्तता और भविष्य में हमले की योजना से जोड़ी गई थी. जिन संगठनों से ये कैंप जुड़े थे, उनमें शामिल हैं – लश्कर-ए-तैयबा (LeT), जैश-ए-मोहम्मद (JeM), और हिजबुल मुजाहिदीन.
ऑपरेशन की खास बात: कोई नागरिक हताहत नहीं
ऑपरेशन सिंदूर की सबसे बड़ी उपलब्धि यह रही कि इस दौरान एक भी नागरिक को नुकसान नहीं पहुंचा. यह दर्शाता है कि भारतीय सेना ने न केवल सटीकता बल्कि संवेदनशीलता और नैतिक संयम के साथ कार्रवाई की.