Mumbai in Danger: समंदर में डूब जाएंगे मुंबई समेत ये बड़े शहर! तेजी से बढ़ रहा जलस्तर, रिपोर्ट में चौकाने वाला खुलासा
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मुंबई, 2 अप्रैल: जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल(Intergovernmental Panel on Climate Change) की रिपोर्ट 2023 की सभी निराशाजनक भविष्यवाणियों के बीच, चेतावनी दी है कि महाराष्ट्र के तटीय क्षेत्र भी ग्लोबल वामिर्ंग के साथ संभावित आपदाओं के लिए चेतावनी सूची में हैं, जिससे समुद्र का स्तर बढ़ रहा है. इंडियन स्कूल ऑफ बिजनेस के अनुसंधान निदेशक डॉ. अंजल प्रकाश ने चेतावनी दी कि पश्चिमी भारतीय राज्य में पालघर (गुजरात की सीमा पर) से सिंधुदुर्ग (गोवा की सीमा पर) तक 720 किमी की सीधी तटरेखा है, और अरब सागर के स्तर में 1.1 मीटर (3.7-फीट) की संभावित वृद्धि के साथ, तटीय समुदायों को गंभीर खतरा होगा. वह, अन्य विशेषज्ञों के साथ 6ठे मूल्यांकन चक्र में संश्लेषित आईपीसीसी-2023 की 6 रिपोटरें में से दो के समन्वयक प्रमुख लेखक और प्रमुख लेखक थे. यह भी पढ़ें: Cyclone in Andhra Pradesh: चक्रवातों ने आंध्र प्रदेश की तटरेखा को तबाह किया, पारा बढ़ने से मछलियों का स्टॉक घटा

डॉ. प्रकाश ने आगाह किया कि पालघर, मुंबई, ठाणे, रायगढ़, रत्नागिरी, सिंधुदुर्ग के तटीय जिलों में स्थित महत्वपूर्ण शहरों और सैकड़ों गांवों और समुद्र के किनारे स्थित अन्य बुनियादी ढांचे, पृथ्वी के गर्म होने पर सदी के अंत तक बाढ़, तटीय कटाव और अन्य हमलों के उच्च जोखिम में हो सकते हैं. डॉ. प्रकाश ने कहा कि महाराष्ट्र में अधिक गर्मी की लहरों के साथ उच्च तापमान देखा जाएगा, जिससे प्रमुख स्वास्थ्य समस्याएं, कृषि, उद्योगों और घरों के लिए पानी की गंभीर कमी हो जाएगी क्योंकि राज्य काफी हद तक मानसून पर निर्भर करता है। बाढ़ एक सामान्य घटना होगी, बदलते तापमान-वर्षा पैटर्न के कारण फसल की पैदावार और खाद्य सुरक्षा के लिए गंभीर प्रभाव के साथ कृषि कई तरह से प्रभावित हो सकती है.

उन्होंने कहा कि बदलती जलवायु में महासागर और क्रायोस्फीयर पर आईपीसीसी-2023 की विशेष रिपोर्ट ने दो परस्पर जुड़ी प्रणालियों- महासागरों और क्रायोस्फीयर (दुनिया के जमे हुए क्षेत्र और ग्लेशियर सिस्टम) को देखा है. उन्होंने समझाया कि ग्लोबल वामिर्ंग के कारण, हम देख रहे हैं कि महासागर पिछले लगभग 175 वर्षों में, या पूर्व-औद्योगिक युग (1850) से 0.8 डिग्री सेल्सियस के स्तर तक गर्म हो गए हैं. इस महासागर के गर्म होने के कारण, इसने एक सक्रिय जल चक्र को जन्म दिया है जिससे चक्रवातों की आवृत्ति और गंभीरता में वृद्धि हुई है.

डॉ. प्रकाश ने भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान (आईआईटीएम) पुणे के एक हालिया अध्ययन का हवाला दिया, जिसने संकेत दिया है कि पिछले वर्षों की तुलना में तटीय क्षेत्रों में चक्रवातों की संख्या और संबंधित चरम मौसम की घटनाओं में पर्याप्त वृद्धि हुई है. एसोसिएशन फॉर साइंटिफिक एंड एकेडमिक रिसर्च (एएसएआर) के अन्य विशेषज्ञों ने कहा कि अरब सागर में मॉनसून से पहले और बाद के चक्रवातों के साथ ये चरम मौसम की स्थिति आने वाले दशकों में राज्य की तटीय आबादी को और अधिक गंभीर रूप से प्रभावित करेगी, और 40 करोड़ (400 मिलियन) से अधिक भारतीयों को प्रभावित करेगी.

प्रकाश ने बताया, उदाहरण के लिए, आईपीसीसी के वैश्विक आंकड़े बताते हैं कि जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के कारण मछली उत्पादन में गिरावट आई है, और तटीय समुदायों के लिए परिणाम महत्वपूर्ण हैं और इस पर विचार किया जाना चाहिए.

डॉ. प्रकाश ने कहा कि अल्पकालिक उपायों में उप-जिला स्तर पर समस्याओं का समाधान करने के लिए एक जलवायु अनुकूलन योजना शामिल है, जिसका अर्थ है कि हमें महाराष्ट्र के जिलों में जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को समझने की आवश्यकता है. यह नीचे से ऊपर की रणनीति होनी चाहिए जिसमें हम लोगों की आजीविका पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव का विश्लेषण करने के बाद अनुकूलन और शमन योजनाओं का आकलन करें.

दीर्घकालिक उपायों पर, उन्हें लगता है कि इसमें एक टॉप-डाउन रणनीति शामिल होनी चाहिए जिसमें वैश्विक स्तर पर जलवायु परि²श्य और भविष्यवाणियों को स्थानीय स्तर पर कम से कम उप-जिला स्तर तक लाया जाए. डॉ. प्रकाश ने आगे कहा कि जलवायु परिवर्तन शमन और अनुकूलन प्रयासों की गारंटी के लिए लघु, मध्यम और दीर्घकालिक योजना को मजबूत करने के लिए कम से कम अगले 15 वर्षों को ध्यान में रखते हुए एक दीर्घकालिक उपाय के रूप में एक समग्र व्यापक योजना की आवश्यकता है.

एएसएआर के विशेषज्ञों ने कहा कि भारत के विभिन्न हिस्सों में हाल ही में बेमौसम बारिश की भविष्यवाणी आईपीसीसी की रिपोर्ट और जलवायु मॉडल द्वारा की गई थी, और बताया कि फसल की कटाई से ठीक पहले इतनी भारी बारिश की कभी उम्मीद नहीं की गई थी. इसके परिणामस्वरूप किसानों की फसल को भारी नुकसान हुआ है, जिसकी भरपाई की जरूरत है और इस तरह की चरम मौसम की घटनाएं जलवायु से संबंधित कृषि या इसी तरह की नौकरियों पर निर्भर लोगों के जीवन और आजीविका के साथ खिलवाड़ करती हैं.