कोच्चि, 19 जून: केरल हाईकोर्ट के एक जज ने कहा है कि बार काउंसिल के सदस्यों द्वारा एलएलबी पाठ्यक्रम (कोर्स) का निर्धारण करना देश में कानूनी शिक्षा की सबसे बड़ी त्रासदी है ऐसे व्यक्तियों का ज्ञान मुकदमेबाजी तक ही सीमित होता है रिपोर्ट के अनुसार, न्यायमूर्ति मुहम्मद मुस्ताक ने रविवार को एक इवेंट के दौरान यह बात कही इवेंट का उद्देश्य कानून के छात्रों को अपने करियर के अवसरों को नेविगेट करने और स्किल विकसित करने में मदद करना था उन्होंने कहा कि बार काउंसिल के सदस्य पाठ्यक्रम तय कर रहे हैं.
यह भारत में हमारे सामने सबसे बड़ी त्रासदी है चुनाव के जरिए निर्वाचित होने वाले लोग कानूनी शिक्षा के बारे में निर्णय लेते हैं वे केवल मुकदमेबाजी पेशेवर हैं उनके ज्ञान का क्षेत्र केवल मुकदमेबाजी है, लेकिन वे सिलेबस तय कर रहे हैं यह सबसे बड़ी त्रासदी है जिसका हम सामना कर रहे हैं उन्हें कोई अंदाजा नहीं है कि मुकदमेबाजी से परे क्या हो रहा है. यह भी पढ़े: Kerala High Court: केरल हाईकोर्ट ने गूगल को दिए गए सुझावों को हटाने से किया इनकार
उन्होंने आगे कहा कि लॉ कॉलेजों को अपना सिलेबस खुद तय करने का आधिकार नहीं है। यदि वे बार काउंसिल द्वारा तय सिलेबस का पालन नहीं करते हैं, तो अनिवार्य रूप से उन्हें कुछ दंडात्मक कार्रवाई का सामना करना पड़ेगा और उनके सिलेबस को मान्यता नहीं दी जाएगी जज ने कानूनी पेशे में बड़े पैमाने पर बदलाव के बारे में विस्तार से कहा कि वैश्वीकरण और तकनीकी प्रगति इसके लिए जिम्मेदार है हालांकि, न्यायाधीश की टिप्पणी पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआई) ने कहा कि न्यायाधीश को निहित स्वार्थ वाले लोगों ने गुमराह किया है.
बीसीआई ने अपने प्रेस बयान में कहा कि कानूनी शिक्षा के नियमन के बारे में केरल हाईकोर्ट के एक जज न्यायमूर्ति मुहम्मद मुस्ताक की तर्कहीन टिप्पणियों को पढ़कर हम स्तब्ध हैं केवल इसलिए कि वह एक न्यायाधीश है, उन्हें किसी के बारे में उचित ज्ञान के बिना किसी या किसी संगठन के खिलाफ कोई टिप्पणी करने की आजादी नहीं है बार काउंसिल ऑफ इंडिया गैरजिम्मेदाराना टिप्पणी की कड़ी निंदा करता है.