Demonetisation Anniversary: नोटबंदी के 7 साल बाद क्या है भारत की तस्वीर? चौंकिये मत 2016 से पहले भी भारत में दो बार हो चुकी है नोटबंदी!
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8 नवंबर 2016, रात 8 बजे जारी एक खबर ने देश-दुनिया को चौंका दिया था. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्र को संबोधन में बताया कि रात 12 बजे से 500 और 1000 के नोट बंद हो जाएंगे. हालांकि पीएम ने स्पष्ट किया कि एक सीमा तक ये नोट बैंक में बदले जा सकेंगे. नोटबंदी के बाद विपक्ष ने जहां हाहाकार मचा कर सरकार के इस निर्णय को अलोकतांत्रिक बताया, वहीं हजारों लोगों को नोट बदलने हेतु बैंकों के सामने घंटों लाइन में खड़े रहना पड़ा. नोटबंदी से कई घरों में शादियां पोस्टपोंड करनी पड़ी, लेकिन सबसे चौंकाने वाली तस्वीर सोशल मीडिया के जरिये देखी गई कि कैसे 500 और 1000 के नोटों की कतरन नालों-तालाबों में देखे गये. बताया गया कि ये नोट ब्लैक मनी के थे, जिसे चुनाव पर ‘वोट के बदले नोट’ के रूप में राजनीतिक पार्टियों ने छिपा कर रखा था. आइये जानते हैं नोटबंदी के नफा-नुकसान के बारे में....

क्यों बंद किये गये नोट?

नोटबंदी भारतीय इतिहास की अर्थव्यवस्था के अहम फैसलों में एक था. हालांकि सरकार के फैसले का मीडिया समेत कई वित्त विशेषज्ञों की आलोचनाओं का सामना करना पड़ा था. जहां तक नोटबंदी का प्रश्न है तो इसके औचित्य की तीन वजहें तत्कालीन सरकार ने गिनाई थी, जिसमें पहली वजह थी जाली नोटों की बढ़ती समस्या पर नियंत्रण लगाना, दूसरी वजह काले धन को समाप्त करना और तीसरा अहम कारण, देश में पनप रहे आतंकवाद के आर्थिक स्रोतों पर लगाम लगाना था. नोटबंदी के फैसले के 8 साल बाद आज सरकार का दावा है कि नोटबंदी से अर्थव्यवस्था अधिक औपचारिक हुई. कोरोना के बावजूद राजस्व बढ़ा, गरीब वर्ग को अधिक संसाधन मिले, बुनियादी ढांचा दुरुस्त हुआ है.

नोटबंदी से हुए फायदे

डिजिटल भुगतान सिस्टम को मिला बूस्ट.

बैंकों की कर्ज देने की क्षमता में सुधार आया.

दो सालों में 17 लाख 42 हजार संदिग्ध खाताधारकों की पहचान हुई.

नोटबंदी से टैक्स बेस बढ़ाने में मदद मिली.

लोगों की आदतें बदलने से कोरोना से जंग में मिली मदद.

2016 से पहले भी हो चुकी है नोटबंदी

नोटबंदी को लेकर विपक्ष कितना भी हल्ला मचाये, लेकिन आपको यह जानकर हैरानी होगी कि इससे पहले भी दो बार नोटबंदी हो चुकी है. पहली बार नोटबंदी 12 जनवरी 1946 को भारत के वायसराय और गवर्नर जनरल सर आर्चीबाल्ड वेवेल बड़े नोट बंद करने का अध्यादेश पारित किया, इसके साथ ही 26 जनवरी 1946 में रात 12 बजे से 500, 1000, और 10,000 मूल्य के नोट चलन से रोका गया. इसके बाद 16 जनवरी 1978 को तत्कालीन जनता पार्टी सरकार काले धन को खत्म करने के लिए 1000, 5000 और 10,000 के नोटों को चलन से बाहर कर दिया गया. उस समय देसाई सरकार में वित्त मंत्री एच.एम. पटेल थे, और पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह वित्त सचिव थे.