POCSO कानून के दुरुपयोग पर HC ने जताई चिंता, नाबालिग प्रेमिका को भगाकर विवाह करने वाले लड़के को मिली जमानत
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प्रयागराज (उप्र), 5 जुलाई: कथित नाबालिग लड़की को भगाकर ले जाने और बाद में उसके साथ विवाह करने के आरोपी को जमानत देते हुए इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने किशोर व्यक्तियों के बीच पारस्परिक सहमति से बने संबंधों के मामले में अक्सर पॉक्सो कानून लागू किए जाने पर चिंता जताई है.

अदालत ने कहा, “जहां पॉक्सो कानून का प्राथमिक उद्देश्य नाबालिग बच्चों का यौन उत्पीड़न से रक्षा करना है, ऐसे कई मामले सामने आए हैं जहां इस कानून का दुरुपयोग किया गया है. विशेषकर किशोर व्यक्तियों के बीच सहमति से बने रुमानी संबंधों में इस कानून का दुरुपयोग किया गया है.”

अदालत ने कहा, “उत्पीड़न के वास्तविक मामलों और सहमति से बने रिश्तों के बीच अंतर करने की चुनौती है. इसके लिए एक सूक्ष्म दृष्टिकोण और सावधानीपूर्वक न्यायिक विचार की जरूरत है जिससे उचित न्याय सुनिश्चित हो सके.”

सतीश उर्फ चांद नाम के व्यक्ति को जमानत देते हुए न्यायमूर्ति कृष्ण पहल ने कहा, “निश्चय ही ‘ऑसिफिकेशन टेस्ट’ (उम्र का पता लगाने के लिए जांच) रिपोर्ट के मुताबिक, पीड़िता की आयु 18 वर्ष है. उच्चतम न्यायालय ने जया माला बनाम जम्मू कश्मीर सरकार और एक अन्य मामले में व्यवस्था दी है कि रेडियोलॉजिस्ट सटीक जन्म तिथि का अनुमान नहीं लगा सकता.”

मामले के तथ्यों के मुताबिक, आरोप है कि याचिकाकर्ता नाबालिग लड़की को 13 जून, 2023 को भगा ले गया. इसके बाद, उसके खिलाफ देवरिया जिले के बरहज पुलिस थाना में भारतीय दंड संहिता की धारा 363 (अपहरण), 366 (अपहरण एवं विवाह करने के लिए विवश करने के उद्देश्य से अगवा करना), 376 (दुष्कर्म) और पॉक्सो कानून की धारा 5(जे) 2/6 के तहत प्राथमिकी दर्ज की गई.

याचिकाकर्ता को गिरफ्तार कर लिया गया और वह पांच जनवरी, 2024 से जेल में निरुद्ध है.

सुनवाई के दौरान, याचिकाकर्ता के वकील ने दलील दी कि उसका मुवक्किल पूरी तरह से निर्दोष है और उसे इस मामले में झूठा फंसाया गया है. प्राथमिकी दर्ज कराने में करीब चार दिन की देरी की गई और देरी का कोई उचित स्पष्टीकरण नहीं दिया गया है.

उन्होंने कहा कि पीड़िता अपनी मर्जी से गई थी और उसने सीआरपीसी की धारा 164 के तहत दिए बयान में कहा है कि उसकी आयु 18 वर्ष है. याचिकाकर्ता के वकील ने अदालत को बताया कि पीड़िता और याचिकाकर्ता एक दूसरे के प्यार करते थे और मां बाप के डर से वे घर से भागे और एक मंदिर में शादी की जिसका पंजीकरण नहीं कराया गया. याचिकाकर्ता और पीड़िता एक ही गांव के हैं और वे पड़ोसी हैं.

इस मामले के तथ्यों और परिस्थितियों, वकील की दलीलों और साक्ष्यों पर विचार करते हुए अदालत ने तीन जुलाई, 2024 को दिए अपने निर्णय में याचिकाकर्ता को जमानत दे दी.

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