मैं इस्तीफा क्यों दूं, मैंने जो कुछ भी किया, वह मणिपुर की रक्षा के लिए था: मुख्यमंत्री बीरेन सिंह

मणिपुर के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह ने पद छोड़ने से इनकार करते हुए दावा किया कि राज्य की ‘रक्षा’ के उनके प्रयासों में लोग उनके साथ हैं, इसलिए उनके इस्तीफा देने का कोई सवाल ही नहीं है.

CM N. Biren Singh

इंफाल, 30 अगस्त : मणिपुर के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह ने पद छोड़ने से इनकार करते हुए दावा किया कि राज्य की ‘रक्षा’ के उनके प्रयासों में लोग उनके साथ हैं, इसलिए उनके इस्तीफा देने का कोई सवाल ही नहीं है. सिंह ने बृहस्पतिवार को ‘पीटीआई वीडियो’ के साथ साक्षात्कार में सवाल किया, “मैं इस्तीफा क्यों दूं? क्या मैंने कुछ चुराया है? क्या मेरे खिलाफ किसी घोटाले का आरोप है? क्या मैंने राष्ट्र या राज्य के खिलाफ काम किया है?” सिंह मणिपुर में पिछले साल मई में भड़की जातीय हिंसा को लेकर विपक्ष के निशाने पर हैं. कुकी संगठन उन पर जातीय हिंसा में मेइती समुदाय का पक्ष लेने का आरोप लगा रहे हैं. इसके बावजूद उन्होंने बतौर मुख्यमंत्री अपने रिकॉर्ड का मजबूती से बचाव किया.

सिंह ने अवैध आप्रवासियों की पहचान और मादक पदार्थों के खिलाफ अपनी सरकार के अभियान को जातीय हिंसा के लिए जिम्मेदार ठहराया. उन्होंने कहा, “मैंने राज्य को अवैध प्रवासियों, पोस्त की अवैध खेती से बचाया है. मेरा काम मणिपुर और मणिपुर के लोगों की रक्षा करना है. (इस्तीफा देने का) कोई सवाल ही नहीं है.” मुख्यमंत्री के मुताबिक, मेइती बहुल इनर मणिपुर सहित राज्य की दोनों लोकसभा सीटों पर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की हार उनकी लोकप्रियता की सूचक थी, न कि पार्टी के कम लोकप्रिय होने की परिचायक. उन्होंने कहा कि सुरक्षा बल उनके निर्देश पर कार्रवाई कर रहे थे, बावजूद इसके लोगों ने उन पर हिंसा को रोकने के लिए पर्याप्त कदम नहीं उठाने के आरोप लगाए. यह भी पढ़ें : Gujarat Cyclone: गुजरात में चक्रवात की चेतावनी- कच्छ में झोपड़ों में रह रहे लोगों को सुरक्षित स्थानों पर जाने कहा गया

सिंह ने कहा, “लोग भावुक हो गए कि मैं मुख्यमंत्री होते हुए भी कुछ खास नहीं कर सका. सुरक्षा बलों के मेरे निर्देशों के अनुसार कार्रवाई करने के बावजूद, लोगों को लगा कि मैंने बंदूक का इस्तेमाल करने वालों के खिलाफ कठोर जवाबी कार्रवाई नहीं की.” मुख्यमंत्री ने दावा किया कि उनका हमेशा से मानना रहा है कि समाधान जवाबी कार्रवाई करने से नहीं, बल्कि बातचीत और शांति से निकलेगा. मणिपुर में अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की मेइती समुदाय की मांग के विरोध में पर्वतीय जिलों में पिछले साल तीन मई को ‘आदिवासी एकजुटता मार्च’ के आयोजन के बाद भड़की जातीय हिंसा में अब तक 226 लोगों की मौत हो चुकी है और हजारों परिवार विस्थापित हो गए हैं. कुकी संगठनों ने मेइती समुदाय से आने वाले सिंह पर हिंसा में अपने समुदाय का पक्ष लेने का आरोप लगाया है. विपक्षी दलों ने यह कहते हुए उनके इस्तीफे की मांग की है कि इससे टूटे सामाजिक ताने-बाने को फिर से जोड़ने में मदद मिलेगी.

सिंह ने कहा, “मैं हर समुदाय का मुख्यमंत्री हूं, चाहे वह मेइती हो, कुकी हो या नगा हो.” उन्होंने कहा कि उनकी सरकार ने अपने दूसरे कार्यकाल में “मादक पदार्थों के खिलाफ जंग” के अलावा आरक्षित वनों से अतिक्रमण हटाते हुए म्यांमा से अवैध अप्रवासियों की पहचान का अभियान तेज कर दिया, जो कुछ लोगों को पसंद नहीं आया. हालांकि, उन्होंने यह सीधे तौर पर नहीं कहा, लेकिन मेइती समूहों ने आरोप लगाया है कि कुकी समुदाय का एक वर्ग उनके बसाए पहाड़ी इलाकों में पोस्त की खेती के अलावा उन अवैध अप्रवासियों की रक्षा करने में शामिल है, जो उन्हीं के जातीय समूह से आते हैं.

आरक्षित वनों के इस्तेमाल पोस्त की खेती और अवैध बस्तियों के लिए किए जाने पर चिंता जताते हुए सिंह ने कहा, ‘‘मैंने जो कुछ भी किया वह देश के लिए, राज्य के लिए था. यह बीरेन के लिए नहीं था.’’

पिछले साल जून में इस्तीफा देने की कोशिश करने, लेकिन समर्थकों द्वारा त्याग पत्र फाड़े जाने के बाद मन बदलने का जिक्र करते हुए सिंह ने कहा कि उन्होंने एक समय यह सोचकर इस पर विचार किया था कि क्या लोग अब भी उन पर भरोसा करते हैं, लेकिन अब ऐसा नहीं है. मुख्यमंत्री ने कहा, “जनता मेरे साथ है. तो मैं (पद) क्यों छोड़ूं.” मणिपुर में भले ही अनिश्चित शांति लौट आई है, लेकिन दोनों जातीय समुदाय आमने-सामने हैं और एक-दूसरे के क्षेत्रों में जाने से परहेज कर रहे हैं. पूर्वोत्तर राज्य की आबादी में मेइती समुदाय के लोगों की संख्या लगभग 53 प्रतिशत है और वे मुख्य रूप से इंफाल घाटी में रहते हैं. वहीं, नगा और कुकी जैसे आदिवासी समुदायों की आबादी 40 प्रतिशत है और वे ज्यादातर पर्वतीय जिलों में रहते हैं.

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