देश की खबरें | पश्चिम बंगाल चुनाव विश्लेषण : वामदल ‘मरणासन्न’ , तृणमूल का कोलकाता किला अक्षुण्ण

कोलकाता, नौ मई पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता में दीवार पर लिखे नारे ‘ मार्कसवाद अमर रहे’ में किसी ने छोड़छाड़ कर मजाकिया लहजे में अमर रहे के स्थान ‘मृत रहे’ कर दिया है।

हालांकि, नारे से की गई यह छेड़-छाड़ पिछले हफ्ते विधानसभा चुनाव के आए नतीजों के बाद सच सी लगती हैं जहां पर तीन दशक से अधिक समय तक राज करने वाले वाम दल हाशिये पर चले गए हैं।

वहीं, राज्य में सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस कोलकाता में अपने प्रभुत्व को अक्षुण्ण रखने में कामयाब हुई है। इस चुनाव में पार्टी ने विरोधी भाजपा को सभी 14 सीटों पर उल्लेखनीय अंतर से मात दी।

राज्य में वाम दलों के मत प्रतिशत में भारी गिरावट आई है, जहां 2011 में 34 साल के राज के बाद भी वाम दल 30.1 प्रतिशत हासिल करने में कामयाब हुए थे, वहीं वर्ष 2021 के चुनाव में उन्हें मात्र 5.47 प्रतिशत मतों से संतोष करना पड़ा है।

इस चुनाव में अधिकतर सीटों पर तृणमूल और भाजपा का सीधा मुकाबला हुआ जबकि कभी यहां सबसे ताकतवर रहे वाम दल हाशिये पर जाते नजर आए।

यहां तक कि 2016 के विधान सभा चुनाव में भी वाम दल 25.69 प्रतिशम मत हासिल करने में कामयाब हुए थे।

माकपा पोलित ब्यूरो के सदस्य नीलोत्पल बसु ने कहा, ‘‘हमें हार मिली क्योंकि सत्ता विरोधी लहर सहित अन्य मुद्दे लोगों की भाजपा को पश्चिम बंगाल की सत्ता से दूर रखने की भावना के आगे हाशिये पर चले गए।’’

विश्लेषकों का मानना है कि तृणमूल की जीत पांच प्रतिशत अतिरिक्त लोकप्रिय मतों से मिलने से हुई जो सामान्यत: वाम दलों के पक्ष में जाते थे, लेकिन मतदाताओं ने भाजपा को हराने के लिए भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों को नजरअंदालज किया।

भाकपा (माले) लिबरेशन पार्टी के महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य ने कहा, ‘‘वर्ष 2019 में भाजपा ने यहां की 18 लोकसभा सीटों पर जीत दर्ज की थी और कुल 40 प्रतिशत मत हासिल किए थे, उस समय वाम और कांग्रेस मत दक्षिण पंथी पार्टी के पक्ष में गए थे, इस बार वाम समर्थकों के मत तृणमूल के पक्ष में गए।’’

यहां तक कि जादवपुर में जिसे ‘पूर्व का लेनिनग्राद’ कहा जाता है और एक बार को छोड़ वर्ष 1967 से वाम दलों का कब्जा रहा है, वहां भी इस बार तृणमूल ने जीत दर्ज की है।

इस चुनाव में वाम दलों को उस समय और असहज स्थिति का सामना करना पड़ा जब माकपा के वयोवृद्ध नेता सुजन चक्रवर्ती को कम चर्चित तृणमूल प्रत्याशी ने 40 हजार मतों के भारी अंतर से हराया।

वहीं, इस चुनाव में भाजपा के तमाम कोशिशों के बावजूद 10 साल से सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस ने कोलकाता पर कब्जा बरकरार रखा।

पार्टी ने शहर के 14 सीटों पर जीत दर्ज की। तृणमूल कांग्रेस को मिली-जुली आबादी होने के बावजूद जोड़ासंको,भवानीपुर और कोलकाता पोट सीट पर भारी मतों से जीत मिली।

जोडासंकों में मिली जुली आबादी रहती है और इनमें बड़ी संख्या हिंदी भाषी प्रवासियों की है। इसके बावजूद तृणमूल प्रत्याशी विवेक गुप्ता को 52,123 मत मिले जबकि भाजपा की मीणा देवी 39,380 मतों से ही संतोष करना पड़ा।

भवानीपुर एकमात्र सीट थी जिसमें केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने घर-घर जाकर प्रचार किया लेकिन यहां पर तृणमूल ने भाजपा प्रत्याशी को करीब 31 हजार मतों से मात दी।

राजनीतिक विश्लेषणों का मानना है कि कोलकाता में तृणमूल कांग्रेस की एकतरफा जीत में कोविड-19 की खराब होती स्थिति, तृणमूल कांग्रेस की आखिरी तीन चरणों के चुनाव को मिलाकर एक चरण करने की मांग आदि ने अहम भूमिका निभाई ।

भाजपा के खिलाफ कई वाम संगठनों और अल्पसंख्यकों के प्रचार ने भी भगवा पार्टी के खिलाफ मतदाताओं को एकजुट करने का काम किया जिसका लाभ तृणमूल को मिला।

राजनीतिक विश्लेषक सिवाजी प्रतिम बसु ने कहा,‘‘आखिरी चरणों में जमीन पर यह धारणा बनी कि तृणमूल सत्ता में वापसी कर रही है जिसने मतदाताओं को प्रभावित किया, जिनमें जोड़ासंको और भवानीपुर की हिंदी भाषी बिहारी आबादी शामिल है।’’

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