नयी दिल्ली, एक दिसंबर राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी)ने शहरीकरण के कारण विशाखापत्तनम में मैंग्रोव के कथित नुकसान पर भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद के महानिदेशक और अन्य से जवाब तलब किया है।
एनजीटी ने एक अखबार की खबर पर स्वतः संज्ञान लिया, जिसमें कहा गया था कि पहले फैले तटीय पारिस्थितिकी तंत्र अब ‘‘मात्र टुकड़ों’’ में सिमट कर रह गए हैं। इससे तटीय संरक्षण और जैव विविधता के नुकसान के बारे में पर्यावरणविदों के बीच गंभीर चिंताएं पैदा हो गई हैं।
राष्ट्रीय हरित अधिकरण के अध्यक्ष न्यायमूर्ति प्रकाश श्रीवास्तव की पीठ ने 22 नवंबर के आदेश में कहा, ‘‘यह समाचार इस बात पर प्रकाश डालता है कि मैंग्रोव के नष्ट होने से तटीय संरक्षण और जैव विविधता दोनों के लिए गंभीर खतरा पैदा हो गया है, क्योंकि मैंग्रोव तटरेखा के कटाव को रोकने और विभिन्न पक्षी प्रजातियों के लिए आवास प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।’’
एनजीटी ने कहा, ‘‘आरोप है कि पिछले कुछ वर्षों में मैंग्रोव और लवणमृदा वनस्पति की संख्या में तेजी से कमी आई है।’’
पीठ में न्यायिक सदस्य न्यायमूर्ति अरुण कुमार त्यागी और विशेषज्ञ सदस्य ए सेंथिल वेल भी शामिल थे। पीठ ने पक्षी जैवविविधता पर पड़ने वाले प्रभाव के बारे में रिपोर्ट पर गौर किया जो ‘‘गंभीर’ है और विशाखापत्तनम बंदरगाह के पास बंगाल की खाड़ी से जुड़े मेघाद्री गेड्डा क्षेत्र में मैंग्रोव में कमी इसका ‘‘उदाहरण’’ है।
हरित निकाय ने कहा, ‘‘उपर्युक्त प्रतिवादियों को न्यायाधिकरण की दक्षिणी क्षेत्रीय पीठ (चेन्नई) के समक्ष हलफनामे के माध्यम से अपना जवाब या प्रत्युत्तर दाखिल करने के लिए नोटिस जारी किया जाए।’’
मामले को आगे की कार्यवाही के लिए 10 जनवरी तक के लिए स्थगित कर दिया गया है।
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