अयोध्या (उप्र), 15 जनवरी: श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय ने सोमवार को कहा कि मैसूर स्थित अरुण योगीराज द्वारा बनाई गई राम लला की एक नयी मूर्ति को अयोध्या में राम मंदिर में स्थापना के लिए चुना गया है और 18 जनवरी को इसे श्री रामजन्मभूमि तीर्थ पर गर्भगृह में स्थापित किया जाएगा.
राय ने कहा कि 22 जनवरी को अयोध्या धाम में अपने नव्य भव्य मंदिर में श्री रामलला की प्राण प्रतिष्ठा का कार्यक्रम और पूजन विधि 16 जनवरी से शुरू हो जाएगी, जबकि जिस प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा की जानी है, उसे 18 जनवरी को गर्भ गृह में अपने आसन पर खड़ा कर दिया जाएगा. उन्होंने कहा कि 22 जनवरी को पौष शुक्ल द्वादशी अभिजीत मुहूर्त में दोपहर 12 बजकर 20 मिनट पर श्री रामलला की प्राण प्रतिष्ठा का कार्यक्रम संपन्न किया जाएगा.
उन्होंने कहा कि मंदिर 20 और 21 जनवरी को बंद रहेगा और लोग 23 जनवरी से फिर से भगवान के दर्शन कर सकेंगे. प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम की जानकारी देते हुए राय ने बताया, “ कार्यक्रम से जुड़ी सभी तैयारियां पूर्ण कर ली गई हैं. प्राण प्रतिष्ठा दोपहर 12 बजकर 20 मिनट पर प्रारंभ होगी. प्राण प्रतिष्ठा का मुहूर्त वाराणसी के पुजारी श्रद्धेय गणेश्वर शास्त्री ने निर्धारित किया है. वहीं, प्राण प्रतिष्ठा से जुड़े कर्मकांड की संपूर्ण विधि वाराणसी के ही लक्ष्मीकांत दीक्षित द्वारा कराई जाएगी.”
उन्होंने बताया, “ पूजन विधि 16 जनवरी से शुरू होकर 21 जनवरी तक चलेगी. 22 जनवरी को प्राण प्रतिष्ठा के लिए न्यूनतम आवश्यक गतिविधियां आयोजित होंगी.” उन्होंने कहा कि राम लला की मौजूदा मूर्ति जो 1950 से वहां है, को भी नए मंदिर के गर्भगृह में रखा जाएगा. राय ने ये भी बताया कि प्राण प्रतिष्ठा के अवसर पर गर्भ गृह में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक मोहन भागवत, राज्यपाल आनंदी बेन पटेल, रामजन्मभूमि न्यास के अध्यक्ष महंत नृत्य गोपाल दास और सभी न्यायी उपस्थित रहेंगे.
राय ने कहा, “ हमने मंदिर प्रांगण में आठ हजार कुर्सियां लगाई हैं, जहां विशिष्ट लोग बैठेंगे। देश भर में 22 जनवरी को लोग अपने-अपने मंदिरों में स्वच्छता और भजन, पूजन कीर्तन में हिस्सा लेंगे। प्राण प्रतिष्ठा के कार्यक्रम को लाइव देखा जा सकेगा. ” उन्होंने कहा, “प्राण प्रतिष्ठा पूरी होने के बाद लोग शंख बजाएं और प्रसाद वितरण करें. अधिक से अधिक लोगों तक प्रसाद पहुंचना चाहिए. हमारे आयोजन मंदिर केंद्रित होने चाहिए। सांयकाल में सूर्यास्त के बाद घर के बाहरी दरवाजे पर पांच दीपक प्रभु की प्रसन्नता के लिए अवश्य जलाएं.”
उन्होंने बताया, “ जिस प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा होनी है वो पत्थर की है। उसका वजन अनुमानित 150 से 200 किलो के बीच होगा। यह पांच वर्ष के बालक का स्वरूप है, जो खड़ी प्रतिमा के रूप में स्थापित की जानी है. ” राय ने बताया कि जिस प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा होती है उसको अनेक प्रकार से निवास कराया जाता है जिसे पूजा पद्धति में अधिवास कहते हैं. इसके तहत प्राण प्रतिष्ठा की जाने वाली प्रतिमा का जल में निवास, अन्न में निवास, फल में निवास, औषधि में निवास, घी में निवास, शैय्या निवास, सुगंध निवास समेत अनेक प्रकार के निवास कराए जाते हैं। यह बेहद कठिन प्रक्रिया है.
उन्होंने बताया कि लगभग 150 से अधिक परंपराओं के संत धर्माचार्य, आदिवासी, गिरिवासी, समुद्रवासी, जनजातीय परंपराओं के संत महात्मा कार्यक्रम में आमंत्रित हैं. उन्होंने कहा कि इसके अतिरिक्त भारत में जितने प्रकार की विधाएं हैं चाहे वो खेल हो, वैज्ञानिक हो, सैनिक हो, प्रशासन हो, पुलिस हो, राजदूत हो, न्यायपालिका हो, लेखक हो, साहित्यकार हो, कलाकार हो, चित्रकार हो, मूर्तिकार हो, उसके श्रेष्ठजन आमंत्रित किए गए हैं.
मंदिर के निर्माण से जुड़े 500 से अधिक लोग जिन्हें इंजीनियर ग्रुप का नाम दिया गया है वो भी इस कार्यक्रम के साक्षी बनेंगे। लगभग 150 संप्रदायों के संत समारोह में शामिल होंगे उन्होंने बताया कि मानसरोवर, अमरनाथ, गंगोत्री, हरिद्वार, प्रयागराज का संगम, नर्मदा, गोदावरी, नासिक, गोकर्ण, अनेक स्थानों का जल आया है.
राय ने बताया, “ हमारे समाज की सामान्य परंपरा भेंट देने की है, इसलिए दक्षिण नेपाल का वीरगंज, जो मिथिला से जुड़ा हुआ क्षेत्र है, से एक हजार टोकरी में भेंट आई है। इसमें अन्न, फल, वस्त्र, मेवे, सोना और चांदी भी है. ” उन्होंने कहा, “इसी तरह सीतामढ़ी से जुड़े लोग भी आए हैं, जहां सीता माता का जन्म हुआ वहां से भी लोग भेंट लेकर आए हैं। यही नहीं, राम जी की ननिहाल छत्तीसगढ़ से भी लोग भेंट लाए हैं. एक साधु जोधपुर से अपनी गौशाला से घी लेकर आए हैं.”
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