नयी दिल्ली, 13 अगस्त : दिल्ली की एक अदालत ने नाबालिगों के यौन उत्पीड़न (Sexual Harassment) के आरोपी व्यक्ति को बरी करते हुए कहा कि बच्चों को उनके अभिभावकों ने बहुत कुछ सीखा रखा था. अदालत ने बरी किए गए व्यक्ति को एक लाख रुपए का मुआवजा देने का राज्य को निर्देश दिया और कहा कि इस बात के पर्याप्त साक्ष्य हैं कि ‘‘जाति संबंधी घृणा’’ के कारण ही उसे इस मामले में फंसाया गया है.
जिला एवं सत्र न्यायाधीश धर्मेश शर्मा ने कहा कि पर्याप्त सबूत इशारा करते हैं कि आरोपी, जो दलित समुदाय से है, के प्रति बच्चों के अभिभावकों की प्रवृत्ति पक्षपातपूर्ण है और उसे इस मामले में फंसाया गया है. अदालत ने सात अगस्त को दिए फैसले में कहा, ‘‘आपराधिक न्याय प्रदाता प्रणाली का हमारा अनुभव है कि लोग अनगिनत कारणों से झूठे आरोप लगाते हैं जिनमें से एक है जातिगत घृणा जैसा कि इस मामले में सबूतों को देखते हुए विदित है.’’ मामला 2015 में बच्चों का यौन अपराधों से संरक्षण (पोक्सो) कानून के तहत दर्ज करवाया गया था. यह भी पढ़ें : ‘वाहन स्क्रैपिंग नीति’ प्रदूषण घटाने, पर्यावरण, तेज विकास के लिए हमारी प्रतिबद्धता दर्शाती है: प्रधानमंत्री मोदी
आरोप था कि व्यक्ति ने अपने पड़ोसी की नाबालिग बेटियों का यौन उत्पीड़न किया है, आरोपी तभी से जेल में बंद था. जिला न्यायाधीश ने कहा, ‘‘हमारे समाज में, अच्छाई और बुराई के बीच सतत संघर्ष चलता रहता है और हम ऐसे दौर में रह रहे हैं जहां पर समाज में नैतिक मूल्यों का पतन हो रहा है तथा कुछ भी संभव है.’’ अदालत ने आरोपी को एक लाख रूपये की क्षतिपूर्ति दो महीने के भीतर देने का राज्य को निर्देश दिया. उन्होंने पुलिस की जांच को भी लचर बताया.