बाकू (अजरबैजान), 23 नवंबर दुनिया के सबसे कमजोर देशों के कम से कम दो समूहों ने ‘ग्लोबल साउथ’ के लिए जलवायु वित्त पर मसौदा समझौते को लेकर गहरा असंतोष व्यक्त करते हुए शनिवार को यहां संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन ‘सीओपी 29’ में वार्ता कक्ष से ‘वॉकआउट’ कर दिया।
‘ग्लोबल साउथ’ का संदर्भ दुनिया के कमजोर या विकासशील देशों के लिए दिया जाता है।
अल्प विकसित देशों (एलडीसी) के समूह और छोटे द्वीपीय देशों के गठबंधन (एओएसआईएस) के वार्ताकार बैठक कक्ष से बाहर चले गए, जबकि विकासशील और विकसित राष्ट्र नवीनतम मसौदे पर चर्चा कर रहे थे।
एलडीसी समूह ने कहा कि मसौदे पर उनसे परामर्श नहीं किया गया और इसमें उनके लिए न्यूनतम वित्तीय आवंटन का प्रावधान नहीं है। एक वार्ताकार ने कहा, ‘‘हम इस मसौदे के आधार पर बातचीत नहीं कर सकते।’’
एओएसआईएस की ओर से जारी एक बयान में कहा गया, ‘‘हमने फिलहाल एनसीक्यूजी (नए सामूहिक जलवायु वित्त लक्ष्य) की रुकी हुई चर्चाओं से खुद को अलग कर लिया है, जो आगे बढ़ने का कोई प्रगतिशील रास्ता नहीं सुझा रही थीं।’’
एलडीसी और एसआईडीएस (छोटे विकासशील द्वीपीय देश) मांग कर रहे हैं कि उन्हें कुल जलवायु वित्त पैकेज में से क्रमशः न्यूनतम 220 अरब अमेरिकी डॉलर और 39 अरब अमेरिकी डॉलर दिए जाने चाहिए।
इस बीच, 130 से अधिक विकासशील देशों का प्रतिनिधित्व करने वाले जी-77 समूह ने मसौदे में पेरिस समझौते के पैरा 9.1 का संदर्भ देने की मांग की, जिसके तहत विकसित देशों के लिए विकासशील देशों को वित्त प्रदान करना अनिवार्य करने का प्रावधान है। उसने 2035 तक जलवायु वित्त के लिए कम से कम 500 अरब अमेरिकी डॉलर की मांग भी की।
अन्य विकासशील देशों ने मसौदे की आलोचना की और प्रस्तावित जलवायु वित्त पैकेज को ‘‘बेहद अपर्याप्त’’ और ‘‘मजाक’’ बताया। अमेरिका स्थित पैरोकार समूह ‘एक्शन एड’ के विशेषज्ञ ब्रैंडन वू ने कहा कि अमेरिका मांग कर रहा है कि मसौदा समझौते में पैरा एक का उल्लेख नहीं होना चाहिए।
शिखर सम्मेलन का समापन शुक्रवार को होना था, लेकिन यह अतिरिक्त समय तक आयोजित हुआ, क्योंकि विकसित देशों ने समापन के समय जलवायु वित्त पर ठोस आंकड़े प्रस्तुत किए।
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