नई दिल्ली, 29 मई गन्ना किसानों का चीनी मिलों पर बकाया चालू पेराई सत्र में 17,134 करोड़ रुपये तक पहुंच गया है। केंद्रीय खाद्य मंत्रालय ने यह जानकारी दी।
गन्ना (नियंत्रण) आदेश, 1966 के तहत, चीनी मिलों को, गन्ना आपूर्ति के 14 दिनों के भीतर किसानों को गन्ना मूल्य का भुगतान करना होता है। यदि चीनी मिलें भुगतान करने में विफल रहती हैं, तो उन्हें 14 दिनों से अधिक देर होने पर, प्रति वर्ष 15 प्रतिशत की दर से ब्याज का भुगतान करना होता है।
केंद्रीय खाद्य मंत्रालय द्वारा रखे जाने वाले ताजा आंकड़ों के अनुसार, चीनी मिलों ने अक्टूबर-सितंबर 2019-20 गन्ना पेराई सत्र में 28 मई तक गन्ने की सकल 64,261 करोड़ रुपये देय राशि में से 47,127 करोड़ रुपये के गन्ना बकाये का भुगतान किया था।
आंकड़ों के अनुसार अभी तक कुल गन्ना बकाया 17,134 करोड़ रुपये है।
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चीनी सत्र 2018-19 (अक्टूबर-सितंबर) का गन्ने का बकाया 18,140 करोड़ रुपये था।
चीनी सत्र 2017-18 और 2018-19 में चीनी के अधिशेष उत्पादन के कारण चीनी की कीमतों में गिरावट ने मिलों की नकदी की स्थिति पर प्रतिकूल प्रभाव डाला, जिससे किसानों का गन्ना मूल्य बकाया बढ़ता चला गया।
खाद्य सचिव सुधांशु पांडे ने कहा कि किसानों को गन्ना मूल्य का भुगतान सुनिश्चित करने के लिए सरकार ने कई उपाय किए हैं।
उन्होंने कहा कि इथेनॉल उत्पादन क्षमता में वृद्धि के लिए लगभग 18,600 करोड़ रुपये के आसान ब्याजदर वाला रिण 362 चीनी मिलों और केवल शीरा-आधारित डिस्टलरीज चलाने वाली इकाइयों को दिया जा रहा है, जिसके लिए केंद्र द्वारा पांच वर्षो के लिए करीब 4,045 करोड़ रुपये की ब्याज सहायता (इंटरेस्ट सब्वेंशन) का खर्च बोझा वहन किया जा रहा है।
सरकार 40 लाख टन चीनी के बफर स्टॉक के रख-रखाव की 1,674 करोड़ रुपये की वहन लागत की प्रतिपूर्ति कर रही है।
इसके अलावा, सरकार 60 लाख टन चीनी के निर्यात पर खर्च को पूरा करने के लिए चीनी मिलों को 10,448 रुपये प्रति टन की सहायता प्रदान कर रही है और संभावित खर्च लगभग 6,268 करोड़ रुपये है।
पांडे ने कहा कि मौजूदा वर्षों में 60 लाख टन के अनिवार्य निर्यात कोटा में से, लगभग 36 लाख टन का निर्यात किया गया है। उन्होंने कहा कि चीनी मिलें आने वाले महीनों में 24 लाख टन निर्यात करने की कोशिश कर रही हैं।
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