
नयी दिल्ली, 22 जनवरी उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि नागरिक उड्डयन और हवाई अड्डों की सुरक्षा से निपटने के लिए वायुयान अधिनियम एक ‘‘पूर्ण संहिता’’ है, जबकि राज्य पुलिस केवल शिकायत दर्ज करने पर निर्णय लेने के लिए जांच सामग्री को अधिकृत अधिकारी को भेज सकती है।
हवाई अड्डा उल्लंघन के मामलों से निपटने में राज्य पुलिस की किसी भी अहम भूमिका को खारिज करते हुए यह महत्वपूर्ण फैसला झारखंड सरकार की अपील पर न्यायमूर्ति ए एस ओका और न्यायमूर्ति मनमोहन की पीठ ने सुनाया।
राज्य सरकार ने झारखंड उच्च न्यायालय के उस फैसले को चुनौती दी थी, जिसमें भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सांसदों निशिकांत दुबे और मनोज तिवारी तथा अन्य के खिलाफ प्राथमिकी रद्द कर दी गई थी।
उन पर 2022 में सूर्यास्त के बाद अपने विमान को देवघर हवाई अड्डे से उड़ान भरने की अनुमति देने के लिए हवाई यातायात नियंत्रण को दबाव डालने का आरोप है।
न्यायमूर्ति मनमोहन द्वारा लिखित तथा बुधवार को उपलब्ध कराए गए फैसले में कहा गया, "वायुयान अधिनियम, 1934 तथा इसके तहत बनाए गए नियम...एक पूर्ण संहिता है जो नागरिक विमानन तथा हवाई अड्डों की सुरक्षा से संबंधित है।’’
इसमें कहा गया है, ‘‘वायुयान अधिनियम, वायुयान अधिनियम, 1934 के तहत दंडनीय किसी भी अपराध का संज्ञान लेने के लिए एक विशेष प्रक्रिया भी निर्धारित करता है, यानी शिकायत विमानन अधिकारियों द्वारा या उनकी पूर्व मंजूरी के साथ की जानी चाहिए।।’’
पीठ ने अधिनियम और नियमों के प्रासंगिक प्रावधानों का हवाला दिया और कहा कि वायुयान अधिनियम के तहत संबंधित अदालत के समक्ष एक अधिकृत अधिकारी द्वारा अकेले शिकायत दर्ज की जा सकती है।
इसमें कहा गया है, ‘‘स्थानीय पुलिस केवल जांच के दौरान एकत्र की गई सामग्री को ही ऐसे अधिकृत अधिकारियों को भेज सकती है। शिकायत दर्ज करने या न करने के संबंध में कानून के अनुसार निर्णय अधिकृत अधिकारी को लेना होगा।’’
फैसले में कहा गया कि ऐसा कोई सबूत नहीं है कि सांसदों ने जीवन को खतरे में डालने के लिए जल्दबाजी या लापरवाही से काम किया, इसलिए उनके खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 336 (मानव जीवन को खतरे में डालना) के तहत कोई अपराध नहीं बनता।
इसने यह भी माना कि धारा 447 (आपराधिक अतिचार) का कोई अपराध नहीं बनता, क्योंकि सांसदों द्वारा जबरन प्रवेश करने, या धमकी देने का कोई आरोप नहीं था।
शीर्ष अदालत ने पिछले साल 18 दिसंबर को झारखंड उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ राज्य सरकार की अपील पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
मामला झारखंड के देवघर जिले के कुंडा थाना में दुबे और तिवारी सहित नौ लोगों के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी से संबंधित है।
सांसदों ने 31 अगस्त, 2022 को कथित रूप से हवाई अड्डा सुरक्षा प्रोटोकॉल का उल्लंघन करते हुए देवघर हवाई अड्डे पर एटीसी कर्मियों पर निर्धारित समय के बाद अपने निजी विमान को उड़ान भरने की मंजूरी देने के लिए दबाव डाला था।
शीर्ष अदालत का फैसला झारखंड सरकार की एक याचिका पर आया है, जिसमें 13 मार्च, 2023 के उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती दी गई थी। उच्च न्यायालय ने इस आधार पर प्राथमिकी को रद्द कर दिया था कि विमानन (संशोधन) अधिनियम, 2020 के अनुसार, प्राथमिकी दर्ज करने से पहले लोकसभा सचिवालय से कोई पूर्व मंजूरी नहीं ली गई थी।
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