देश की खबरें | टाटा को बाहर का रास्ता दिखाने के 13 साल बाद औद्योगीकरण चाहता है सिंगूर

सिंगूर, आठ अप्रैल किसान आंदोलन के जरिए टाटा को नेनो कार परियोजना हटाने के लिए मजबूर कर भारतीय राजनीति के मानचित्र पर लाए गए सिंगूर में अब 13 साल बाद औद्योगीकरण मुख्य चुनावी मुद्दा बन गया है क्योंकि जिस जमीन को लेकर इतना संघर्ष हुआ था वह अब बंजर पड़ी हुई है।

नंदीग्राम के साथ सिंगूर वही जगह है जिसने 34 साल के वाम मोर्चे के शक्तिशाली शासन की नींव हिला दी थी और 2011 में ममता बनर्जी को सत्ता प्रदान की थी। सिंगूर में चुनावी समर का नया खाका तैयार हो रहा है जहां टीएमसी के मौजूदा विधायक एवं भूमि अधिग्रहण विरोधी प्रदर्शनों का मुख्य चेहरा रहे रबिंद्रनाथ भट्टाचार्य भारतीय जनता पार्टी का दामन थाम चुके हैं।

सत्तारूढ़ पार्टी ने भट्टाचार्य के पूर्व सहयोगी, बेचाराम मन्ना को इस सीट से उतारा है।

टाटा परियोजना के लिए शुरुआत में अधिग्रहीत जमीनों को जिन किसानों को वापस कर दिया गया था वे अब अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए सरकारी दान और छोटी-मोटी नौकरियों पर निर्भर हैं। इनमें से कई ठगा हुआ महसूस करते हैं क्योंकि टीएमसी सरकार उनकी बंजर जमीनों को खेती योग्य बनाने का वादा पूरा करने में विफल रही है।

विडंबना यह है कि, टीएमसी और भाजपा दोनों ने ही स्थानीय लोगों की भावनाओं को भांपते हुए इस चुनाव में सिंगूर में औद्योगीकरण का वादा किया है जहां ‘मास्टर मोशाई’ के नाम से प्रसिद्ध 89 वर्षीय भट्टाचार्य और टीएमसी प्रत्याशी मन्ना इस मुद्दे पर इलाके में वाक् युदध् कर रहे हैं।

वहीं माकपा के युवा प्रत्याशी, श्रीजन भट्टाचार्य को उम्मीद है कि इस सीट से जीत उन्हीं की होगी, क्योंकि यहां उनकी पार्टी अपनी खोई हुई जमीन को पाने की भरसक कोशिश कर रही है।

ममता बनर्जी के सिंगूर आंदोलन के अगुआ रहे रबिंद्रनाथ भट्टाचार्य ने पीटीआई- से कहा, “हम कभी उद्योग के खिलाफ नहीं रहे, हम जबरन भूमि अधिग्रहण के खिलाफ थे। कुछ कारणों से चीजें नियंत्रण से बाहर थी। अगर भाजपा सत्ता में आती है तो हम क्षेत्र में निवेश लाएंगे।”

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