देश की खबरें | श्री कृष्ण जन्मभूमि एवं शाही ईदगाह विवाद मामला सुनवाई योग्य: इलाहाबाद उच्च न्यायालय

प्रयागराज, एक अगस्त इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने मथुरा स्थित श्री कृष्ण जन्मभूमि एवं शाही ईदगाह मस्जिद विवाद मामले में बृहस्पतिवार को कहा कि यह वाद सुनवाई योग्य है।

अदालत ने इस वाद में मुद्दे तय करने के लिए 12 अगस्त की तिथि निर्धारित की।

वाद की पोषणीयता को लेकर मुस्लिम पक्ष की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति मयंक कुमार जैन ने मुकदमे की पोषणीयता के संबंध में मुस्लिम पक्ष की दलीलें खारिज कर दीं। इससे पूर्व अदालत ने छह जून को निर्णय सुरक्षित रख लिया था।

हिंदू वादकारियों की ओर से दायर इन 17 मुकदमों में श्री कृष्ण जन्मभूमि मंदिर से सटी शाही ईदगाह मस्जिद हटाने की मांग की गई है। याचिकाकर्ताओं का दावा है कि औरंगजेब के जमाने में इस मस्जिद का निर्माण, एक मंदिर को ध्वस्त करने के बाद किया गया था।

हालांकि, मस्जिद प्रबंधन कमेटी और उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड की दलील थी कि ये वाद, पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम 1991 के तहत बाधित हैं। यह अधिनियम किसी भी पूजा स्थल का चरित्र बदलने से रोकता है।

उच्च न्यायालय के निर्णय के बाद हिंदू पक्ष के वकील विष्णु शंकर जैन ने न्यायालय परिसर के बाहर संवाददाताओं से कहा कि इन वादों की पोषणीयता को चुनौती देते हुए मुस्लिम पक्ष की ओर से जो भी दलीलें दी गई थीं, वे अदालत द्वारा खारिज कर दी गई हैं।

उन्होंने कहा कि इस निर्णय के बाद इलाहाबाद उच्च न्यायालय सभी 17 मामलों पर सुनवाई जारी रखेगा।

हिंदू पक्ष के वकील ने कहा, “अब हम उच्चतम न्यायालय जाकर माननीय अदालत से इलाहाबाद उच्च न्यायालय के सर्वेक्षण के आदेश पर लगी रोक हटाने की मांग करेंगे। हम आज के निर्णय के संबंध में उच्चतम न्यायालय में एक कैविएट भी दाखिल करेंगे।”

मथुरा में शाही मस्जिद कमेटी के सचिव तनवीर अहमद ने कहा कि वे उच्च न्यायालय के निर्णय के खिलाफ उच्चतम न्यायालय जाएंगे।

अदालत ने अपने निष्कर्ष में कहा, “समग्र रूप से और सार्थक ढंग से इन मुकदमों को पढ़ने, रिकॉर्ड में दर्ज सामग्री को देखने, संबंधित पक्षों द्वारा दी गई दलीलों पर विचार करने पर मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचता हूं कि ये सभी मुकदमे वक्फ अधिनियम, पूजा स्थल अधिनियम, विशेष राहत अधिनियम, समय सीमा अधिनियम और सीपीसी 1908 के प्रावधानों से बाधित प्रतीत नहीं होते।”

उल्लेखनीय है कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने छह अक्टूबर, 2023 के एक आदेश के तहत मथुरा की अदालत में लंबित इन मुकदमों को इस पीठ के लिए नामित किया था।

अदालत ने कहा, “जैसा कि पूजा स्थल अधनियम के तहत धार्मिक चरित्र परिभाषित नहीं किया गया है और उस स्थान का एक ही समय दोहरा चरित्र नहीं हो सकता। इसलिए विवादित स्थल का धार्मिक चरित्र दस्तावेजों और साक्ष्यों से निर्धारित करना होगा।”

अदालत ने 14 दिसंबर, 2023 के आदेश के तहत सर्वेक्षण के लिए आयोग की नियुक्ति का आवेदन स्वीकार कर किया था और कहा था कि आयोग का स्वरूप सुनवाई के बाद तय किया जाएगा।

इस आदेश से व्यथित होकर मस्जिद प्रबंधन कमेटी ने उच्चतम न्यायालय में एक विशेष अवकाश याचिका दायर की थी और उच्चतम न्यायालय ने कहा था, “उच्च न्यायालय के समक्ष सुनवाई जारी रहेगी। हालांकि, सुनवाई की अगली तिथि तक आयोग के निर्णय को क्रियान्वित नहीं किया जाएगा।”

(यह सिंडिकेटेड न्यूज़ फीड से अनएडिटेड और ऑटो-जेनरेटेड स्टोरी है, ऐसी संभावना है कि लेटेस्टली स्टाफ द्वारा इसमें कोई बदलाव या एडिट नहीं किया गया है)