देश की खबरें | सांगानेर खुली जेल: राजस्थान सरकार ने शीर्ष अदालत में अवमानना याचिका का किया विरोध

नयी दिल्ली, 25 नवंबर राजस्थान सरकार ने सोमवार को उच्चतम न्यायालय में उस याचिका का विरोध किया जिसमें उस पर जयपुर में सांगानेर खुली जेल परिसर के लिए आवंटित क्षेत्र को 300 बिस्तरों वाले अस्पताल के निर्माण के लिए लेने का आरोप लगाया गया है। सरकार ने इसे ‘‘प्रायोजित मुकदमा’’ करार दिया।

न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति के वी विश्वनाथन की पीठ ने उच्चतम न्यायालय के रजिस्ट्रार को एक कोर्ट कमिश्नर के रूप में कार्य करने और स्थल का निरीक्षण करने के बाद एक रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया।

पीठ एक अवमानना ​​याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें राजस्थान के अधिकारियों पर उच्चतम न्यायालय के 17 मई के आदेश की जानबूझकर अवज्ञा करने का आरोप लगाया गया था। आदेश में निर्देश दिया गया था कि देश में खुले में क्रियाशील शिविरों/जेलों के क्षेत्र को कम करने का कोई प्रयास नहीं किया जाएगा।

अर्ध-खुली या खुली जेलें दोषियों को आजीविका कमाने के लिए दिन के दौरान परिसर के बाहर काम करने और शाम को लौटने की अनुमति देती हैं। इस अवधारणा को दोषियों को समाज में शामिल होने और मनोवैज्ञानिक दबाव को कम करने के लिए पेश किया गया था क्योंकि उन्हें बाहर सामान्य जीवन जीने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता था।

राजस्थान की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि राज्य ने सांगानेर ‘ओपन-एयर कैंप’ के क्षेत्र को न तो कम किया है और न ही कम करने का कोई प्रयास किया जा रहा है।

उन्होंने कहा, ‘‘यह मुख्यमंत्री (राजस्थान) का निर्वाचन क्षेत्र है, जहां ऐसे लोग हैं जो नहीं चाहते कि यहां अस्पताल बने।’’

उन्होंने कहा कि यह याचिका असम के एक व्यक्ति ने दायर की है।

मेहता ने कहा कि सरकारी राजस्व रिकॉर्ड के अनुसार सांगानेर ‘ओपन एयर’ जेल परिसर को आवंटित क्षेत्र लगभग 1.78 हेक्टेयर है और न तो आवंटित क्षेत्र को कम किया गया है और न ही इसे कम करने का कोई प्रस्ताव या निर्णय है।

उन्होंने कहा कि 300 बिस्तरों वाले सरकारी अस्पताल के निर्माण के लिए आवंटित क्षेत्र, खुली जेल के लिए आवंटित वास्तविक क्षेत्र से पूरी तरह बाहर है।

जब मेहता ने कहा कि यह एक ‘‘प्रायोजित मुकदमा’’ प्रतीत होता है, तो पीठ ने पूछा, ‘‘इसके पीछे कौन हो सकता है? ऐसा तो नहीं है कि किसी का कोई व्यावसायिक हित है।’’

सॉलिसिटर जनरल ने कहा, ‘‘मुझे कारण पता है, मैं बताना नहीं चाहता। हमें इसमें नहीं जाना चाहिए। उद्देश्य यह है कि अदालत के निर्देश का पालन किया जाना चाहिए। अस्पताल का निर्माण रुकना नहीं चाहिए। यही उद्देश्य है।’’

याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता एस. मुरलीधर ने कहा कि खुली जेल को वैसे ही काम करने दिया जाना चाहिए, जैसी वह है और अस्पताल के निर्माण पर किसी को आपत्ति नहीं है।

पीठ ने कहा, ‘‘इसलिए, हम पाते हैं कि यह उचित होगा कि अदालत स्थल निरीक्षण और रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए एक कोर्ट कमिश्नर नियुक्त करे...।’’

पीठ ने कहा, ‘‘हमारा यह भी मानना ​​है कि एक खुला सुधार गृह और साथ ही आसपास के इलाकों में रहने वाले नागरिकों की जरूरतों को पूरा करने वाला एक अस्पताल होने के बीच एक संतुलन होना चाहिए।’’

पीठ ने शीर्ष अदालत के रजिस्ट्रार को कोर्ट कमिश्नर के रूप में कार्य करने और पीठ के समक्ष एक रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया।

उसने मामले की अगली सुनवाई 16 दिसंबर को करना तय किया।

शीर्ष अदालत ने जेलों में भीड़भाड़ से संबंधित मामले में 17 मई को आदेश पारित किया था।

मई में मामले की सुनवाई करते हुए शीर्ष अदालत ने कहा था कि खुली जेलों की स्थापना भीड़भाड़ के समाधानों में से एक हो सकती है और कैदियों के पुनर्वास के मुद्दे का भी समाधान कर सकती है।

(यह सिंडिकेटेड न्यूज़ फीड से अनएडिटेड और ऑटो-जेनरेटेड स्टोरी है, ऐसी संभावना है कि लेटेस्टली स्टाफ द्वारा इसमें कोई बदलाव या एडिट नहीं किया गया है)