देश की खबरें | रेलिगेयर मामला : अदालत ने सिंह बंधुओं के खिलाफ साजिश, धोखाधड़ी के आरोप तय किए

नयी दिल्ली, 17 जनवरी दिल्ली की एक अदालत ने रेलिगेयर एंटरप्राइजेज लिमिटेड (आरईएल) के पूर्व प्रवर्तक मालविंदर मोहन सिंह और उनके भाई शिविंदर मोहन सिंह के खिलाफ आपराधिक साजिश और धोखाधड़ी के आरोप तय किए हैं।

दिल्ली पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा (ईओडब्ल्यू) ने धन की हेराफेरी के संबंध में मूल कंपनी रेलिगेयर फिनवेस्ट लिमिटेड (आरएफएल) की शिकायत पर सिंह बंधुओं और अन्य के खिलाफ मार्च 2019 में प्राथमिकी दर्ज की थी।

ईओडब्ल्यू ने मालविंदर, उनके भाई और अन्य को आरएफएल के पैसों का निवेश अन्य कंपनियों में करने के आरोप में गिरफ्तार किया था।

अदालत ने पिछले साल 16 दिसंबर को पारित एक आदेश में कहा था कि दोनों आरोपियों ने 2016 से 2018 तक आरएफएल से धोखाधड़ी करके कथित तौर पर 1,260 करोड़ रुपये की हेराफेरी की।

अदालत ने कहा कि आरोपों से स्पष्ट है कि दोनों आरोपी आरईएल और आरएफएल के प्रवर्तक होने के नाते आरएफएल के कामकाज को नियंत्रित एवं प्रभावित करते थे।

उसने कहा, ‘‘दोनों आरोपियों ने एक-दूसरे के साथ मिलकर साजिश रची और 2016 से 2018 तक आरईएल के प्रबंधन के माध्यम से आरएफएल के प्रबंधन को प्रभावित करके धन की हेराफेरी की।’’

अदालत ने सबूतों पर गौर किया, जिसमें सेबी (भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड) की रिपोर्ट और अभियोजन पक्ष के गवाहों के बयान शामिल थे। उसने कहा कि सबूतों से स्पष्ट है कि मालविंदर और शिविंदर ने एक-दूसरे के साथ मिलकर आपराधिक साजिश रची और अपने प्रभाव का दुरुपयोग करते हुए आरएचसी होल्डिंग्स (प्रवर्तक समूह की एक कंपनी) को गलत नियत से 19 संस्थाओं (आरोपी कंपनियां) के माध्यम से धन हस्तांतरित करके अनुचित लाभ हासिल किया तथा शिकायतकर्ता कंपनी (आरएफएल) को नुकसान पहुंचाया।

अदालत ने कहा, ‘‘इसलिए, दोनों आरोपियों पर भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 420 (धोखाधड़ी)/120 बी (आपराधिक साजिश) के तहत आरोप तय किया जा सकता है।’’

अदालत ने 229 पन्नों के अपने आदेश में इन आरोपों का संज्ञान लिया कि दोनों आरोपियों ने आरएफएल को मुखौटा कंपनियों और अन्य संबंधित या ज्ञात इकाइयों को असुरक्षित एवं उच्च मूल्य वाले ऋण जारी करने के लिए प्रेरित किया।

आदेश में कहा गया है, ‘‘इस तरह, आरोपियों या उनके एजेंट/नामितों/सहयोगियों से प्राप्त निर्देशों के अनुसार, आरएफएल द्वारा करोड़ों रुपये की राशि बहुत ही कम समय में और बिना पर्याप्त दस्तावेजों के जारी की गई। कई मामलों में तो दस्तावेज बाद में जुटाए गए।’’

अदालत ने कहा कि कथित ऋण हासिल करने वाली इकाइयों के आचरण से स्पष्ट है कि उनका कभी भी ऋण चुकाने का इरादा नहीं था।

उसने कहा, ‘‘उपरोक्त आरोपों के मद्देनजर यह कहा जा सकता है कि आरोपी नंबर 1 और 2 ने एक-दूसरे के साथ साजिश में आरएफएल व्यवसाय की शुरुआत से ही मुख्य रूप से धन को स्थानांतरित करने के इरादे से कॉर्पोरेट ऋण पुस्तिका बनाई।’’

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