विदेश की खबरें | अफगानिस्तान से अमेरिकी, नाटो सैनिकों को वापस बुलाने से बढ़ेगी भारत की चिंता : विशेषज्ञ

वाशिंगटन, 15 अप्रैल विशेषज्ञों ने कहा है कि अमेरिका और नाटो के सैनिकों को 11 सितंबर तक अफगानिस्तान से वापस बुलाये जाने पर तालिबान का फिर से सिर उठाना और इस युद्धग्रस्त देश का आतंकवादियों द्वारा शरणस्थली के रूप में उपयोग किया जाना भारत के लिए चिंता का विषय होगा।

अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन ने बुधवार को घोषणा की कि अफगानिस्तान में करीब दो दशक के बाद इस साल 11 सितंबर तक वहां से सभी अमेरिकी सैनिकों को वापस बुला लिया जायेगा।

इसके बाद, उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) ने भी कहा कि वह अफगानिस्तान से अपने सैनिकों को वापस बुला लेगा।

बाइडन ने कहा कि उनका प्रशासन क्षेत्र के अन्य देशों, विशेष रूप से पाकिस्तान, रूस, चीन, भारत और तुर्की से अफगानिस्तान की और अधिक सहायता करने का अनुरोध करेगा।

उन्होंने कहा, ‘‘उन सभी का अफगानिस्तान के स्थिर भविष्य में महत्वपूर्ण हित है।’’

बाइडन ने कहा, ‘‘हम आनन-फानन में वहां से सैनिकों को वापस नहीं बुलाने जा रहे हैं। हम इसे जिम्मेदारी के साथ, सोच विचार कर और सुरक्षित रूप से करेंगे। हम अपने सहयोगियों एवं साझेदारों के साथ पूरा समन्वय करते हुए इसे करेंगे, जिनके अब अफगानिस्तान में हमारी तुलना में कहीं अधिक सुरक्षा बल हैं। ’’

हालांकि, अमेरिकी विशेषज्ञ और क्षेत्र के देश, खासतौर पर भारत वहां से अमेरिकी सैनिकों की वापसी और तालिबान आतंकवादियों की गतिविधियों को बड़ी चिंता के रूप में देखेगा।

पूर्ववर्ती डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन में राष्ट्रपति की उपसलाहकार और 2017-2021 के लिए दक्षिण एवं मध्य एशिया मामलों में एनएससी की वरिष्ठ निदेशक रहीं लीज़ा कर्टिस ने कहा, ‘‘ क्षेत्र के देशों, खासतौर पर भारत, अमेरिकी सैनिकों को अफगानिस्तान से वापस बुलाये जाने से और वहां (अफगानिस्तान में) तालिबान के फिर से सिर उठाने से अत्यधिक चिंतित होगा।’’

कर्टिस ने कहा, ‘‘1990 के दशक में अफगानिस्तान में जब तालिबान का नियंत्रण था तब उसने अफगानिस्तान से धन उगाही के लिए आतंकवादियों को पनाह दी, उन्हें प्रशिक्षित किया तथा आतंकवादी संगठनों में उनकी भर्ती की। लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद समेत आतंकी संगठनों के कई आतंकवादियों को भारत में 2001 में संसद पर हमले को अंजाम देने जैसी हकरतों के लिए प्रशिक्षित किया।’’

अमेरिकी सरकार में 20 साल से अधिक सेवा दे चुकीं और विदेश नीति एवं राष्ट्रीय सुरक्षा मामलों की विशेषज्ञ कर्टिस वर्तमान में सेंटर फॉर न्यू अमेरिकन सिक्योरिटी (सीएनएएस) थिंक-टैंक में हिंद-प्रशांत सुरक्षा कार्यक्रम की सीनियर फेलो और निदेशक हैं।

उन्होंने कहा, ‘‘भारतीय अधिकारियों को दिसंबर 1999 में एक भारतीय विमान का अपहरण करने वाले आतंकवादियों और तालिबान के बीच करीबी सांठगांठ भी याद होगा। अफगानिस्तान की जमीन का इस्तेमाल भारत विरोधी आतंकवादी नहीं किया जा सके, यह सुनिश्चित करने के लिए संयुक्त राष्ट्र के मौजूदा प्रयास की तर्ज पर देश में शांति एवं स्थिरता के लिए भारत क्षेत्रीय प्रयासों में अपनी भूमिका बढ़ा सकता है।’’

अमेरिका में पाकिस्तान के राजदूत रह चुके एवं वर्तमान में हडसन इंस्टीट्यूट थिंक-टैंक में दक्षिण एवं मध्य एशिया मामलों के निदेशक हुसैन हक्कानी ने ‘पीटीआई’ से कहा, ‘‘तालिबान के कब्जे वाले क्षेत्र के फिर से आतंकवादियों के लिए पनाहगाह बनने से भारत चिंतित होगा।’’

उन्होंने कहा कि वास्तविक सवाल यह है कि क्या सैनिकों को वापस बुलाये जाने के बाद भी अमेरिका अफगानिस्तान सरकार को मदद जारी रखेगा ताकि वहां के लोग तालिबान का मुकाबला करने में सक्षम हों।

तालिबान ने अब तक शांति प्रक्रिया में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई है और दोहा में हुई वार्ताओं में उसने अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की वापसी की बात को ही दोहराया है।

वाशिंगटन पोस्ट ने अपने संपादकीय में कहा है कि अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों को वापस बुलाने की बाइडन की योजना क्षेत्र के लिए घातक हो सकती है।

वाशिंगटन पोस्ट ने कहा, ‘‘राष्ट्रपति बाइडन ने अफगानिस्तान से हटने का सबसे आसान तरीका चुना लेकिन इसके नतीजे खतरनाक हो सकते हैं।’’

‘न्यूयॉर्क टाइम्स’ ने कहा कि लंबे समय तक आतंकवादी संगठनों पर रोक लगा पाना मुश्किल हो सकता है। ऐसा ही कुछ विचार वाल स्ट्रीट जर्नल ने भी प्रकाशित किया है।

दोहा में अमेरका-तालिबान के बीच जिस समझौते पर हस्ताक्षर हुआ है उसके मुताबिक अमेरिका 14 महीने के भीतर अपने सैनिकों की वापसी पर सहमत हुआ है।

अमेरिका के 2,400 सैनिक अब तक अफगानिस्तान में मारे गये हैं।

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