देश की खबरें | ‘व्यक्तित्व बनाम विकास के वादों' की लड़ाई बना रामपुर विधानसभा उपचुनाव

रामपुर (उत्तर प्रदेश) दो दिसंबर उत्तर प्रदेश के रामपुर विधानसभा क्षेत्र का उपचुनाव 'व्यक्तित्व बनाम विकास के वादों' की लड़ाई का बन गया है। इस उपचुनाव में आजम खान की प्रतिष्ठा पहले से कहीं ज्यादा दांव पर लगी है क्योंकि बदले हालात में यह उपचुनाव उनकी राजनीतिक साख के लिए निर्णायक साबित हो सकता है।

रामपुर के बेहद प्रभावशाली नेता माने जाने वाले आजम लगभग 45 साल के बाद पहली बार किसी चुनाव में उम्मीदवार के तौर पर खड़े नहीं हैं, लेकिन अपनी दमदार उपस्थिति दर्ज कराना उनके लिए सबसे बड़ी परीक्षा है।

उपचुनाव में सपा प्रत्याशी के रूप में उनके विश्वासपात्र आसिम राजा भले ही मैदान में हों लेकिन असल चुनाव आजम खान की प्रतिष्ठा का ही है।

रामपुर के आम लोगों से बात करने पर पता चलता है कि इस बार चुनाव में विकास एक प्रमुख मुद्दा है। भाजपा भी विकास को आजम खान की काट के तौर पर इस्तेमाल कर रही है। दूसरी ओर आजम का व्यक्तित्व कहीं-कहीं मुद्दों पर भारी नजर आता है।

आजम समर्थकों का गढ़ माने जाने वाले बाजौरी टोला के रहने वाले अच्छन खां का कहना है "इस बार चुनाव में विकास ही मुख्य मुद्दा है। हम 40 साल से आजम के साथ हैं, लेकिन हमारे हाथ खाली हैं। भाजपा ने हमें प्रधानमंत्री आवास दिया। हम किसान हैं, हमें किसान सम्मान निधि मिल रही है। यह सब खान ने नहीं दिलाया। इस बार हम भाजपा के साथ हैं।"

सिविल लाइंस क्षेत्र के रहने वाले बीएड के छात्र मोहम्मद नवाज का कहना है कि भलाई इसी में है कि जिस तरफ हवा चले उसी तरफ पर चलो। भाजपा रामपुर के विकास का मुद्दा उठा रही है। रामपुर को विकास ही चाहिए।

उन्होंने कहा कि नौजवानों को रोजगार की जरूरत है और रामपुर में इसकी खासी किल्लत है। यही वजह है कि यहां के बहुत से युवाओं को बाहर जाकर रोजगार तलाशना पड़ता है।

सिविल लाइन इलाके में रेस्टोरेंट्स चलाने वाले मदनलाल अरोरा का कहना है कि आजम खान के बहुत से करीबी लोग भाजपा में चले गए हैं, जिससे चुनाव पर फर्क पड़ सकता है। दूसरी अहम बात यह है कि खुद आजम उपचुनाव में खड़े नहीं हैं। अगर वह होते तो दूसरी ही बात होती, मगर उनकी जगह आसिम राजा चुनाव लड़ रहे हैं। जिनका कद उतना बड़ा नहीं है।

हालांकि रामपुर के मतदाताओं का एक तबका ऐसा भी है जो आजम के साथ मजबूती से खड़ा है।

ई-रिक्शा चालक शन्नू खां कहते हैं "आजम ने हमें रोजी रोटी दी है और इज्जत से जिंदगी जीने का मौका दिया है, इसलिए हम उनका साथ कभी नहीं छोड़ सकते। चाहे कोई कितना ही बहलाये-फुसलाये मगर हमारा इरादा नहीं बदलने वाला।"

चुनावी माहौल का जायजा लेने निकले तो इसमें लड़ाई आसिम राजा बनाम आकाश सक्सेना नहीं बल्कि आजम खान बनाम भाजपा नजर आती है। खास बात यह है कि भाजपा सपा प्रत्याशी आसिम राजा के बजाय आजम खान को ही निशाना बना रही है। इस वजह से लड़ाई पूरी तरह से उन पर ही केंद्रित हो गई है।

रामपुर से 10 बार विधानसभा और एक बार लोकसभा पहुंचे आजम खां को वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान नफरत भरा भाषण देने के मामले में रामपुर की एक अदालत ने इसी महीने तीन साल की सजा सुनाई। इसके बाद आजम की विधानसभा सदस्यता खत्म कर दी गई और उनका वोट देने का अधिकार भी वापस ले लिया गया है ।

अब वह छह साल तक चुनाव नहीं लड़ सकेंगे, लिहाजा वह जानते हैं कि रामपुर विधानसभा उपचुनाव में भाजपा को हराना ही सबसे माकूल जवाब होगा। ऐसे हालात में आजम भले ही चुनाव मैदान में उम्मीदवार के तौर पर मौजूद ना हों लेकिन इसके बावजूद एक तरह से उनका सब कुछ दांव पर लगा हुआ है।

खान के एक करीबी सहयोगी के मुताबिक पूर्व मंत्री रामपुर की उन गलियों में भी जाकर लोगों से सपा प्रत्याशी आसिम राजा के लिए वोट मांग रहे हैं जहां उन्होंने दो-ढाई दशक से कदम भी नहीं रखा था।

पिछले करीब साढे़ चार दशक तक रामपुर का चुनाव आजम के व्यक्तित्व के गिर्द ही घूमता रहा। मगर बदले हालात में भाजपा अब इस चलन को तोड़ने में जुटी है और वह विकास के मुद्दे को आगे रखकर चुनाव लड़ रही है।

रामपुर से पूर्व सांसद और केंद्र में मंत्री रहे मुख्तार अब्बास नकवी इस बार उपचुनाव में भाजपा को जीत दिलाने के लिए रामपुर में मौजूद हैं। उन्होंने 'पीटीआई-' से बातचीत में कहा कि इस बार का चुनाव विचारधारा की लड़ाई है, एक ऐसी विचारधारा जो अहंकार के खिलाफ है और विकास की पैरवी करती है।

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