
नयी दिल्ली, 17 जनवरी राजनीतिक दलों ने पिछले साल महाराष्ट्र और झारखंड में हुए विधानसभा चुनावों में आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों को मैदान में उतारने के लिए उनकी “मजबूत प्रशासनिक क्षमता” और “सार्वजनिक सेवा के प्रति समर्पण भाव” का हवाला दिया तथा उनके खिलाफ दर्ज मामलों को “राजनीति से प्रेरित” बताया। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) की ओर से शुक्रवार को जारी रिपोर्ट से यह बात सामने आई है।
एडीआर ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि कई मामलों में पार्टियों ने दागी प्रत्याशियों के चयन को जायज ठहराने के लिए वैकल्पिक उम्मीदवारों को अनुभव की कमी या उनके मतदाताओं से जुड़ने में असमर्थ होने के कारण खारिज किए जाने की बात कही।
एडीआर ने नवंबर 2024 में संपन्न महाराष्ट्र और झारखंड विधानसभा चुनावों में किस्मत आजमाने वाले 1,286 उम्मीदवारों के फॉर्म सी7 का विश्लेषण किया। फॉर्म सी7 में उम्मीदवारों के लिए अपना आपराधिक इतिहास (यदि कोई हो तो) घोषित करना अनिवार्य होता है।
एडीआर की रिपोर्ट के मुताबिक, इस तरह के तर्क दागी उम्मीदवारों के चयन के लिए विस्तृत और गुण-दोष आधारित कारण गिनाने के उच्चतम न्यायालय के आदेश पर खरे नहीं उतरते। इसमें कहा गया है कि पार्टियों ने अपने चयन को जायज ठहराने के लिए “उम्मीदवार युवा और ऊर्जावान है” या “मामले जन आंदोलन के कारण दर्ज किए गए” जैसे तर्क बार-बार दिए।
रिपोर्ट के अनुसार, पार्टियों ने महाराष्ट्र में 29 फीसदी और झारखंड में 20 प्रतिशत दागी उम्मीदवारों के चयन को उचित ठहराने के लिए कोई औचित्य प्रकाशित नहीं किया, जो शीर्ष अदालत के आदेशों का सीधा उल्लंघन है।
रिपोर्ट में महाराष्ट्र के दिगंबर रोहिदास आगवाणे का जिक्र किया गया है, जो 35 आपराधिक मामलों का सामना कर रहे हैं। इसमें कहा गया है कि राष्ट्रीय समाज पक्ष ने आगवाणे को गरीबों के लिए समर्पित एक “प्रभावशाली नेता” के रूप में वर्णित किया और ऐसे उम्मीदवारों को नजरअंदाज करने के लिए कोई उचित स्पष्टीकरण नहीं दिया, जिनका कोई आपराधिक इतिहास नहीं है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि इसी तरह, क्रमशः 27 और 26 आपराधिक मामलों का सामना कर रहे कांग्रेस के संजय चंदुकाका जगताप और बंटी बाबा शेल्के को चुनाव मैदान में उतारने के लिए उनके प्रशासनिक अनुभव का हवाला दिया गया और यह भी कहा गया कि वे राजनीतिक प्रतिशोध की भावना के शिकार हैं।
रिपोर्ट में अनिवार्य खुलासे के गैर-अनुपालन पर भी प्रकाश डाला गया।
इसमें कहा गया है कि महाराष्ट्र में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरदचंद्र पवार) और शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) आपराधिक मामलों वाले अपने किसी भी उम्मीदवार के चयन के लिए उचित कारण बताने में नाकाम रहे।
इसी तरह की खामियां झारखंड में भी देखी गईं, जहां झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) ने आपराधिक रिकॉर्ड वाले अपने किसी भी उम्मीदवार को चुनने की वजहों का खुलासा नहीं किया।
एडीआर ने तत्काल सुधारों का आह्वान किया है, जिसमें अनुपालन न करने वाली पार्टियों का पंजीकरण रद्द करना, गंभीर आपराधिक मामलों का सामना कर रहे उम्मीदवारों को अयोग्य ठहराना और निर्वाचन आयोग द्वारा कड़ी निगरानी शामिल है।
एडीआर के मुताबिक, महाराष्ट्र में जिन उम्मीदवारों के फॉर्म सी7 का विश्लेषण किया गया, उनमें से 48 फीसदी (1,052 में से 503) ने अपने खिलाफ आपराधिक मामले होने की जानकारी दी। इनमें से 32 प्रतिशत गंभीर आरोपों का सामना कर रहे थे।
रिपोर्ट के अनुसार, झारखंड में 45 प्रतिशत उम्मीदवारों (234 में से 105) ने आपराधिक मामले घोषित किए, जिनमें से 35 प्रतिशत पर गंभीर आरोपों में मुकदमे दर्ज थे।
रिपोर्ट में कहा गया है कि 15 आपराधिक मामलों का सामना कर रहे भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के उम्मीदवार बाबूलाल मरांडी की उनकी सामाजिक सेवा के लिए तारीफ की गई और उन पर लगे आरोपों को राजनीति से प्रेरित बताकर खारिज कर दिया गया।
रिपोर्ट में उम्मीदवारों के चयन में “जीतने की क्षमता” को ईमानदारी पर प्राथमिकता देने के लिए राजनीतिक दलों की आलोचना की गई और निर्वाचन आयोग पर अनुपालन को प्रभावी ढंग से लागू करने में विफल रहने का आरोप लगाया गया।
रिपोर्ट में संपत्ति के खुलासे संबंधी नियम पर भी अमल न किए जाने का दावा किया गया है।
इसमें कहा गया है कि महाराष्ट्र में ऐसे 83 प्रतिशत उम्मीदवार करोड़पति थे, जिनमें भाजपा के प्रशांत रामशेठ ठाकुर भी शामिल थे, जिन्होंने 475 करोड़ रुपये की संपत्ति घोषित की थी।
रिपोर्ट के अनुसार, झारखंड में सबसे अमीर उम्मीदवारों की सूची में कांग्रेस प्रत्याशियों का दबदबा रहा। इसमें कहा गया है कि कृष्णा नंद त्रिपाठी सबसे अमीर उम्मीदवार थे, जिन्होंने 70 करोड़ रुपये की संपत्ति घोषित की।
एडीआर ने इस बात पर जोर दिया कि धन, बाहुबल और राजनीति के बीच गहरे संबंध से निपटने के लिए प्रणालीगत सुधार बेहद आवश्यक हैं।
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