देश की खबरें | वक्फ कानून के जरिए मुस्लिमों को दूसरे दर्जे का नागरिक बनाने की संगठित कोशिश: जमीयत

नयी दिल्ली, 13 अप्रैल प्रमुख मुस्लिम संगठन जमीयत उलेमा-ए-हिंद (एमएम) ने केंद्र की भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) सरकार पर संविधान और उसकी मूल अवधारणा का उल्लंघन करने का आरोप लगाते हुए वक्फ (संशोधन) अधिनियम को वापस लेने की रविवार को मांग की। संगठन ने एक बयान में यह जानकारी दी।

बयान के मुताबिक, संगठन ने केंद्र पर वक्फ (संशोधन) कानून के जरिए मुस्लिमों को “दूसरे दर्जे का नागरिक बनाने का संगठित और कुत्सित प्रयास” करने का भी आरोप लगाया।

जमीयत प्रमुख मौलाना महमूद मदनी की अध्यक्षता में हुई संगठन की कार्य समिति की बैठक में वक्फ (संशोधन) अधिनियम के खिलाफ प्रस्ताव पारित किया गया और दावा किया गया कि यह संशोधित कानून संविधान के कई अनुच्छेदों का उल्लंघन करता है और “वक्फ के मूल ढांचे को नुकसान पहुंचाने की कोशिश भी है।”

इसके अनुसार, पारित प्रस्ताव में कहा गया है कि केन्द्रीय वक्फ परिषद और राज्य वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिम व्यक्तियों का बहुमत होना धार्मिक मामलों में खुला हस्तक्षेप है, जो भारतीय संविधान के अनुच्छेद 26 का खुला उल्लंघन है।

इसमें दावा किया गया है, “इस तरह का कानून दरअसल बहुसंख्यक वर्ग के वर्चस्व का प्रतीक है, जिसका हम पूरी तरह विरोध करते हैं। यह हमें किसी भी स्थिति में स्वीकार्य नहीं है।”

प्रस्ताव में कहा गया है, “वर्तमान सरकार भारत के संविधान की भावना और उसकी मूल अवधारणा का उल्लंघन कर रही है। हम इसे पूरी तरह से समझते हैं कि एक पूरे समुदाय को हाशिए पर डालने, उनकी धार्मिक पहचान को मिटाने और उन्हें दूसरे दर्जे का नागरिक बनाने का संगठित और कुत्सित प्रयास किया जा रहा है।”

इसके मुताबिक, संगठन ने केंद्र सरकार से वक्फ (संशोधन) अधिनियम 2025 को तुरंत वापस लेने की मांग करते हुए कहा कि सरकार को यह समझना चाहिए कि “वक्फ इस्लामी कानून का एक मौलिक हिस्सा है, जो कुरान और हदीस (पैगंबर मोहम्मद की शिक्षाओं) से लिया गया है और यह अन्य दूसरी इबादत की तरह एक धार्मिक कार्य है।”

प्रस्ताव में कहा गया है कि संशोधन की भावना हमेशा प्रशासनिक सुधार पर आधारित होनी चाहिए, जैसा कि गत कुछ संशोधनों के माध्यम से हुआ है।

इसमें कहा गया है कि कार्यकारी समिति सरकार और विपक्षी दलों द्वारा वक्फ संपत्तियों और प्रस्तावित संशोधनों के संबंध में दिए गए भ्रामक बयानों की कठोर शब्दों में निंदा करती है।

इसके अलावा, प्रस्ताव में इस संशोधित अधिनियम के विरुद्ध प्रदर्शन करने वालों को रोकने व उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने के प्रशासन के कदमों की निंदा की गई है। इसमें यह भी कहा गया है कि विरोध-प्रदर्शन के दौरान हिंसा निराशाजनक है और जो तत्व विरोध-प्रदर्शन के दौरान हिंसा में लिप्त हो रहे हैं, वह वास्तव में “वक्फ की रक्षा के इस आंदोलन को कमजोर कर रहे हैं।”

कार्य समिति की बैठक में वक्फ के अलावा, उत्तराखंड में लागू की गई समान नागरिक संहिता (यूसीसी) के खिलाफ भी प्रस्ताव पारित किया गया।

प्रस्ताव में कहा गया है कि इसे(यूसीसी) लागू करना और मुस्लिम पर्सनल लॉ को समाप्त करना धार्मिक अधिकारों का खुला उल्लंघन है तथा मुस्लिम पारिवारिक कानूनों को समाप्त करने का प्रयास लोकतंत्र की भावना और भारत के संविधान में प्रदत्त गारंटी के खिलाफ है।

प्रस्ताव के मुताबिक, यूसीसी केवल मुसलमानों की समस्या नहीं है, बल्कि इसका संबंध देश के विभिन्न सामाजिक समूहों, समुदायों, जातियों और सभी वर्गों से है।

इसमें कहा गया है, “हमारा देश अनेकता में एकता का सर्वोच्च उदाहरण है, हमारे बहुलतावाद की अनदेखी करके जो भी कानून बनाया जाएगा, उसका सीधा असर देश की एकता और अखंडता पर पड़ेगा।”

जमीयत की कार्य समिति की बैठक में शीर्ष अदालत के निर्देशों की खुलेआम अवहेलना करते हुए देश की विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा कथित रूप से बुलडोजर कार्रवाई जारी रखने पर भी गहरी चिंता व्यक्त की गई। इस बाबत पारित प्रस्ताव में कहा गया है कि इस तरह की कार्रवाई न केवल कानून के शासन का उल्लंघन करती हैं, बल्कि न्याय, समानता और लोकतंत्र के उन मौलिक सिद्धांतों को भी कमजोर करती हैं जिन पर “हमारी लोकतांत्रिक प्रणाली आधारित है।”

संगठन की बैठक में गाजा पर इजराइली हमलों के खिलाफ भी प्रस्ताव पारित किया गया और कहा गया कि जमीयत की “यह सभा गाजा में जारी इजराइल के दमनकारी रवैये, युद्ध अपराध और निर्दोष फलस्तीनी लोगों के नरसंहार को मानवता के खिलाफ गंभीर अपराध मानती है।”

प्रस्ताव में जमीयत ने केंद्र सरकार से मानवीय आधार पर तत्काल हस्तक्षेप करते हुए युद्ध विराम सुनिश्चित करने में सक्रिय भूमिका निभाने और घायल फलस्तीनियों के उपचार और देखभाल के लिए ठोस और प्रभावी उपाय करने की मांग की।

नोमान

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