हिरासत में मौत को लेकर सुप्रीम कोर्ट सख्त, कहा- मामले में पुलिस अधिकारी की जमानत पर कठोर रुख अपनाने की जरूरत
Supreme Court | PTI

नयी दिल्ली, 28 मार्च: उच्चतम न्यायालय ने हिरासत में मौत के एक मामले में एक पुलिस कांस्टेबल को दी गई जमानत को रद्द करते हुए कहा है कि एक सामान्य व्यक्ति की तुलना में एक पुलिस अधिकारी अधिक प्रभाव डाल सकता है. न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस और न्यायमूर्ति संजय कुमार की पीठ ने कहा कि हिरासत में मौत के मामले में आरोपी पुलिस अधिकारी की जमानत के सवाल पर निर्णय लेते वक्त कठोर दृष्टिकोण की आवश्यकता है. 'No Sane Man Would Believe It': दिन दहाड़े जुहू चौपाटी पर रेप कैसे? हाई कोर्ट ने आरोपी को दे दी जमानत, जानिए पूरा मामला.

शीर्ष अदालत ने कहा, ‘‘इस तरह के मामलों में, हिरासत में मौत से संबंधित मामले के संबंध में पुलिस बल के एक सदस्य के समग्र प्रभाव को ध्यान में रखते हुए जमानत देने के सवाल पर सख्त रुख अपनाया जाना चाहिए.’’

न्यायालय ने कहा कि सामान्य परिस्थितियों में, उसने किसी आरोपी को जमानत देने के आदेश को अमान्य करने के लिए संविधान के अनुच्छेद 136 के तहत अधिकार क्षेत्र का इस्तेमाल नहीं किया होगा.

उन्होंने कहा, ‘‘लेकिन जमानत देने के सवाल से निपटने के दौरान यह मानदंड हिरासत में मौत के मामले में लागू नहीं होगा, जहां पुलिस अधिकारियों को आरोपी के रूप में आरोपित किया गया है. ऐसे कथित अपराध भयानक और गंभीर प्रकृति के हैं.’’

शीर्ष अदालत ने कहा कि जहां तक मौजूदा अपील का सवाल है, उसे जमानत के मसले पर अपवादात्मक दृष्टिकोण अपनाना चाहिए. न्यायालय हिरासत में मौत के मामले में एक पुलिस कांस्टेबल को दी गई जमानत के खिलाफ अपील पर सुनवाई कर रहा था.

मृतक को डकैती से जुड़े एक मामले में गिरफ्तार किया गया था और 11 फरवरी, 2021 को उसे पुलिस हिरासत में ले लिया गया था. कुल मिलाकर, 19 पुलिस अधिकारियों को हिरासत में मौत के अपराध में आरोपी बनाया गया है और उनके खिलाफ आरोप-पत्र पेश किया गया है.

पुलिस कांस्टेबल को चार सप्ताह की अवधि के भीतर केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) की विशेष अदालत के समक्ष आत्मसमर्पण करने का निर्देश देते हुए शीर्ष अदालत ने कहा कि आरोपी के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 302 के तहत आरोप है, फिर भी उसे डेढ़ साल के भीतर ही जमानत पर छोड़ दिया गया है.

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