देश की खबरें | झारखंड में मुख्यमंत्री पद का चेहरा न होना और घुसपैठ मुद्दे पर जोर महंगा पड़ा
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(नमिता तिवारी और संजय कुमार डे)
रांची, 23 नवंबर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नीत राजग ने झारखंड की सत्ता झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के नेतृत्व वाले गठबंधन के हाथों से छीनने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक दी लेकिन उसे अंतत: हार का सामना करना पड़ा। इस पराजय से हतप्रभ नेता और कार्यकर्ता यह सोच रहे हैं कि आखिर गड़बड़ी क्या हुई।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और असम के मुख्यमंत्री हिमंत विश्व शर्मा जैसे शीर्ष भाजपा नेताओं ने आक्रामक तरीके से प्रचार किया, लेकिन राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) ने किसी को भी मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में पेश नहीं किया, क्योंकि उसका अभियान मुख्य रूप से ‘बांग्लादेश से घुसपैठ’ और हेमंत सोरेन सरकार के ‘भ्रष्टाचार’ पर केंद्रित था।
भाजपा नेताओं ने लगभग 200 जनसभाओं को संबोधित किया जिनमें शाह और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की लगभग दो दर्जन जनसभाएं शामिल थीं। उन्होंने झारखंड की राजधानी रांची में विशाल रोड शो भी किया जिसमें भारी भीड़ उमड़ी।
राजग जिन 81 सीट पर चुनाव लड़ी उनमें से बमुश्किल 24 पर आगे चल रही है। भाजपा ने 68 सीट पर चुनाव लड़ा था जबकि 10 सीट पर चुनाव लड़ने वाली उसकी सहयोगी ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन (आजसू) पार्टी का लगभग सफाया हो गया है।
‘एग्जिट पोल’ के विपरीत हेमंत सोरेन की झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) ने जिन 43 सीट पर चुनाव लड़ा उनमें से 34 सीट पर जीत या बढ़त बनाकर बड़ी जीत की ओर बढ़ रही है।
राज्य भाजपा के एक सूत्र ने दावा किया कि चुनाव में एक आदिवासी मुख्यमंत्री का चेहरा पेश न करना उसे महंगा पड़ा।
एक अन्य नेता ने दावा किया कि पूरा शो ‘बाहर से आए दो नेताओं’ द्वारा चलाया गया था और राज्य भाजपा ने अपने लोगों को नजरअंदाज करके दूसरे दलों से आए नेताओं को टिकट दिया।
भाजपा के मौजूदा विधायक केदार हाजरा पूर्व मंत्री लुईस मरांडी के साथ चुनाव से ठीक पहले पार्टी नेताओं पर उदासीनता का आरोप लगाते हुए झामुमो में शामिल हो गए।
राजनीतिक विश्लेषक डॉ. बागीश चंद्र वर्मा ने ‘पीटीआई-’ को बताया कि भाजपा अपने पूरे अभियान के दौरान जनता से जुड़े जमीनी मुद्दों को उठाने में विफल रही और पार्टी का अभियान राष्ट्रीय मुद्दों और ‘घुसपैठ’ पर केंद्रित था जिससे ग्रामीण जनता जुड़ने में विफल रही।
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