भारतीय किसान जलवायु परिवर्तन के असर से बचने के लिए गेहूं की नई किस्में आजमा रहे हैं. मौसमी आपदाओं के मारे किसानों के लिए ये नई किस्में बड़ी राहत ला सकती हैं.जब सारे रास्ते बंद हो जाएंगे, तब भी सतवीर सिंह को इस बात की तसल्ली रहेगी कि घर में इतना आटा होगा कि परिवार को रोटी मिल सके. इसके लिए उनका परिवार कुछ हद तक तो सरकार की ओर से मिलने वाले मुफ्त अनाज पर निर्भर है.
दिल्ली के पास गेजा गांव के अपने घर में एक कोने में रखी गेहूं की बोरियों की ओर इशारा करते हुए सतवीर सिंह कहते हैं, "यह काफी नहीं है, लेकिन जब हाथ तंग होता है तो इससे बड़ी मदद मिल जाती है.”
लेकिन गेहूं की यह सप्लाई हमेशा संतुलित नहीं रहती है. एक-दो साल पहले गेहूं की जगह सरकार ने चावल देना शुरू कर दिया था. चूंकि सतवीर सिंह का परिवार चावल ज्यादा नहीं खाता है, इसलिए वह इससे ज्यादा खुश नहीं थे.
उस बदलाव की वजह थी 2022 की गर्मियां. उस साल गर्मियां समय से पहले आ गईं और गेहूं उगाने वाले क्षेत्रों में फसल को बहुत नुकसान पहुंचा. इस कारण सरकार को गेहूं का निर्यात रोकना पड़ा और राशन के तहत मिलने वाली गेहूं की मात्रा में भी कटौती करनी पड़ी.
एक साल बाद फिर वैसा ही हुआ. इस साल भी हालात कुछ अलग नहीं हैं. सरकारी अनुमान है कि इस साल गेहूं का उत्पादन पहले के 11.2 करोड़ मीट्रिक टन से 6.25 फीसदी कम हो सकता है. इसका असर यह होगा कि छह साल में पहली बार भारत को गेहूं आयात करना पड़ सकता है.
जलवायु परिवर्तन का असर
असल में यह जलवायु परिवर्तन का असर है. गर्मी की तीव्रता बढ़ी है, सूखे और बाढ़ आने की घटनाओं में भी वृद्धि हुई है. इस कारण भारत ही नहीं, बल्कि अन्य देशों में भी कृषि क्षेत्र प्रभावित हो रहा है और खाद्य सुरक्षा पर खतरे बढ़े हैं. यही वजह है कि ऐसी फसलें शुरू करने पर जोर बढ़ रहा है, जो इन मौसमी बदलावों को झेल सकें.
दुनिया के दूसरे सबसे बड़े गेहूं उत्पादक देश भारत में सरकारी शोध संस्थान, विश्वविद्यालय और अन्य जगहों पर काम करने वाले वैज्ञानिकों में ऐसी किस्में विकसित करने की होड़ मची है, जो जलवायु परिवर्तन के असर से सुरक्षित हों. लगभग डेढ़ अरब की आबादी वाले देश के लिए यह एक बेहद महत्वपूर्ण सवाल है.
कंसल्टेटिव ग्रुप ऑन इंटरनेशनल एग्रीकल्चरल रिसर्च (सीजीआईएआर) नामक संगठन में जलवायु परिवर्तन पर काम करने वालीं अदिति मुखर्जी कहती हैं कि पारंपरिक रूप से कृषि में होने वाला शोध फसल बढ़ाने पर केंद्रित रहता है, लेकिन अब यह काफी नहीं है.
मुखर्जी बताती हैं, "अब हमें ऐसे बीजों की जरूरत है, जो अधिक तापमान झेल सकें, जिन पर सूखे का असर ना हो और ऐसे ही मौसमी बदलाव को झेलने वाले गुण रखते हों.”
हो सकती है गेहूं की कमी
उत्तरी हरियाणा के रंबा गांव में अपने 20 एकड़ के खेत में गेहूं उगाने वाले सुक्खा सिंह जैसे किसान ऐसी बीजों का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं. हाल के सालों में इन किसानों ने मौसमी कारणों से बड़ा नुकसान झेला है.
मार्च 2022 में जब हरियाणा, पंजाब और आसपास के अन्य इलाकों में ताप लहर चली थी तो सुक्खा सिंह की एक तिहाई फसल बर्बाद हो गई थी. वह बताते हैं, "गेहूं हमारी मुख्य फसल है. इसमें किसी भी तरह का नुकसान सीधा हमारी आय को प्रभावित करता है. उस झटके से उबरने में दो साल तक लग जाते हैं.”
हाल ही में हुए कई अध्ययनों में यह बात सामने आई कि जलवायु परिवर्तन के कारण 2050 तक गेहूं के उत्पादन में 30 फीसदी की कमी आ सकती है. इसका सीधा असर भारत जैसे बड़े निर्यातकों पर पड़ेगा और कीमतें भी बढ़ेंगी.
भारत में बढ़ते तापमान और घटती बारिश के कारण 2035 तक ही गेहूं का उत्पादन आठ फीसदी तक घट सकता है. सदी के आखिर तक यह गिरावट 20 फीसदी तक भी जा सकती है. यही वजह है कि पिछले दो साल से लगातार फसलों का नुकसान झेल रहे किसान अब बेहतर बीजों की मांग कर रहे हैं.
ऐसे बीज मिलना आसान नहीं होता क्योंकि स्थानीय बीज विक्रेताओं के पास इनकी हमेशा कमी रहती है. सुक्खा सिंह इस मामले में किस्मत वाले रहे. वह कहते हैं, "भाग्य से एक (डीलर) के पास वे बीज तभी आए थे.”
भारत में विकसित हो रही हैं नई किस्में
इन बीजों को इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ व्हीट एंड बार्ली रिसर्च (आईआईडब्ल्यूबीआर) ने विकसित किया है. ये बीज अधिक तापमान और बेमौसम बारिश को झेलने में ज्यादा सक्षम हैं और वैज्ञानिकों का दावा है कि इनसे फसल भी ज्यादा होगी.
2023 में जब हरियाणा के अन्य किसानों की पैदावार कम हुई, तब सुक्खा सिंह के खेतों में 25 क्विंटल प्रति एकड़ गेहूं की पैदावार हुई, जो औसत से ज्यादा थी. इसका श्रेय वह नए बीजों को देते हैं. वह बताते हैं, "देश की खाद्य सुरक्षा और करोड़ों किसानों की आय की सुरक्षा में ये बीज बचाव की पहली पंक्ति हैं.”
ये हाइब्रिड किस्में खाद्य संकट से निपटने के लिए बड़ी उम्मीद माने जा रहे हैं. इस वक्त भारत में गेहूं की 70 से ज्यादा ऐसी किस्में विकसित की जा रही हैं, जो जलवायु परिवर्तन के खिलाफ ज्यादा मजबूत हैं और देश में मिट्टी और मौसम की विविधता में भी कामयाब हो सकते हैं. आईआईडब्ल्यूबीआर के निदेशक ज्ञानेंद्र प्रताप सिंह कहते हैं, "ये नई किस्में गेहूं को गर्मी, सूखे, पानी के जमाव और बीमारियों से बचा सकती हैं.”
वीके/एसएम (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन )